Delhi Floods: हथिनीकुंड बैराज पर आप और भाजपा में छिड़ी रार, लेकिन कोई और ही निकला दिल्ली के बाढ़ का खलनायक, जानिए यमुना के उफान की पूरी कहानी

आम आदमी पार्टी (आप) ने हरियाणा की भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) सरकार पर राजधानी में बाढ़ लाने के लिए जानबूझकर बैराज के कुप्रबंधन का आरोप लगाया है। तो वहीं हरियाणा सरकार की तरफ से भी इस मुद्दे पर बैराज प्रबंधन के नियमों की दुहाई दी जा रही है।

July 20, 2023 - 23:24
July 21, 2023 - 16:03
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Delhi Floods: हथिनीकुंड बैराज पर आप और भाजपा में छिड़ी रार,  लेकिन कोई और ही निकला दिल्ली के बाढ़ का खलनायक, जानिए यमुना के उफान की पूरी कहानी
Hathnikund Barrage

दिल्ली में यमुना के जल स्तर में जैसे-जैसे कमी आ रही है वैसे-वैसे ही यहां का राजनीतिक पारा जोड़ पकड़ रहा है। दशकों बाद आई इस तबाही ने हरियाणा-यूपी सीमा पर बने हथिनीकुंड बैराज को विवादो के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। आम आदमी पार्टी (आप) ने हरियाणा की भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) सरकार पर राजधानी में बाढ़ लाने के लिए जानबूझकर बैराज के कुप्रबंधन का आरोप लगाया है। तो वहीं हरियाणा सरकार की तरफ से भी इस मुद्दे पर बैराज प्रबंधन के नियमों की दुहाई दी जा रही है। 

इसी क्रम में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के सलाहकार (सिंचाई) देवेंद्र सिंह ने अपने एक बयान में बैराज और बांध के बीच का अंतर समझाया। उन्होंने कहा कि हथिनीकुंड एक बैराज है, जो पानी के प्रवाह को नियंत्रित करता है। यह कोई बांध नहीं है, जिसमें पानी जमा किया जा सके। बैराज की सुरक्षा के लिए यमुना नदी में जो पानी छोड़ा गया है, वह पानी अत्यधिक बारिश के कारण हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड से लगातार आ रहा था।

क्यों हुआ हथिनीकुंड बैराज का निर्माण?

हथिनीकुंड बैराज (एचकेबी) हरियाणा, यमुनागर डिस्ट्रिक्ट के ताजेवाला गांव में स्थित है। यहीं से यमुना उत्तराखंड के यमुनोत्री में अपने उद्गम स्थल से 172 किमी दूर के मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है। हथिनीकुंड बैराज से पहले अंग्रेजो ने 1873 में यहां ताजेवाला बैराज का निर्माण करवाया था। इसी को बदलते हुए 1998 में हथिनीकुंड बैराज बनाया गया। यह ताजेवाला बैराज से 3-4 किमी ऊपर की ओर स्थित है। वर्तमान में इस बैराज का प्रयोग नहीं किया जाता।

हथिनीकुंड बैराज का जल विनियमन ऊपरी यमुना नदी बोर्ड द्वारा नियंत्रित किया जाता है। इस बोर्ड का गठन 12 मई, 1994 को किया गया था। इसका प्रतिनिधित्व नदी के  तटवर्ती हितधारक राज्य करते हैं। इन राज्यों में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान शामिल है।

इस बोर्ड द्वारा यमुना के जल बटवारे को लेकर कई समझौते हुए। इसी के तहत 1996 में हथिनीकुंड बैराज के निर्माण कार्य पर मुहर लगी। बैराज 1998 में बनकर तैयार हो गया। इसका उद्घाटन 1999 में हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री बंसी लाल ने किया था। लेकिन इसने पूरी तरह से काम करना 2002 मे ही शुरू किया था। वर्तमान में इसमें 18 फ्लडगेट हैं। 

दिल्ली के लिए कितना जरूरी है हथिनीकुंड बैराज?

समझौते के अनुसार, हथिनीकुंड बैराज हिमाचल प्रदेश से आने वाले पानी के प्रवाह को नियंत्रित करता है। साथ ही यह यमुना की दो मुख्य धाराओं, हरियाणा में पश्चिमी यमुना नहर (डब्ल्यूवाईसी) और उत्तर प्रदेश में पूर्वी यमुना नहर (ईवाईसी) के बीच पानी का हिस्सा वितरित करता है। 

हथिनीकुंड दिल्ली से महज 200 किलोमीटर की दूरी पर बना हुआ है। यहां से छोड़ा हुआ पानी 72 घंटों से भी कम समय में दिल्ली पहुंच जाता है। इसके साथ ही दिल्ली की लगभग 60% जल आपूर्ति भी इसी बैराज से होती है। यह सुनिश्चित करता है कि दिल्ली को हर साल यमुना से 0.580 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी मिले। यह दक्षिणी दिल्ली के ओखला तक यहां की सभी बैराजों को नियंत्रित करता है। 

कौन संभालता है हथिनीकुंड बैराज का प्रबंधन?

