भारत–चीन संबंध : काबुल में अचानक रुकने के बाद, चीनी विदेश मंत्री वांग यी पहुंचे दिल्ली
भारत आने से कुछ दिन पहले ही वांग यी ओआईसी की मीटिंग में शामिल होने के लिए पाकिस्तान के दौरे पर गए थें। जहां उन्होंने कश्मीर को लेकर एक भारत विरोधी बयान दिया था।
चीन के विदेश मंत्री वांग यी 24 मार्च, गुरुवार की शाम भारत पहुंचे। यह पहली बार है जब गलवान हिंसा के बाद चीन का कोई बड़ा नेता भारत दौरे पर आया है।
भारत आने से पूर्व वांग यी मंगलवार को अफगानिस्तान के राजधानी काबुल की बैठक में शामिल थें। वांग ने कुछ दिनों पहले ही कश्मीर को लेकर एक विरोधी टिप्पणी की थी। विदेश मंत्री वांग के भारत आने की औपचारिक जानकारी चीन ने नहीं दी थी और ना ही इस दौरे पर अब तक कोई बयान जारी किया है।
भारत आने से कुछ दिन पहले ही वांग यी ओआईसी की मीटिंग में शामिल होने के लिए पाकिस्तान के दौरे पर गए थें। जहां उन्होंने कश्मीर को लेकर एक भारत विरोधी बयान दिया था। वांग ने कहा था– “कश्मीर मुद्दों पर हमने अपने इस्लामिक मित्रों की बात को सुना और और हम भी वही उम्मीद करते हैं जो उम्मीद आप सभी कश्मीर से रख रहे हैं।” हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बयान से कड़ी आपत्ति जताई और चीन के तरफ इशारा करते हुए कहा कि हम किसी भी देश के आंतरिक मामले में बोलने नहीं जाते हैं।
चीन के विदेश मंत्री वांग यी शुक्रवार को भारत के विदेश मंत्री एस.जयशंकर और राष्ट्रीय सलाहकार अजीत डोभाल के साथ नियंत्रण रेखा पर दो साल पुराने सैन्य गतिरोध और एलएसी के साथ पीएलए के उल्लंघन को हल करने के तरीके पर चर्चा करेंगे। हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वांग से मुलाकात करेंगे या नहीं।
यूक्रेन और रूस के बढ़ रहे संकटों के बीच चीन सभी ओर से शांति चाहता है। इसी कारण चीन अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के साथ शांति वार्ता कर खुद को विवादों से दूर रख अपने आर्थिक चोट को राहत पहुंचाना चाहता है। हाल ही में चीन ने तालिबान में निवेश किया किया है जबकि भारत समेत अन्य देशों ने अफगानिस्तान की बिगड़ी स्तिथि होने के कारण वहां से अपने दूतावास तक हटा लिए हैं।
वहीं चीन पाकिस्तान को भी अपने साए के नीचे रखते हुए नजर आ रहा है। बता दें कि पाकिस्तान में मीटिंग के दौरान वांग ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से पाकिस्तान–अफगानिस्तान–चीन के आर्थिक क्षेत्र को बढ़ाने के विषय पर भी चर्चा की थी। यूक्रेन में अपने डूबते हुए निवेशों की आपूर्ति के लिए चीन कोई भी कसर नहीं छोड़ेगा और शायद यही कारण है कि चीन के विदेश मंत्री बिना किसी बुलावे के भारत में सुलह करने पहुंच गए हैं।