Manipur violence: 56 इंच का सीना कैसे करेगा मणिपुर हिंसा जैसे हालातों में राष्ट्र एकीकरण ?
Manipur violence: वर्तमान नेतृत्व इन संघर्षों को नियंत्रित कैसे करेगा, हल कैसे करेगा और राष्ट्र एकीकरण कैसे करेगा, यह उसके 56 इंच के सीने के लिए एक भीषण परीक्षा है!
सत्ता कैसे आती है? यह एक अहम सवाल है। सत्ता "दो तरीके" से आती हैं और दो "ही" तरीके से आती हैं। पहला, संघर्ष करवाके और दूसरा, संघर्षों को नियंत्रित और हल करके।
● वहीं दुनियाभर में महान नेतृत्व उन्हें कहा गया जिन्होंने दूसरा रास्ता अपनाया। यानी अपने समाज के भीतर हो रहे संघर्षों को नियंत्रित किया, उसे हल किया और एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण किया। इस दूसरे रास्ते को अपनाने वालों में मुख्य हैं गैरीबाल्डी, बिस्मार्क, लिंकन, कमाल पाशा को भी रखना चाहूंगा आदि।
लेकिन इस दूसरे रास्ते को अपनाने में, इस पर काम करने के लिए अक्ल, मेहनत, इच्छाशक्ति सब चाहिए होता हैं और यह आसान काम नहीं होता इसलिए वामपंथी इस रास्ते को नहीं अपनाते क्योंकि उनके पास न अक्ल हैं, न मेहनत और न इच्छाशक्ति और यही कारण है वह पहला रास्ता अपनाते हैं।
पहले रास्ते में आपको समाज के भीतर संघर्ष करवाना होता हैं जैसे अमीर और गरीब के बीच, मज़दूर और उद्योगों के बीच, किसानों और जमीदारों के बीच, नस्लों के बीच, श्वेत और अश्वेत के बीच, जातियों के बीच, स्त्री-पुरुष के बीच, मुसलमान-हिन्दू के बीच, भाषाओं के बीच आदि।
इन सब बेसिक्स के द्वारा वामपंथी समाज में संघर्ष करवाते है और फिर इनके द्वारा सत्ता घोषित रूप में और अघोषित रूप में हासिल करना चाहते है। आज वामपंथ बगैर चुनाव जीते सत्ता पर बैठा हुआ है। साहित्य, मीडिया, लॉ, ब्यूरोक्रेसी, थियेटर, मानव अधिकार, यूनिवर्सिटी इन सभी पर कब्ज़ा करके वह indirectly सत्ता पर बैठा हुआ है और Political Correctness के नाम पर समाज को चला रहा है। जब मन चाहे समाज में संघर्ष खड़ा कर रहा है, सरकारें इन संघर्षों में घुटने टेक रही है और वामपंथ के Political Correctness पर चल रही है।
● यह वामपंथ की वह सत्ता जिसमे जवाबदेही वामपंथियों को नहीं देनी पड़ती, उल्टे सरकारों को देनी पड़ती है, इसलिए वामपंथी संघर्ष करवाते है, उनकी राजनीति का मूल सिद्धांत ही सँघर्ष और विचलन का सिद्धांत है।
आपके फेसबुक एकाउंट पर आप क्या लिखेंगे और क्या नहीं? यह भी ज़ुकरबर्ग के द्वारा वामपंथी तय करते हैं।
कश्मीर एक वक्त पर जल रहा था, बंगाल लगातार जल रहा है, खालिस्तान की लहर को हवा मिल रही है, मणिपुर का जल रहा है, मेघालय-असम का सीमा विवाद। अभी कई मुद्दे है जिन्हें हवा मिलेगी। क्यों? क्योंकि संघर्ष करवाके सत्ता प्राप्त करना वामियों का तरीका है। हर हिंसा, हर फसाद के मूल में यही लोग होते हैं।
वर्तमान नेतृत्व इन संघर्षों को नियंत्रित कैसे करेगा, हल कैसे करेगा और राष्ट्र एकीकरण कैसे करेगा, यह उसके 56 इंच के सीने के लिए एक भीषण परीक्षा है।
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि द लोकदूत ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावों या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]