Marital Rape: जानिए क्यों भारतीय समाज मैरिटल रेप से अब भी अंजान है और भारत में मैरिटल रेप की स्थिति क्या है?
Marital Rape: आज भी मैरिटल रेप 32 देशों में अपराधिक श्रेणी में नही गिना जाता है और भारत भी इन देशों में से एक है। आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 के अनुसार मैरिटल रेप को अपराध नही माना जाता है।
नो का मतलब नो होता है। उसे बोलने वाली लड़की कोई परिचित हो, फ्रेंड हो, गर्लफ्रेंड हो, सेक्स-वर्कर हो या आपकी अपनी बीवी ही क्यों न हो। ‘ नो मींस नो’। पिंक मूवी का ये मोनोलॉग शारीरिक संबंधों में अनुमति की महत्ता को को बताता है, कि कैसे बिना अनुमति के या ना कहे जाने पर भी शारीरिक रिश्तों को स्थापित करना एक जबरदस्ती है, रेप है। जो कि एक गंभीर कानूनन अपराध भी है। परंतु आज भी मैरिटल रेप 32 देशों में अपराधिक श्रेणी में नही गिना जाता है और भारत भी इन देशों में से एक है। आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 के अनुसार मैरिटल रेप को अपराध नही माना जाता है।
आखिर क्या है आईपीसी धारा 375 का अपवाद-2 ?
आईपीसी की धारा 375 के अपवाद-2 में कहा गया है कि अगर किसी विवाहित महिला की उम्र 15 साल से अधिक है तो ऐसे मे उसके पति द्वारा जबरन संबंध बनाए जाते है तो पति के खिलाफ रेप का मामला दर्ज नही किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आईपीसी धारा 375 के अपवाद-2 के अनुसार 15 से 18 साल की पत्नी से उसका पति संबंध बनाता है तो उसे अपराध नहीं माना जायेगा।
भारत में मैरिटल रेप की स्थिति
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (2019 - 21) के अनुसार 29.3 प्रतिशत वैवाहिक महिलाएं जिनकी उम्र 18 – 49 साल है वे वैवाहिक हिंसा की शिकार हैं। जिनमे से 1.5 प्रतिशत महिलाएं यौन अपराध से पीड़ित है। मैरिटल रेप को लेकर भारतीय समाज मे एक उलझन देखने को मिलती है और इसका उदाहरण हमे हाल ही में मैरिटल रेप मामले को लेकर हाईकोर्ट सुनवाई में देखने को मिला है। मामले पर सुनवाई कर रहे जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस हरिशंकर के विचारों में कानून के प्रावधानों को हटाने को लेकर मतभेद था। जहां एक और जस्टिस राजीव शकधर ने मैरिटल रेप को अपराध माने जाने की बात कही और आईपीसी की धारा 375 के अपवाद-2 को असंवैधानिक बताया तो वहीं दूसरी तरफ जस्टिस सी हरिशंकर इससे सहमत नही हुए और उन्होंने कहा धारा में बदलाव करने की जरूरत नहीं है।
इसके साथ ही मैरिटल रेप का यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में भी जाएगा। जस्टिस सी हरीशंकर और केंद्र सरकार द्वारा 2017 में मैरिटल रेप को लेकर की गई टिप्पणी मे काफी समानता है जिसमें विवाह को समाज के पवित्र बंधन के रूप में बताया गया, जो पति और पत्नी का संबध है जिसमे सह निर्भरता हैं ना कि अपराध, और जब अपराध है ही नही तो कोई अपराधी भी नही हो सकता, जो भारतीय समाज के दृष्टिकोण को दर्शाता है। वहीं भारतीय समाज में विवाह को एक ऐसी संस्था के रूप में देखा जाता है जिसमे पवित्रता है, सह निर्भरता है तथा जहां पति पत्नी के रिश्ते मे पति को पत्नी के स्वामित्व के रूप में देखा गया है। वहीं हमारे समाज में पत्नी की रक्षा करना, उसकी देखभाल करना भी पति के कर्तव्यों के रूप देखा जाता है। इसके अलावा लोगों का धार्मिक - सांस्कृतिक विश्वास, निरक्षरता, गरीबी आदि कुछ ऐसे तत्व हैं जो मैरिटल रेप को भारतीय समाज में अंजान बना देते हैं और एक ऐसे समाज की ओर इशारा करते हैं जहां मैरिटल रेप आज भी एक उलझन बना हुआ है, जहां विवाहित महिला को ‘नो’ बोलने का अधिकार नहीं है। मैरिटल रेप अवधारणा और उससे जुड़े प्रभावों को समझने के लिए शायद अभी भारतीय आमजन को और बहुत से सामाजिक बदलावों से गुजरना होगा।