कन्हैया कुमार हुए कांग्रेस में शामिल, कांग्रेस को बताया सबसे बड़ी लोकतांत्रिक पार्टी
28 सितंबर यानी आज जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार, गुजरात के निर्दलीय विधायक और दलित कार्यकर्ता जिग्नेश मेवानी के साथ काग्रेस में शामिल हुए हैं।
आज जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार ने गुजरात के निर्दलीय विधायक और दलित कार्यकर्ता जिग्नेश मेवानी के साथ काग्रेस का दामन थाम लिया है। कांग्रेस के दिल्ली दफ्तर में उनके स्वागत के लिए पहले से ही पोस्टर लगा दिए गए थे। पार्टी के नेताओं ने कन्हैया कुमार का कांग्रेस में स्वागत किया है। कांग्रेस का मानना है कि कन्हैया जैसे युवा चेहरे के आने से बिहार में कांग्रेस को मजबूती मिलेगी।
विचारधारा के साथ समझौता:
सीपीआई के कद्दावर नेता योगेंद्र शर्मा को पार्टी से सस्पेंड किए जाने के मामले का उदाहरण देते हुए सीपीआई के एक नेता ने कहा था, "पार्टी पर इस घटनाक्रम का कोई असर नहीं हुआ था। सीपीआई एक ऐसी पार्टी है जो व्यक्ति विशेष की बजाए राजनीति और अपनी विचारधारा पर जोर देती है। ऐसे में कन्हैया कुमार का जाना केवल एक अस्थायी झटका है, स्थायी नहीं।" वहीं एक अन्य नेता ने कहा कि कन्हैया का पार्टी छोड़ना यह दिखाता है कि उन्होंने अपनी विचारधारा के साथ समझौता कर लिया है और सीपीआई से बाहर नए अवसरों का रास्ता तलाश लिया है।
टुकड़े टुकड़े गैंग के साथ हाथ मिला रही है कांग्रेस:
वहीं भाजपा नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, "ये बस एक जग हंसाई है, उससे ज्यादा कुछ नहीं। जब नेतृत्व और नीतियां पूरी तरह से खत्म हो जाती हैं, पूरी तरह से उसका टोटा पड़ जाता है तो इसी तरह के हालात दिखाई देते हैं। ऐसा है कि टुकड़े-टुकड़े गैंग को जोड़ने का जुगाड़ है ये।"
बता दें कि कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने पर भारतीय जनता पार्टी की आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने भी ट्वीट कर कांग्रेस पर निशाना साधा है। मालवीय ने कहा कि "सर्जिकल स्ट्राइक की बरसी पर कांग्रेस ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ की पहचान कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी को पार्टी में शामिल करेगी। यह महज इत्तेफाक नहीं हो सकता। ’भारत को तोड़ने वाली’ ताकतों के साथ हाथ मिलाना अब कांग्रेस का उद्देश्य है।"
कन्हैया कुमार की नई शुरुआत:
बता दें कि कन्हैया कुमार 2019 लोकसभा के चुनाव में सीपीआई के टिकट से चुनावी मैदान पर उतरे थे परंतु भाजपा के नेता गिरिराज सिंह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि तब कन्हैया की प्रोफाइल लो थी लेकिन अगर वे कांग्रेस का दामन थामते हैं तो यह उनकी राजनीतिक पारी की नई शुरुआत होगी।
क्या कांग्रेस वामपंथी विचारधारा की ओर बढ़ रही है?
ऐसे में राजनीतिक विशेषज्ञों के मन में ये सवाल भी है कि क्या कांग्रेस अपनी दशकों पुरानी मध्यमार्गी स्थिति को छोड़कर वामपंथ की ओर बढ़ रही है। दो बार के बिहार विधायक रहे शकील अहमद और राज्यसभा में कांग्रेस के सचेतक नसीर हुसैन का जेएनयू के पूर्व छात्र होना जो कि वहां रहते हुए वामपंथी राजनीति से जुड़े थे, इस पक्ष के समर्थन को स्पष्ट करता है। गौरतलब है कि प्रियंका गांधी वाड्रा के सहयोगी संदीप सिंह और यूपी चुनाव के संभावित उम्मीदवार मोहित दुबे भी जेएनयू में वाम दलों के साथ थे।
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