Left Cinema:वामपंथ का सिनेमा और आम जन के दिमाग में लगातार बनाए गए नैरेटिव

वाम ने इन सभी में पैठ बनाने का जो रास्ता चुना था उस रास्ते का नाम "उत्तर-आधुनिकतावाद" था। आज मैं आपको बताऊंगा, वामपंथियों का सिनेमा क्या होता है, कैसे होता है?

July 20, 2023 - 17:32
July 20, 2023 - 17:36
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Left Cinema:वामपंथ का सिनेमा और आम जन के दिमाग में लगातार बनाए गए नैरेटिव
Left cinema

वाम समाज में कैसे घुसा? वाम ने मीडिया, सिनेमा, साहित्य, NGO, लॉ, ब्यूरोक्रेसी, नारीवाद, मानवाधिकार इन सभी में कैसे पैठ बनाई। वाम ने इन सभी में पैठ बनाने का जो रास्ता चुना था उस रास्ते का नाम "उत्तर-आधुनिकतावाद" था। आज मैं आपको बताऊंगा, वामपंथियों का सिनेमा क्या होता है, कैसे होता है?

● आप ने बहुत बार सुना होगा कि एक "हिन्दू सीरियल महाभारत के संवाद को एक "मुस्लिम व्यक्ति" राही मासूम रज़ा ने लिखा।"

 बताइए जिस देश में एक हिन्दू सीरियल के संवाद एक "मुसलमान" लिख रहा है, उस देश में हिन्दू साम्प्रदायिक होकर मुसलमानों से नफरत करते हैं। हिंदुओं तुम कितने नफ़रती हो लेकिन "मुस्लिम व्यक्ति ने संवाद लिखे" ये नैरेटिव बनाने वालों ने यह नहीं बताया कि "महाभारत" के संवाद दो व्यक्तियों ने मिलकर लिखे थे। एक, पंडित नरेंद्र शर्मा और दूसरे, राही मासूम रज़ा। आपको पंडित नरेंद्र शर्मा क्यों नहीं याद है? क्योंकि उनके नाम के पीछे "शर्मा" और नाम के आगे "पण्डित" है इसलिए? 

●आपने 1973 की जंजीर मूवी देखी है? इस मूवी को लिखने वाले दो मुस्लिम थे। इस फ़िल्म में प्राण ने एक शेर खान (पठान) नाम के मुस्लिम व्यक्ति का किरदार अदा किया था। एक मुस्लिम व्यक्ति जो जुएँ का धंधा तो करता है पर उसूल पसंद इंसान है। बाद में शेर खान जुएं का धंधा बन्द कर देता और विजय का एक अच्छा दोस्त बन जाता है।

 "यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी।"

लेकिन इस फ़िल्म का विलेन कौन होता है? इस फ़िल्म का विलेन होता है "सेठ धर्म दयाल तेजा"। एक "शेर खान", ईमानदार और उसूल पंसद है। एक "सेठ धर्म दयाल" तेजा बुरा व्यक्ति, गलत इंसान। इस बुरे व्यक्ति का "धर्म आपको पता ही होगा? 

●आपने 1975 की "दीवार" फ़िल्म देखी है। इस फ़िल्म की शुरुआत में "विजय" "नास्तिक" है, मंदिर नहीं जाता लेकिन विजय "786 के बिल्ले" को चूम कर अपनी जेब में हमेशा रखता है। 

विजय नास्तिक है, मंदिर नहीं जाता, 786 के बिल्ले को चूमता है। समझे कुछ आप?  शोले फ़िल्म में जय और वीरू "चोर" होते है और गब्बर "सिंह" एक डाकू, हत्यारा। गब्बर "सिंह" की जात क्या है? और धर्म क्या है? क्या आपको पता होगा पर इसी शोले में रहीम चाचा होते है, रहीम चाचा मस्जिद के ईमाम होते है और इस रहीम चाचा का बेटा अहमद डाकुओं की गोली से शहीद हो जाता है। तब रहीम चाचा बोलते है कि "मेरी नमाज़ का वक़्त हो गया है, पूछुंगा ख़ुदा से कि मुझे दो-चार बेटे और क्यों नहीं दिए इस गाँव पर शहीद होने के लिए।"

गब्बर "सिंह" डाकू है, हत्यारा है, रहीम चाचा नेक इंसान।

●शान मूवी को लिखने वाले दो मुस्लिम वही है जिन्होंने ज़ंजीर, शोले, दीवार लिखी। 

शान मूवी में "राकेश" नाम का एक व्यक्ति एक ईमानदार पुलिस वाले पर दो बार गोली चलाता है, पर अब्दुल नाम का एक सड़क में भीख माँगने वाला व्यक्ति नेक होता है और फ़िल्म के विलेन को पकड़वाने में हीरो लोगों की मदद करता है।

"नाम अब्दुल है मेरा, सबकी ख़बर रखता हूँ।"

●एक फ़िल्म बनी थी शौर्य, साल 2008 में। इस फ़िल्म को डायरेक्ट किया था, एक मुस्लिम ने। फ़िल्म की कहानी में तीन कहानीकारों में एक मुस्लिम ही था।

ये फ़िल्म कश्मीर विवाद के ऊपर थी। ब्रिगेडियर रुद्र प्रताप सिंह को इस फ़िल्म में एक ऐसे आर्मी ऑफिसर के रूप में दिखाया गया है, जो कई मुस्लिम लोगों को मरवा देता है पर इसी फ़िल्म में "जावेद खान" एक ईमानदार सिपाही के रूप में दिखाया जाता और तो और उसे गलत तरीके से केस में फंसाने का षडयंत्र भी दिखाया गया। 

फ़िल्म के अंत में ब्रिगेडियर रुद्र प्रताप सिंह गलत साबित होते है और जावेद खान ईमानदार।

My Name is khan and I am not a terriost जैसी फिल्में इस देश में बनी है पर 2014 से पहले ऐसी कोई फ़िल्म नहीं बनी जो ये कहती हो कि  I am kashmiri Hindu pandit and I am victim of islamic terrorism. 

एक फ़िल्म थी हैदर,अलीगढ़ में पढ़ने वाले हैदर मीर को तब कश्मीर अपने घर लौटना पड़ता है जब उसके पिता डॉक्टर हिलाल मीर को आर्मी पकड़ लेती है। हिलाल ने एक आतंकवादी का अपने घर में ऑपरेशन किया था। अचानक हैदर के पिता लापता हो जाते हैं। 

ये जो आर्मी द्वारा हैदर के पिता को पकड़े जाना है, ये एक सन्देश है कि कैसे आर्मी कश्मीर में ज़ुल्म ढहाती है। वामियों को छोटे-छोटे सीन से नैरेटिव बनाना आता है।

आपने अमरीश पुरी के विलेन वाले रोल्स में उनके नाम देखे है, ईमान-धर्म मे उनका नाम धर्म दयाल था और अमिताभ का नाम अहमद रज़ा, जो की एक हीरो था।

अमरीश पुरी को विलेन्स के जो रोल दिए गए थे, उनमें से किसी में "ठाकुर" "सिंह" "चौधरी" "राणा"  थे।  ये ठाकुर, सिंह, चौधरी कौन से धर्म के होते और कौन सी जात के? कुछ पता चला।

ऐसी बहुत सी फिल्में है उठाकर देख लीजिए कि उत्तर-आधुनिकतावाद के ज़रिए वाम कैसे सिनेमा में घुस कर अपना संदेश पहुँचा रहा है।

आप वामियों को पहचानों इनके बनाए नैरेटिव को पहचानो।

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि द लोकदूत ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावों या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]