Madhushala: हरिवंश राय बच्चन की कृति मधुशाला की ये यादगार 50 पंक्तियां

हरिवंश राय बच्चन की कविताएं motivation: आईए पढ़िए उनकी कविता मधुशाला।

April 20, 2024 - 23:53
April 21, 2024 - 00:03
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Madhushala: हरिवंश राय बच्चन की कृति मधुशाला की ये यादगार 50 पंक्तियां
Madhushala: Harivansh Rai Bachchan

Madhushala: हरिवंश राय बच्चन की कृति मधुशाला की ये यादगार 50 पंक्तियां

मदिरालय जाने को घर से

चलता है पीनेवाला,

'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस

में है वह भोलाभाला,

अलग­ अलग पथ बतलाते सब

पर मैं यह बतलाता हूँ -

'राह पकड़ तू एक चला चल,

पा जाएगा मधुशाला

उर का छाला...

लाल सुरा की धार लपट-सी

कह न इसे देना ज्वाला,

फेनिल मदिरा है, मत इसको

कह देना उर का छाला,

दर्द नशा है इस मदिरा का

विगत स्मृतियाँ साकी हैं;

पीड़ा में आनंद जिसे हो,

आए मेरी मधुशाला

 

अंगूर लताएँ ...

बनी रहें अंगूर लताएँ जिनसे मिलती है हाला,

बनी रहे वह मिटटी जिससे बनता है मधु का प्याला,

बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने,

बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला

मस्जिद-मन्दिर...

मुसलमान और हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,

एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,

दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,

बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!

साकी बालाएँ...

यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला,

ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,

मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,

किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।

 

ठोकर खाकर...

ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला,

गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,

साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,

दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।

 

बहलाता प्याला...

यदि इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला,

यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,

हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,

मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला।

 

महल ढहे...

कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,

कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!

पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,

कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!

 

सुखदस्मृति है...

यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,

यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,

किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,

नहीं-नहीं कवि का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।

 

मेरे साकी में...

मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,

मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,

मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,

जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।

 

सदा उठाया है...

बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,

कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,

मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,

विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।

तर्पण-अर्पण करना...

पितृ पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला

बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला

किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी

तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।

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