सुप्रीम कोर्ट ने लगाई साइलेंस ऑफ टॉवर पर रोक, पारसी समुदाय सरकार के फैंसले से नाराज़
हाल ही में पारसी तौर तरीके से अंतिम संस्कार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टावर ऑफ साइलेंस पर अस्थाई रुप से रोक लगा दी है।
पारसी समुदाय के लोग लंबे समय से कोरोना से जान गवां चुके उनके परिजनों का अंतिम संस्कार पारसी धर्म के तरीके से करने की छूट की मांग कर रहे हैं।
वहीं केंद्र ने अंतिम संस्कार के लिए जारी SOP ( standard operating procedure ) को बदलने से इन्कार करते हुए , सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दाख़िल करते हुए कहा है कि कोविड से मौत होने पर अंतिम संस्कार का काम पेशेवर द्वारा किया जाता हैं। स्थिति को स्पष्ट करते हुए केंद्र सरकार ने आगे कहा कि मृतकों को ऐसे खुला नही छोड़ा जा सकता , कोविड एक संक्रामक बीमारी है और यह लोगों को नुकसान पहुंचा सकती है।
पारसी धर्म के लोगों के दाह संस्कार की प्रक्रिया -
पारसी समुदाय में शवों को दफनानें या दाह संस्कार करने पर रोक है । पारसी धर्म में मृतकों को ऊंचे खुलें स्थानों (पॉवर ऑफ साइलेंस) पर रखा जाता हैं, ताकि सूर्य की किरणों से शरीर विघटित हो जाए। जिसके बाद गिद्ध मृत शरीरों का भक्षण करते हैं। बता दें कि पॉवर ऑफ साइलेंस गोलाकार खोखली इमारत के रूप में होता है, यहां पारसी लोग मृत शरीरों का अंतिम संस्कार करते हैं। बता दें कि करीब तीन हज़ार वर्षों से पारसी धर्म के लोग 'दोखमेनाशिनी' नाम की अन्तिम संस्कार की इस परंपरा को निभातें आ रहें हैं।
भारत में मुंबई के मालाबार हिल पर एक टावर ऑफ साइलेंस स्थित तथा मालाबार हिल्स चारों ओर से घने जंगलों से घिरा हुआ क्षेत्र है । ऐसा कहा जाता है कि इसका निर्माण 19वीं सदी में हुआ था। इस टावर ऑफ साइलेंस में केवल एक लोहे का दरवाजा है , टॉवर का ऊपरी हिस्सा खुला रहता है जहां शवों को रखा जाता है।
पारसी इस दाह संस्कार की प्रक्रिया को ही क्यों अपनाते हैं ?
पारसी अग्नि, जल व पृथ्वी को बहुत पवित्र मानते हैं। इसलिए समाज में मृत्यु हो जाने पर देह को इनके हवालें नही करते हैं। इसकी बजाए वे शवों को आकाश के हवाले कर देते हैं।
अन्य धर्मों में दाह संस्कार की क्या प्रक्रिया हैं ?
हर धर्म समुदाय के लोग अपने लोगों का अंतिम संस्कार अपने रीति से करते हैं , जैसे हिन्दू शवों को जलाते है वहीं हिंदुओ में बच्चों को दफनाने का प्रचलन है। वहीं मुस्लिम उन्हें श्मशान या कब्रिस्तान में दफनातें हैं, इसाई समुदाय के लोग भी बड़े ताबूतों में रखकर शवों को दफनातें हैं जबकि गोसाई, नाथ और वैरागी समुदाय के लोग मृतकों को समाधि देते हैं , सिक्खों में भी मृतकों को जलाया जाता है। अलग-अलग धर्मो में मृत्यु के बाद दाह संस्कार की अलग-अलग विधियां हैं।
संविधान में क्या है प्रावधान –
संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त है। , हालांकि इसमें कुछ विषय अपवाद भी हैं , जैसे- नैतिकता , सदाचार और अपराध उद्दीपन आदि। इसी में एक है लोक स्वास्थ्य यानि कोई चीज यदि लोक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हैं तो उस आधार पर धार्मिक स्वतंत्रता पर रोक लगाई जा सकती है।
पारसी धर्म का इतिहास -
पारसी धर्म दुनिया के सबसे पुराने एकेश्वरवाद धर्मों में से एक है। इसकी स्थापना पैगंबर जराथूस्ट्र ने प्राचीन ईरान में लगभग 3500 साल पहले की थी। लगभग 1000 सालों तक पारसी धर्म दुनिया के सबसे ताकतवर धर्मों में से एक रहा। 650 ईसा पूर्व से 650 ईसवी तक यह ईरान का अधिकारिक धर्म रहा। आज के समय में पारसी धर्म के अनुयायियों की कुल आबादी केवल 26 लाख़ बची है।