Global Warming: ग्लोबल वार्मिंग से पैदा हो रही महामारियों और सूखे से कैसे निपटेगा भारत?

अंतरराष्ट्रीय जलवायु रिपोर्ट के अनुसार तेजी से बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के कारण 21वीं सदी के अंत तक पूरे विश्व के तापमान में लगभग 4 डिग्री सेंटीग्रेड की होगी बढ़ोतरी। जिसकी वजह से 2036 से 2065 के बीच में गर्म हवाओं का बढ़ेगा खतरा। आने वाले 100 सालों में बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग को नहीं रोके जाने पर 3 से 4 मीटर समुद्री जल स्तर बढ़ने का है अनुमान। भारत की कृषि व्यवस्था पर मंडरा रहा है सूखे और अकाल का खतरा।

January 5, 2022 - 15:12
January 5, 2022 - 17:39
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Global Warming: ग्लोबल वार्मिंग से पैदा हो रही महामारियों और सूखे से कैसे निपटेगा भारत?
global warming: Photo : gettyimages

ग्लोबल वार्मिंग के कारण तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। जिसके बारे में अक्टूबर महीने में जी-20 देशों ने रोम में एक बैठक करते हुए, अपनी अंतरराष्ट्रीय जलवायु रिपोर्ट में कहा था कि जिस तरह कार्बन उत्सर्जन तेजी से पर्यावरण में बढ़ रहा है, उसे देखते हुए अनुमान लगाया गया है कि 21वीं सदी के अंत तक पूरे विश्व के तापमान में लगभग 4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी हो सकती है। जिसका असर सभी देशों पर पड़ेगा और खासकर भारत जैसे देशों में 2036 से 2065 तक के बीच लू (गर्म हवाओं) का कहर बहुत ज्यादा बढ़ सकता है, जो आज के समय से 25 गुना अधिक होगा। यह रिपोर्ट 40 से भी अधिक वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा तैयार की गई थी, जो यूरो-मेडिटेरेनियन सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज से जुड़े हुए थे। इस रिपोर्ट को मानें तो भविष्य में होने वाले जलवायु परिवर्तनों का प्रभाव सभी देशों के लिए बेहद विनाशकारी साबित हो सकता है।

बता दें कि जी-20 एक अंतरराष्ट्रीय सरकारी मंच है‌। जिसमें भारत समेत 19 देश और यूरोपीय संघ शामिल हैं।  यह अंतरराष्ट्रीय संगठन वैश्विक स्तर जलवायु परिवर्तन की रोकथाम, वित्तीय स्थिरता और सतत विकास से जुड़े तमाम आर्थिक मुद्दों को संबोधित करने का काम करती है।

क्या जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग अलग-अलग हैं ?

एनवायर्नमेंटल एंड एनर्जी स्टडीज इंस्टीट्यूट के अनुसार,  ‘ग्लोबल वार्मिंग’ और ‘जलवायु परिवर्तन’ शब्दों का उपयोग अक्सर सापेक्ष रूप से किया जाता  है, लेकिन ‘जलवायु परिवर्तन’ शब्द खास तौर पर मौसम के अलावा, तापमान, वर्षा, आर्द्रता, हवा, वायुमंडलीय दबाव, समुद्र के तापमान, आदि में लगातार होने वाले परिवर्तनों को परिभाषित करने के लिए काम में लाया जाता है। जबकि ग्लोबल वार्मिंग शब्द को पृथ्वी के औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि के लिए जाना जाता है।

चिन्ताजनक है समुद्रों का बढ़ता जल स्तर

यह तो आप सभी जानते हैं कि पृथ्वी पर 71% समुद्र का जल फैला हुआ है, इसके अलावा 1.6% पानी पृथ्वी के अंदर तथा 0.001% वाष्प और बादलों के रूप में है। वहीं पृथ्वी पर पीने योग्य पानी केवल 3% है, जिसमें से 2.4% पानी ग्लेशियर और उत्तरी दक्षिणी ध्रुव में बर्फ के रूप में जमा है, बाकी 0.6% पानी नदियों और झीलों में है।

समुद्रों के बढ़ते जलस्तर की वजह ग्लोबल वार्मिंग और वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान ही है। संपूर्ण विश्व के ग्लेशियर और भूमि आधारित बर्फ की चादरें तेजी से पिघलती जा रही हैं।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ने साल 2019 की रिपोर्ट में चिंता जाहिर करते हुए बताया कि जिस तरह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, उस हिसाब से साल 2100 तक 80% बर्फ पिघल कर समाप्त हो सकती है। इन ग्लेशियर से निकला पानी सीधे समुद्र में जाता है। जिससे समुद्र के जलस्तर में बढ़त देखी जा रही है। 20 वीं सदी में दुनिया भर के समुद्रों का जलस्तर लगभग 19 सेंमी बढ़ा है। अगर ऐसे ही बर्फ तेजी से पिघलती रही तो आने वाले 100 सालों में समुद्र का जल स्तर 2 से 3 मीटर तक बढ़ सकता है। जिसके कारण समुद्र के किनारे बसे हुए देश और शहर जलमग्न हो कर डुब सकते हैं।

