कश्मीरी प्रवासी सेवानिवृत्ति के तीन साल बाद नहीं कर सकते हैं सरकारी आवास का प्रयोग : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कश्मीरी प्रवासी सेवा से निवृत्त होने के तीन साल बाद, सरकारी क्वार्टर का प्रयोग नहीं कर सकते हैं, सरकारी आवास केवल सेवावृत्त कर्मचारियों की सुविधा के लिए हैं।
सोमवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कश्मीरी प्रवासी जो सरकारी कर्मचारी हैं, सेवानिवृत्ति के बाद तीन वर्षो से अधिक सरकार द्वारा दिए गए क्वार्टर या आवास को अपने पास नहीं रख सकते। और ना हीं उन्हें अनियमित व अनिश्चित काल तक आवास में रहने की अनुमति दी जा सकती है। कोर्ट ने अपना तर्क रखते हुए कहा कि सरकारी आवास केवल सेवावृत कर्मचारियों की सुविधा के लिए हैं, कर्मचारी अनिश्चित काल तक इनका प्रयोग नहीं कर सकते।
न्यायाधीश हेमंत गुप्ता और एस बोपन्ना की बेंच ने अपने निर्णय में कहा कि प्रवासी कश्मीरियों को सरकारी नौकरी से सेवानिवृत होने के बाद आजीवन सरकारी आवास में रहने की इजाजत देने वाला ऑफिस मेमोरेंडम अमान्य व असंविधानिक है। हालांकि, बेंच ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि हम इस बात को तो मान सकते हैं कि कार्यमुक्ति के बाद यदि उनके पास तीन साल तक रहने का कोई ठिकाना नहीं है तो वे सरकारी आवास का प्रयोग कर सकते हैं।
यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने आगे अपने फैसला सुनाते हुए कहा कि ऐसे व्यक्ति की सहायता करने से अदालतों को बचना चाहिए जो सरकारी एजेंसियों का सहयोग नहीं करते हैं और जांच से भी दूर भाग जाते हैं। दरअसल, यह टिप्पणी कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के बलिया में 2017 में हुए एक दंगे की घटना की सुनवाई करते हुए की। इस दौरान कोर्ट ने आरोपी की अग्रिम जमानत की याचिका भी ख़ारिज कर दी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2019 में आरोपी को आत्मसमर्पण करने के आदेश दिए थे लेकिन उसने इसे भी अनदेखा किया। अब कोर्ट ने उसके खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करते हुए कहा है कि ऐसे आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती