The Earth BioGenome Project: ईबीपी के जरिए उठाए जाएंगे वन्य-जीवों एवं वनस्पतियों के बचाव के कदम
The Earth BioGenome Project ( EBP ) कुल 1.8 मिलियन ज्ञात प्रजातियों के जीनोम मैपिंग भी करेगा। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए 10 साल तक की समय सीमा भी निर्धारित की गई है। इस प्रोजेक्ट को साल 2018 में लॉन्च किया गया था, जिसका एकमात्र उद्देश्य है कि धरती की सभी वनस्पतियों, वन्य-जीवों एवं एककोशिकीय जीवों( Eukaryotes ) का एक पूरा DNA सिक्वेंसिंग कैटालॉग तैयार करना है।
दुनिया भर में जाने कितने ही पौधें होंगे, पौधों की प्रजातियां होंगी, न जाने कितने प्रकार के जंगली जीवों की प्रजातियां भी होंगी, जो अपनी अलग-अलग खासियत के लिए जाने जाते होंगे। इन सबके लिए पूरी दुनिया में लोगों से अपील भी की जा रही है कि इनके प्रति सभी संवेदनशील बने रहें। क्योंकि वनस्पति तथा जीव-जंतुओं की जैव विविधता से ही पृथ्वी का संतुलन बना हुआ हैं एवं इन से ही पृथ्वी का भविष्य भी जुड़ा हुआ है। इसीलिए एक ग्लोबल प्रोजेक्ट ( The Earth BioGenome Project ) अभी सुर्खियों में है जो धरती की सभी ज्ञात प्रजातियों की DNA प्रोफाइलिंग या उनकी जीनोम सिक्वेंसिंग करने में लगा है।
The Earth BioGenome Project ( EBP ) एक बहुत बड़ी परियोजना है जिसके तहत धरती पर पाए जाने वाले हर एक पौधे तथा वन्यजीव प्रजातियों की DNA की मैपिंग की जाएगी यानि पृथ्वी की सभी वनस्पतियों एवं वन्य-जीवों की प्रजातियों की DNA , जीनोम सिक्वेंसिंग की जाएगी।
इस प्रोजेक्ट के मुताबिक 2022 तक 3000 प्रजातियों की DNA सिक्वेंसिंग की जानी है। जिसके अंतर्गत The Earth BioGenome Project ( EBP ) कुल 1.8 मिलियन ज्ञात प्रजातियों के जीनोम मैपिंग भी करेगा। इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए 10 साल तक की समय सीमा भी निर्धारित की गई है। इस प्रोजेक्ट को साल 2018 में लॉन्च किया गया था, जिसका एकमात्र उद्देश्य है कि धरती की सभी वनस्पतियों, वन्य-जीवों एवं एककोशिकीय जीवों( Eukaryotes ) का एक पूरा DNA सिक्वेंसिंग कैटालॉग तैयार करना है। इसके अलावा किन वन्य-जीवों या वनस्पतियों को कौन-सी बीमारियों में कौनसी दवाओं की जरूरत पड़ेगी इससे जुड़े अनुसंधानों को भी इस प्रोजेक्ट में शामिल किया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय संस्थाओं के मुताबिक कम से कम 50% जैव विविधता का जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के चलते इस शताब्दी में अंत हो जाएगा। इसलिए वन्य जीवों तथा वनस्पतियों की DNA सिक्वेंसिंग से जुड़ी डिजिटल लाईब्रेरी बनाना जरुरी हो गया है।
ऐसे में यह प्रश्न उठना भी स्वाभाविक है कि ऐसे प्रोजेक्ट से दुनिया भर में आज तक कितनी ही वन्य जीव प्रजातियों का संरक्षण हो पाया है। लेकिन इस प्रोजेक्ट की उपयोगिता पर विचार किया जाए, तो इसे ऐसे समझा जा सकता है कि जब हम कभी किसी प्रजाति या जीव का DNA सिक्वेंसिंग या जीनोम सिक्वेंसिंग करते हैं तो हमें उस जीव या प्रजाति की उत्पति से जुड़े पहलु एवं उस जीव या प्रजाति की जैविक विशेषताओं को जान सकते है। जैसे:-
- कौनसी प्रजाति या जीव किस वातावरण या मौसम में जीवित रह सकते हैं अथवा नहीं ।
- कौनसी बीमारी से कौनसी प्रजाति जल्दी ग्रस्त हो सकती है।
- ऐसी कौनसी प्रजातियां हैं जिनकी प्रतिरोधक क्षमता बेहतर है और जिसके विकास के लिए काम किया जाना चाहिए।
- किसी प्रजाति की बदलते मौसम, वातावरण या जलवायु के दौरान सहन करने की क्षमता कितनी है।
- कौनसे जीव-जंतुओं की प्रकृति कितनी आक्रमक हो सकती है यानि वे कितने गुस्सा वाले हैं या फिर कितने खतरनाक हो सकते हैं।
इस सबका पता चलने के बाद वन्य जीवों तथा वनस्पति संरक्षण के लिए पर्यावरणविदों, वनस्पति शास्त्रीयों तथा अन्य चिकित्सकों के द्वारा बेहतर तकनीकों के साथ इसे और भी बेहतर किया जा सकता है। जिससे विलुप्त होने वाले वन्य-जीवों या वनस्पतियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है।