ग्लेशियर में दबे हैं जिंदा वायरस

आपने कैप्टन अमेरिका फिल्म तो देखी होगी जिसमें कैप्टन कई सालों तक बर्फ में बेहोशी की हालत में जिंदा दबा रहता है। अगर फिल्मों से बाहर निकले तो यह आप भी अच्छे से जानते हैं कि बर्फ के नीचे कोई चीज सड़ नहीं सकती और वह कई सालों तक सही सलामत रहती है। चाहे वह कोई वायरस हो या जीवाणु विषाणु हो। अमेरिकी वैज्ञानिकों की एक टीम तिब्बत पठार के विशाल ग्लेशियर पर रिसर्च करने गई थी। जिनका उद्देश्य यह पता लगाना था कि इन ग्लेशियर के बर्फो में क्या रहस्य छिपा हुआ है। जब वैज्ञानिकों के सामने रिपोर्ट आई तो सब परेशान हो गए क्योंकि 15000 साल पुराने 28 से भी अधिक अलग-अलग तरह के वायरस जिन्दा दबे पाए गए, अगर ये वायरस बर्फ से बाहर आ जाते हैं, तो दुनिया के लिए बहुत घातक हो सकते हैं। क्योंकि अभी तक हम कोरोना वायरस को भी पूरी तरह खत्म नहीं कर पाए हैं।

पृथ्वी के खत्म होने की भविष्यवाणियां

हमें नहीं पता कि पृथ्वी का अंत होगा या नहीं लेकिन इतना जरुर पता है, कि जिस चीज का सृजन होता है उसका अंत भी होता है। दुनिया के अधिकांश धर्म शास्त्रों में दुनिया में आने वाली प्रलय और विनाश के बारे में भविष्यवाणीयां की गई हैं। जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं।

  • महान गणितज्ञ और भौतिक वैज्ञानिक आइजक न्यूटन ने 2060 तक पूरी दुनिया के खत्म होने की भविष्यवाणी की थी। इस बात का खुलासा उनके द्वारा लिखे गए नोट्स और चिट्ठियों से हुआ था, जो साल 1704 में लिखी गई थी। उन्होंने कहा था कि पृथ्वी पर यदि 2060 की दुनिया बची रही तो यह विनाश की शुरुआत का साल होगा।
  • लिओनार्दो दा विंची ने भी दुनिया के खत्म होने पर एक भविष्यवाणी की थी। जिसके अनुसार पूरी दुनिया में 21 मार्च 40006 को भयंकर बाढ़ आएगी जो 1 नवंबर 40006 तक पूरी दुनिया को समुद्र में डुबा देगी और इस तरह दुनिया खत्म हो जाएगी।
  • प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन विलियन हॉकिंग के अनुसार मानव जाति अधिक से अधिक 1000 साल तक जीवित रह सकती है क्योंकि पृथ्वी जैसा एक गोला या ग्रह 1000 सालो में खत्म हो जाएगा। दुनिया खत्म हो उससे पहले इंसानों को अन्य ग्रहों पर अपनी बस्तियां बसा लेनी चाहिए ।

भारत पर पड़ सकता है सबसे बुरा दुष्प्रभाव

दुनिया की जलवायु में बदलाव होने पर  इसका असर भारत में भी देखने को मिलेगा, क्योंकि भारत तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है और यहां कई तरह के मौसम भी पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में कई जलवायु हॉटस्पॉट हैं। आईपीसीसी के प्रमुख लेखकों में से एक अजय प्रकाश ने फिलहाल की रिपोर्ट में बताया कि भारत जो तीन तरफ समुद्रों से तथा एक तरफ हिमालय की बर्फ के पहाड़ों से घिरा है। अगर यहां तापमान बढ़ता है, तो भारत की स्थिति बेहद खराब होगी और यहां कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा। अगर इन विषयों पर तत्काल कोई कार्रवाई नहीं होती है तो भारत में बदलती जलवायु के कारण यहां की स्थिति जल्द ही काफी दयनीय हो जाएगी।

रिपोर्ट के अनुसार यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि 4 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाती है तो भारत में 2036 से 2065 के आस-पास लू (गर्म हवाओं) का कहर सामान्य से 25 गुना अधिक समय तक रहेगा। अगर विश्व का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस तक भी बढ़ता है तो भी लू का कहर 5 गुना अधिक समय तक रहेगा। अगर इसी तरह देश में गर्मी का कहर बढ़ता रहा तो यह लोगों की आजीविका को भी बुरी तरह से प्रभावित करेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि साल 2050 तक कम उत्सर्जन परिदृश्य में और श्रम उत्पादन में करीब 13.4% की गिरावट आ सकती हैं, और अगर जल्द से जल्द इन समस्याओं का समाधान नहीं सोचा गया तो यह आंकड़ा साल 2080 तक बढ़कर 24 % तक जा सकता है।

जिसकी वज़ह से प्राकृतिक वर्षा जल तथा मौसम पर निर्भर किसानों को भयंकर पानी की कमी से होकर गुजरना पड़ेगा। वहीं, विश्व का तापमान 4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की स्थिति में भारत में साल 2050 तक कृषि के लिए पानी की मांग लगभग 29% बढ़ जाएगी तथा 2036 से 2065 के बीच कृषि संबंधित सूखे के 48% बढ़ने के आसार हैं। इसी तरह कम उत्सर्जन परिदृश्य में 2050 तक पकड़ी जाने वाली समुद्र की मछलियों में भी 8.8% की गिरावट आने के संकेत मिल रहे हैं।   सरल भाषा में कहें तो बदलते जलवायु के कारण आने वाले समय में भारत की स्थिति पर काफी बुरा दुष्प्रभाव पड़ने की संभावना है।