Prashant Kishor: क्या आई-पैक के मालिक प्रशांत किशोर के बारे में ये जानते हैं आप ?

साल 2014 में बीजेपी के चुनावी मैनेजमेंट की जिम्मेदारी संभालने वाले प्रशांत किशोर, बिहार के सासाराम के रहने वाले हैं. लोग उन्हें पीके भी कहते हैं. वो चुनावी रणनीति बनाने वाली कंपनी आई-पैक यानी इंडियन पालिटिकल एक्शन कमेटी के मालिक हैं. प्रशांत किशोर जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं.

April 26, 2022 - 21:22
April 26, 2022 - 21:22
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साल 2014 में  बीजेपी के चुनावी मैनेजमेंट की जिम्मेदारी संभालने वाले प्रशांत किशोर, बिहार के सासाराम के रहने वाले हैं. लोग उन्हें पीके भी कहते हैं. वो चुनावी रणनीति बनाने वाली कंपनी आई-पैक यानी इंडियन पालिटिकल एक्शन कमेटी के मालिक हैं. प्रशांत किशोर जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं. चुनावी रणनीतिकार बनने से पहले प्रशांत किशोर संयुक्त राष्ट्र के साथ काम करते थे. संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करते हुए उन्होंने एक रिसर्च पेपर लिखा. जिसमें देश के चार विकसित राज्यों की तुलना थी. इसमें गुजरात में कुपोषण की समस्या का भी ज़िक्र था. उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रशांत किशोर को भारत आकर उनके साथ काम करने का प्रस्ताव दिया. 


भारत आने के बाद नरेंद्र मोदी के  सलाहकार के रूप में काम शुरू किया. 2014 की चुनावी रणनीति बनाने से पहले पीके नरेंद्र मोदी के लिए भाषण लिखते थे.पीके क्यों एक सफल चुनावी रणनीतिकार माने जाते हैं,उसका  कारण है  2014 का लोकसभा चुनाव  में बीजेपी के साथ काम किया जिसमें  बीजेपी की सरकार बनी, 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ काम किया जिसमें नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने, 2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए भी काम किया जिसमें वो मुख्यमंत्री बने,
 हाल ही में हुए बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी के चुनावी रणनीतिकार भी वही थे. 


2019 के आंध्र प्रदेश विधानसभा की बात करें तो उसमें प्रशांत किशोर ने जगन मोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई. 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ भी काम किया लेकिन उस चुनाव में  कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन  नहीं कर पाई. वहीं पीके का नाम विवादों में भी आता रहता है. 2015  के बिहार विधानसभा चुनाव में 'बात बिहार की' नाम से एक कैंपेन पर कांग्रेस नेता शाश्वत गौतम ने प्रशांत पर आइडिया चुराने को लेकर एफआईआर दर्ज कराई थी. जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहते हुए सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों पर पार्टी लाइन से उलट बयान दिया था,जिसके  चलते उन्हें पार्टी से बर्खाश्त कर दिया गया था.

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