हथिनीकुंड बैराज यमुना में 10 क्यूमेक (घन मीटर प्रति सेकंड) पानी का न्यूनतम प्रवाह सुनिश्चित करता है। एक क्यूमेक 35.5 क्यूसेक (घन फीट प्रति सेकंड) के बराबर होता है।

जल शक्ति मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार बैराज यमुना नदी पर पानी के प्रवाह को नहीं रोकता है। बैराजों में बांधो की तरह बाढ़ नियंत्रण चैनल नहीं होता। यह सिर्फ केंद्रीय जल आयोग के समझौते और जल बंटवारे के दिशानिर्देशों के अनुसार ही जल प्रवाह को नियंत्रित करता है। बैराज का प्रबंधन हरियाणा सरकार द्वारा दिशानिर्देशों के अनुसार किया जाता है।

'आप' का आरोप: हथिनीकुंड का सारा पानी दिल्ली में छोड़ रही है हरियाणा सरकार

दिल्ली की आप सरकार ने शुक्रवार को भाजपा शासित हरियाणा सरकार पर हथिनीकुंड से सारा पानी दिल्ली के लिए छोड़ने और अतिरिक्त पानी उत्तर प्रदेश को नहीं देने का आरोप लगाया। पार्टी ने कहा कि अगर अतिरिक्त पानी को उत्तर प्रदेश की ओर मोड़ दिया गया होता तो दिल्ली में बाढ़ नहीं आती.

आप के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा,"10 जुलाई से हरियाणा सरकार एक दिशा में पानी छोड़ रही है, जबकि इसे तीनों राज्यों में समान रूप से वितरित किया जा सकता था। दिल्ली का बाढ़ एक संगठित योजना है। भाजपा ने जानबूझकर राष्ट्रीय राजधानी को इस स्थिति में धकेल दिया और लोगों को राजनीतिक कारणों से पीड़ित किया है। ”

क्या है हथिनीकुंड बैराज से जल-बटवारे का फॉर्मूला?

हरियाणा सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग के कार्यकारी अभियंता संदीप कुमार ने कहा कि केंद्रीय जल आयोग का (सीडब्ल्यूसी) जल बंटवारा-फॉर्मूला तब अपनाया जाता है जब पानी का प्रवाह 1 लाख क्यूसेक से नीचे आ जाता है। ऐसी परिस्थिति में 15,000 क्यूसेक पश्चिमी नहर में और 2,000 क्यूसेक पूर्वी नहर में छोड़ा जाता है। शेष मुख्य यमुना में प्रवाहित किया जाता है।

उन्होंने कहा, "अगर पानी का प्रवाह 1 लाख क्यूसेक से अधिक हो जाता है, तो पश्चिमी और पूर्वी नहरों में कोई प्रवाह नहीं होगा और पूरा पानी मुख्य यमुना में छोड़ दिया जाएगा क्योंकि दो नहरें पानी के उच्च प्रवाह को रोक नहीं सकती हैं।" उन्होंने कहा, ऐसा इसलिए है क्योंकि क्यूसेक प्रवाह के माध्यम से मापी जाने वाली पानी की उच्च तीव्रता मानव निर्मित नहरों को नुकसान पहुंचा सकती है।

शुक्रवार को दोपहर 3 बजे हथिनीकुंड में पानी का प्रवाह घटकर 58,495 क्यूसेक हो गया था। इस कारण पश्चिमी नहर में 10,510 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। यह नहर दिल्ली के उत्तरी हिस्सों को पीने का पानी प्रदान करता है। इस दौरान पूर्वी नहर में कोई पानी नहीं छोड़ा गया। इसकी वजह बताते हुए एक अधिकारी ने कहा, "यूपी ने पानी की मांग नहीं की है क्योंकि यूपी में पूर्वी नहर में दरार है। जब यूपी सरकार मांग करेगी तब पानी छोड़ दिया जाएगा।"

दिल्ली की बाढ़ पर आप बनाम भाजपा

आप के एक प्रवक्ता ने कहा: “तो केंद्र की योजना हमेशा यह थी कि जब भी यमुना में कोई प्राकृतिक आपदा आती है, तो दिल्ली पर दबाव पड़ेगा। अगर पश्चिमी और पूर्वी यमुना नहरें सिंचाई के लिए बनी भी हैं तो ऐसी आपदा की स्थिति में इन्हें खोला क्यों नहीं जा सकता? और अगर यह सब सचमुच सच था, तो आप द्वारा इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाने के बाद आज पश्चिमी और पूर्वी दोनों नहरों में पानी कैसे छोड़ा जाने लगा? क्या सीडब्ल्यूसी के दिशानिर्देश इतने अचानक बदल गए?”

