Climate Change: जंगलों की आग कैसे बन सकती है दुनिया के अंत की वजह ?

मध्य प्रदेश में स्थित 48 माइल एकड़ में फैले मांडू के जंगल में आग लगने की घटनायें बार–बार देखी जा रही हैं। जिससे इसके आस-पास का क्षेत्र भी बुरी तरह से प्राभावित हो रहा है। राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) इस पर काबू पाने की कोशिश कर रहा है लेकिन संसाधनों की कमी की वजह से उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

April 16, 2022 - 20:19
April 16, 2022 - 20:57
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मानव विकास के क्रम में मानवीय सभ्यता जब अपने भविष्य की दिशा तय कर रही थी तब उसके द्वारा खोजी गई सबसे पहली चीज थी 'आग'। जिस आग ने मानव सभ्यता का भविष्य तय किया अब लगता है कि वही आग इस मानव सभ्यता को अन्तिम रूप भी देगी। आइए भारत के परिपेक्ष्य में आज इसे समझने की कोशिश करते हैं।

उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग अभी ठीक से शांत नहीं हुई थी कि मांडू के लोहनी गुफा सनसेट प्वाइंट में आग लग गई जिसमें कई हेक्टेयर जंगल आग की चपेट में आ गए। इसके धुएं से परेशान जंगल के पशु-पक्षी इधर उधर भागते देखे गए जिसमें कई जीव-जन्तु और पेड़–पौधे जलकर ख़ाक हो गए। मध्य प्रदेश में स्थित 48 माइल एकड़ में फैले मांडू के जंगल में आग लगने की घटनायें बार–बार देखी जा रही हैं। जिससे इसके आस-पास का क्षेत्र भी बुरी तरह से प्राभावित हो रहा है। राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) इस पर काबू पाने की कोशिश कर रहा है लेकिन संसाधनों की कमी की वजह से उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। जंगलों पर आश्रित आम जन जीवन अस्त व्यस्त हो चुका है। आम जन भी आग बुझाने में एसडीआरएफ की मदद कर रहे हैं। लेकिन आग शांत होने का नाम नहीं ले रही हैं।


ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सी ई ई डब्लू) ने मैनेजिंग फॉरेस्ट फायर इन ए चेजिंग क्लाइमेट नाम से एक अध्ययन किया। जिसके आंकड़े बेहद चौकाने वाले हैं। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया कि पिछ्ले दो दशकों में जंगलों में लगने वाली आग जिसे बुशफायर, फारेस्ट फायर या वाइल्ड फायर आदि नामों से जाना जाता है उसकी संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है। 


सी ई ई डब्लू एशिया की एक अग्रणी गैर लाभकारी शोध संस्था है जो संसाधनों के उपयोग, पुन: उपयोग और दुरुपयोग को प्रभावित करने वाले मामलों पर शोध करती है। जंगलों में लगने वाली आग के पीछे बहुत से कारण हो सकते हैं, जैसे कि इंसानों के द्वारा, अत्याधिक सूखा पड़ना और आकाशीय बिजली का गिरना आदि लेकिन इस आग को विकराल रूप लेने  के लिए तीन चीजों की आवश्यकता होती है। ईंधन, ऑक्सीजन और गर्मी का कोई स्रोत।


सी ई ई डब्लू ने अपने शोध में पाया कि जो क्षेत्र पहले बाढ़ की मार झेलते थे अब जलवायु परिवर्तन 'स्वैपिंग ट्रेंड' के कारण सूखे से ग्रसित हैं। तेजी हो रहे इस जलवायु परिवर्तन से आंध्र प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्य उच्च तीव्रता वाली वनाग्नि के लिए सबसे अधिक प्रणव हैं। पिछ्ले दो दशकों में वनाग्नि की घटनाएं सबसे ज्यादा मिजोरम में घटी हैं। इसके 95 फीसदी से अधिक क्षेत्र को हॉटस्पॉट घोषित किया गया है। चरम जलवायु जैसी किसी घटना को लेकर भारत के 75 फीसदी से अधिक जिले हॉटस्पॉट के रूप में विकसित किए गए हैं जबकि 30 फीसदी से ज्यादा जिले केवल वनाग्नि के लिए हॉटस्पॉट के तौर पर चिन्हित हैं।

 
पूर्वोत्तर क्षेत्र को लेकर सी ई ई डब्लू ने बताया कि पूर्वोत्तर भारत में मार्च-मई के बीच मौसम शुष्क होता है और इस बीच खराब वर्षा वितरण पैटर्न के वजह से जंगल में आग लगने की घटनाएं बढ़ी हैं। इससे पहले आग लगने की घटनाएं गर्मियों यानि मई- जून में हुआ करती थी लेकिन अब वसंत यानि मार्च - मई के बीच में भी ऐसी घटनाएं देखी जाने लगी हैं। पहले वनाग्नि के समयावधि 2-3 माह की हुआ करती थी लेकिन अब ये बढ़कर 6 माह की हो चुकी हैं।
भारतीय वन सर्वेक्षण ने 2019 की अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि भारत के 36 फीसदी जंगल वनाग्नि से ग्रसित हैं लेकिन जब हम आज के ताजा अकड़ों की ओर नजर घुमाते हैं तो हालत और भी ज्यादा भयावह नजर आते हैं। 30 मार्च 2022 तक पूरे देश में कुल 381 घटनाओं की सूचना मिली जिसमें से 133 घटनाएं केवल मध्य प्रदेश की थी। मार्च 2022 में सबसे ज्यादा वनाग्नि जैसी घटनाएं उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुई। हाल ही में राजस्थान के सरिक्सा टाइगर रिजर्व में लगी आग को बेमौसम माना गया। मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ वन अभ्यारण में ऐसी ही आग लगने की एक और बड़ी घटना देखी गई थी। 

इन तमाम आंकड़ों के विश्लेषण पर जब हम नजर डालेंगे तो जो दृश्य हमारे दिमाग में बनेगा उसकी वास्तविक तस्वीर उससे कहीं ज्यादा डरावनी है। बेमौसम जंगलों में आग लग जाने से पर्यावरण का एक बहुत बड़ा पारितंत्र प्राभावित होता है इससे केवल जंगली जीव-जन्तु ही नहीं एक बड़ी जनसंख्या वाली मानव सभ्यता भी मुश्किलों का सामना करती है। ऐसे इंसान जो अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर निर्भर है उनके सामने जीवन यापन की समस्या फिर मुंह खोलकर खड़ी रहती है । आग से निकलने वाले धुएं का गुबार हवा से होते हुए हमारे फेफड़ों में उतरता है और भविष्य की आने वाली कई पीढ़ियां हमारे लालच के प्रभाव का अभिशाप झेलते रहती हैं। 

वनाग्नि एक ऐसी आपदा है जिसे लेकर भारत सरकार को गम्भीर चिन्तन की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि वो वनाग्नि को राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के अंर्तगत लाकर वित्तीय सहायता प्रदान करे। वनाग्नि के लिए एक चेतावनी प्रणाली विकसित करे जो वास्तविक समय प्रभाव-आधारित अलर्ट जारी करे। वनाग्नि प्राभावित क्षेत्रों में स्कूलों, सामुदायिक हालों जैसे सार्वजनिक भवनों में शुद्ध वायु हेतु एयर फिल्टर की व्यवस्था करे ताकि धुएं के प्रभाव को कम किया जा सके। राज्य आपदा प्रतिकिया बल (एसडीआरएफ) के पास पर्याप्त संसाधन उपलब्ध करा के उनकी क्षमता में वृद्धि की जानी चाहिए। स्थानीय लोग जो वनों पर आश्रित हैं उन्हें ऐसी आपदाओं से निपटते के लिए प्रशिक्षण दिए जानें चाहिए।

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