भारत में कोयला संकट, वैश्विक स्तर पर बढ़ी बिजली की मांग
अप्रैल-जून 2021 में कम स्टॉक बिल्ड-अप और कोयले की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों की वजह से कोयले के आयात में तेज गिरावट के कारण भारत में कोयले का संकट आ गया है।
देश में बचा है चार दिनों का कोयला :
बिजली संयंत्रों के लिए कोयला भंडार पर केन्द्रीय बिजली प्राधिकरण (सीईए) की हाल ही में आई रिपोर्ट से यह पता चला है कि 25 पावर प्लांट में तीन अक्टूबर को सात दिन से भी कम समय का कोयला भंडार था। कम से कम तथा 64 ताप पावर प्लांटो के पास चार दिनों से भी कम समय का ईंधन बचा है। सीईए 135 पावर प्लांटो के कोयले के भंडार की निगरानी करता है, जिनकी कुल उत्पादन क्षमता दैनिक आधार पर 165 गीगावॉट है। कुल मिलाकर तीन अक्टूबर को 135 प्लांट्स में कुल 78,09,200 टन कोयले का भंडार था, और यह चार दिन के लिए काफी है। रिपोर्ट के अनुसार 135 संयंत्रों में से किसी के भी पास आठ या अधिक दिनों का कोयले का भंडार नहीं बचा है।
कैसे आया यह संकट?
भारत का कोयला संकट एक वैश्विक ऊर्जा संकट के बीच आया है। बार-बार तालाबंदी और लोगों की आवाजाही पर विस्तारित प्रतिबंधों के बाद अर्थव्यवस्थाओं के खुलने पर, पूरे यूरोप, चीन और अन्य जगहों पर ऊर्जा मांग में तेज वृद्धि देखी जा रही है, जिसके कारण आपूर्ति श्रृंखलाएं प्रभावित हुईं हैं।
कोयला संकट, अप्रैल-जून 2021 में कम स्टॉक बिल्ड-अप और कोयले की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में आई बढ़त की वजह से आयात में आई तेज गिरावट के कारण हुआ है। आम तौर पर भी, पूरे देश में सबसे अधिक बिजली की मांग अक्टूबर में दर्ज की जाती है, जो अमूमन मानसून से प्रभावित खनन उत्पादन गर्त के बाद होती है।
अगले छह महीनों तक हो सकती है परेशानी:
ऊर्जा की मांग में तेज बढ़त के कारण देश के कोयले से चलने वाले स्टेशनों पर एक अभूतपूर्व ईंधन की कमी देखी जा रही है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसे केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह सामान्य पोस्ट-मानसून आपूर्ति संकट से "परे" बताते हैं।
सिंह ने कहा, "अगस्त में मांग 124 अरब यूनिट रही थी। प्री-कोविड अवधि की तुलना में मांग एक महीने में 18 अरब यूनिट बढ़ी। हमने कोविड के दौरान 200 गीगावाट की सीमा को छुआ था और अब मांग 170-180 गीगावाट के आसपास है। मुझे उम्मीद है कि यह फिर से लगभग 200GW के करीब पहुंच जाएगा, और वहीं रहेगा।"
हालांकि उम्मीद है कि अक्टूबर के उत्तरार्ध से मांग में कमी आ सकती है, केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने कहा कि ईंधन के अंतर को भरना अभी भी एक "टच एंड गो" मामला होने की संभावना है और वह "अगले कठिन पांच-छह महीने" के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं।
अंतर-मंत्रालय टीम कर रही है निगरानी:
मंत्री ने कहा, संकट टालने के लिए उनकी टीम अन्य मंत्रालयों के साथ समन्वय में लगातार काम कर रही है। बिजली और रेल मंत्रालयों, कोल इंडिया लिमिटेड, सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी और पावर सिस्टम ऑपरेशन कॉरपोरेशन के प्रतिनिधियों सहित एक अंतर-मंत्रालयी टीम गठित की गई है जो थर्मल पावर प्लांटों में कोयले की आपूर्ति को मॉनिटर कर रही है। सरकार ने उन जेनरेशन यूटिलिटीज को जो नियमित भुगतान करतीं हैं और जिन्होंने अनिवार्य कोयले के स्टॉक स्तर को बनाए रखा है, को कोयला प्रदान करने के लिए प्राथमिकता देने का तय किया है।
बिजली महंगाई और कटौती हो सकती है आम बात:
अगर स्थिति में बदलाव नही हुआ तो कुछ वक्त में भारत भी चीन की तरह कटौतियां करने को मजबूर हो सकता है जिसके कारण तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था पर भी असर होगा।
देश के कई राज्यों में पहले से महंगी बिजली के और महंगी हो जाने की संभावना से इंकार नही किया जा सकता। दरअसल, देश की 70% बिजली के उत्पादन में कोयले का इस्तेमाल किया जाता है, ऐसे में सप्लाई कम होने से बिजली की कीमतें बढ़ गई हैं। रिपोर्ट के अनुसार क्रेडिट रेटिंग एजेंसी Crisil Ltd. के इंफ्रास्ट्रक्चर एडवाइज़री के डायरेक्टर प्रणव मास्टर ने कहा है, "जब तक सप्लाई में स्थिरता नहीं आती है, तब तक कुछ जगहों पर बिजली कटौती देखी जा सकती है, वहीं कुछ जगहों पर उपभोक्ताओं पर बिजली बिल का खर्चा बढ़ सकता है।"