तमिलनाडु से शुरू हुई मुफ्तखोरी की राजनीति का रोग बेहद पुराना, लोगों की समझ पर हावी होते उपहार
उत्तर प्रदेश, मणिपुर , उत्तराखंड, गोवा और पंजाब राज्यों में विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज हो चुकी हैं। सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने घोषणापत्र को लेकर एकदम तैयार हैं, और घोषणाओं से जनता को अपनी तरफ़ खींचने में लगी हुई हैं। ऐसे में यह जानना अहम है कि किस पार्टी ने जनता को अपने पाले में लाने के लिए क्या वादे किए हैं, और उनका सामाजिक प्रभाव क्या रहेगा?
पिछले दिनों कुछ राजनीतिक पार्टियों ने अपने-अपने घोषणापत्रों का ऐलान करते हुए अनेक प्रकार की योजनाओं का जिक्र किया है। पार्टियों द्वारा किए गए वादों को देखा जाए तो यह लगना लाजमी है कि सरकार चाहे कहीं भी, किसी भी पार्टी की बने विकास की बाढ़ आना तय है। ऐसे में आईए कुछ पार्टियों द्वारा किए गए वायदों पर नज़र डालते हैं।
आम आदमी पार्टी - पंजाब चुनाव को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बड़ा ऐलान किया है। आम आदमी पार्टी द्वारा पंजाब में किए गए ऐलान के अनुसार अगर पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनती है, तो 18 साल से अधिक उम्र की हर महिला को 1000₹ दिए जाएंगे।
कांग्रेस - प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में घोषणा पत्र जारी करते हुए बताया कि 10 + 2 में लड़कियों को स्मार्टफोन दिया जायेगा और स्नातक पास छात्राओं को स्कूटी मिलेगी। वही पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा है कि अगर पंजाब में कांग्रेस की सरकार आती है तो हर घरेलू महिला को 2000 रुपए दिए जाएंगे।
भारतीय जनता पार्टी – भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश के स्नातक, परास्नातक में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के लिए मोबाइल व टेबलेट वितरण की योजना की शुरुआत कर दी है। भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव को देखते हुए देश में श्रम कार्ड की भी शुरुआत की है, जिसके अंतर्गत व्यक्ति के अकाउंट में प्रतिमाह ₹500 भेजे जाएंगे।
इसी प्रकार अन्य पार्टियां भी अपने-अपने राज्यों में मुफ्तखोरी की राजनीति की शुरुआत कर चुकी हैं अब जनता पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा यह देखने वाली बात होगी।
क्या है मुफ्तखोरी की राजनीति और इसका इतिहास
भारत में मुफ्तखोरी की राजनीति का मर्ज बहुत पुराना है। यह सबसे पहले भारत में साल 1967 में तमिलनाडु के विधानसभा चुनावों में देखने को मिला था। वहां द्रमुक ने लोगों को ₹1 प्रति किलो चावल देने का वादा किया था, यह वादा उस समय किया गया, जब देश खाद्यान्न के संकट से जूझ रहा था। उसके बाद परिणाम यह हुआ कि द्रमुक ने तमिलनाडु से कांग्रेस का सफाया कर दिया।
मुफ्तखोरी की राजनीति एक दीमक के समान प्रतित होती है, जो भविष्य में अर्थव्यवस्था को गर्त में ले जाती है। कुछ लोगों से बात करने पर पता चला कि लोग अच्छी सुविधा के बदले कीमत चुकाना चाहते हैं, किंतु कुछ राजनितिक पार्टियां चुनाव में अपना चेहरा चमकाने के लिए जनता से अनेक प्रकार के मुफ्त वादे करती हैं। किए गए वादों को पूरा करने के चक्कर में जनता से कर का भार अप्रत्यक्ष रूप से वसूला जाता है तथा अर्थव्यवस्था भी गिर जाती है। जिसके बाद उक्त राज्य सरकारें केंद्र सरकार की ओर देखती हैं कि उन्हें वहां से कुछ सहायता प्राप्त हो जाए। ये वही राजनितिक पार्टियां हैं जो विकास की बजाए अपने वादे पूरे करने को महत्त्व देती हैं, और परिणामस्वरूप अपना बजट घाटे के रूप में पेश करती हैं।
इस प्रकार की राजनीति से आम लोगों के जीवन पर क्या असर पड़ेगा ?
बता दें उत्तर प्रदेश का 2021-22 का सालाना बजट 5,50,270.78 करोड़ रुपए था , जिसमे से सरकार छात्र-छात्राओं को मोबाइल टेबलेट वितरण में 27598 करोड़ रुपए लगाएगी। वहीं कोरॉना महामारी ने बीते दो सालों में स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोलकर सबके सामने रख दी है, उसके बावजूद भी स्वास्थ्य को चुनाव का मुख्य मुद्दा नहीं बनाया गया है। जिसकी वज़ह से महामारी के इस दौर में भी केवल लोक लुभावनी योजना को मुद्दा बनाया गया है। बता दें कि स्वास्थ्य का बुनियादी ढांचा विकसित करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने केवल 1073 करोड़ रुपए निर्धारित किए हैं।
कुछ महीनों बाद जिन राज्यों में आगामी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं उनके भी आंकड़े ऐसे ही हैं। ये पार्टियां आम जनता के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाओं जैसे – शिक्षा, अस्पताल , यातायात की अच्छी सुविधा आदि को दरकिनार करते हुए लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए नए-नए हथकंडे आजमाने में लग गई हैं। इसका असर आगामी चुनाव पर क्या पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि जनता द्वारा पार्टियों से आवश्यक मुद्दों को अपने घोषणा पत्रों में शामिल करने की गुहार लगाई जाएगी, या फ्री में चीजें बांटकर वोट बटोरने की योजना कारगर साबित होगी।
मुफ्तखोरी की राजनीति पर विशेषज्ञों की राय
इस बारे में द लोकदूत टीम की इलाहाबाद राज्य विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर विनोद कुमार से हुई बातचीत में प्रो. कुमार ने बताया कि जनता को इस बात को समझना होगा कि ये पार्टियां कुछ भी मुफ्त में नहीं देती हैं। बल्कि ये हमारे दिए हुए कर से अपनी मुफ्तखोरी के वादों को पूरा करती हैं। आगामी कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश, पंजाब , तमिलनाडु समेत कुछ राज्यों में चुनाव होने वाला है, जिनमें पार्टियां फिर से इस प्रकार के लुभाने वादों पर जोर देंगी। परंतु वादों पर नहीं बल्कि विकास और रोजगार के मुद्दों पर वोट देना ही जनता के लिए हितकर सिद्ध होगा।