दिल्ली बीजेपी प्रमुख वीरेंद्र सचदेवा ने आप के आरोपों को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा, ''राजनीतिक नेता यह तय नहीं करते कि किसी बैराज या बांध से कब और कितना पानी छोड़ा जाएगा, लेकिन तकनीकी अधिकारी ऐसा निर्णय लेते हैं।''

क्या हथिनीकुंड का पानी है बाढ़ की मुख्य वजह?

केंद्रीय जल आयोग के अनुसार दिल्ली में बाढ़ की मुख्य वजह लोकल मैदानी इलाकों में होने वाली बारिश है।इसमें हथिनीकुंड बैराज से छोड़े गए जल की भूमिका काफी कम है। उन्होंने बताया कि मॉनसून के मौसम में हथिनीकुंड बैराज से समान्यतः 38,000-48,000 क्यूसेक पानी छोड़ा जाता है। हालांकि रविवार को इसे बढ़ाकर 60,000 क्यूसेक कर दिया गया। लेकिन जल्द ही पहाड़ियों में बारिश कम होते ही यह 50,000 क्यूसेक से नीचे पहुंच गया। 

मंगलवार को मौसम वैज्ञानिकों ने बारिश को लेकर हिमाचल प्रदेश में येलो अलर्ट और उत्तराखंड में ऑरेंज अलर्ट जारी किया था। रविवार को हरियाणा में हुई बारिश के कारण भी सोमवार को यमुना के जल स्तर में बढ़ोतरी देखी गई थी। इन राज्यों में आम दिनों से ज्यादा बारिश की सबसे मुख्य वजह ग्लोबल वार्मिंग बताई जा रही है।

दिल्ली की बाढ़ में हथिनीकुंड के योगदान का इतिहास

दिल्ली की कई जगहों में यमुना का पानी खतरे के निशान (205.33 मी) को पार कर 208.66 मी तक पहुंच गया। इसने 1978 में आई बाढ़ का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया, जो की 207.49 मी था। तब पानी का नियंत्रण तेजावाला बैराज द्वारा किया जाता था। उस दौरान इसी बैराज से 0.72 मिलियन क्यूसेक जल छोड़ा गया था। वर्ष 2010 के दौरान भी दिल्ली में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई थी। तब हथिनीकुंड बैराज से 0.7 मिलियन क्यूसेक से भी ज्यादा जल छोड़ा गया था। लेकिन तब भी यमुना का जल स्तर 1978 के रिकॉर्ड से नीचे रहा। यही हालात तब भी रहे जब 2013 में हथिनीकुंड बैराज से 0.81 मिलियन क्यूसेक और 2019 में 0.83 मिलियन क्यूसेक से भी ज्यादा पानी छोड़ा गया था। 

हैरानी की बात यह है कि इस बार हथिनीकुंड बैराज से 0.31 मिलियन क्यूसेक से भी कम जल छोड़ा गया वो भी मात्र दो घंटों के लिए। 

बाढ़ के असली खलनायक- इंसान

बांधों, नदियों और लोगों पर दक्षिण एशियाई नेटवर्क (एसएएनडीआरपी)  के समन्वयक हिमांशु ठक्कर ने बताया कि दिल्ली में आए इस प्रलय की मुख्य वजह लोगों द्वारा यमुना के तटीय और आस पास के मैदानी इलाकों का अतिक्रमण है। तटीय इलाकों के किनारे बनी कंक्रीट की सड़क ओवरफ्लो की स्थिति में जमीन द्वारा पानी को सोखने से रोकती है।यही वजह है कि दिल्ली में ज्यादा समय तक यमुना खतरे के निशान से ऊपर रही।

इसके अलावा दिल्ली से बाहर के राज्यों में यमुना से बड़ी मात्रा में होने वाला अवैध रेत खलन भी इसके लिए जिम्मेदार है। इससे दिल्ली तक पहुंचने वाले जल में सिल्ट इखट्टा होता रहता है जो की यमुना के निर्बाध प्रवाह को रोकता है। सिल्ट में सीवर के कचरों और यमुना पर बनाय जा रहे पुल के मलवों से भी बढ़ोतरी होती है। दिल्ली में यमुना के रास्ते कुल 30 पुल है जिनमे से पांच अभी भी निर्माणाधीन है।

नालों की कू व्यवस्था से हुई केंद्रीय दिल्ली पानी-पानी

इसके अलावा राज घाट, आईटीओ और सुप्रीम कोर्ट के पास दिल्ली गेट नाला और नाला नं-12 के टूट जाने से भी इस क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई। दिल्ली में सभी नालों के रेगुलेटर का मुंह 202 मी. या उससे नीचे है। आईटीओ के पास स्थित नाला नं-12 पर लगे लोहे का रेगुलेटर गेट 208 मी तक उठे पानी के दबाव से टूट गया। वहीं राज घाट के पास स्थित दिल्ली गेट नाले का पानी बाढ़ की वजह से यमुना की ओर जाने की बजाय शहर की ओर उल्टी दिशा में बहने लगा। इस कारण दिल्ली के केंद्रीय क्षेत्र में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई।