ओजोन प्रदूषण का बढ़ता प्रकोप, इसका पर्यावरण और मनुष्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
स्टेट ऑफ एयर रिपोर्ट 2020 के अनुसार विश्व भर में क्रॉनिक ऑब्सटकिटव पल्मोनरी डिजीज से होने वाली 9 लोगों में से 1 व्यक्ति की मौत का कारण ओजोन के संपर्क में आना है।
यह सर्वविदित है कि सूर्य से आने वाली पैराबैंगनी किरणों को रोकने का काम ओजोन परत करती है। ऐसे में जहां ओजोन का न होना संकट पैदा करता है, वहीं ओजोन के संपर्क में आना भी बेहद हानिकारक साबित हो रहा है। स्टेट ऑफ एयर रिपोर्ट 2020 के अनुसार विश्व भर में क्रॉनिक ऑब्सटकिटव पल्मोनरी डिजीज से होने वाली 9 लोगों में से 1 व्यक्ति की मौत का कारण ओजोन के संपर्क में आना है।
ओजोन क्या है ?
ओजोन एक गैस है जो हमारे वातावरण में मौजूद होती है। ओजोन का रासायनिक सूत्र O3 है । ओजोन में तीन ऑक्सीजन परमाणु पाए जाते हैं। ओजोन वातावरण में अस्थाई रूप से उपस्थित होता है। बता दें कि ओजोन, वायुमंडल और जमीनी दोनों स्तरों में उपस्थित होता है। ओजोन हमें सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है।
ओजोन निर्माण और जमीनी ओजोन के कारण नुकसान
जमीनी स्तर पर हानिकारक ओजोन की उत्पत्ति बिजली संयंत्रों, वाहनों और अन्य स्रोतों से हुए प्रदूषण और सूर्य के प्रकाश से मिलकर होती है। दिल्ली में भी सर्दियों के दौरान ऐसे ही स्मॉग का निर्माण होता है।
वहीं जब वायु में घुली ओजोन गैस इंसानों के फेफड़ों में जाती है तो यह गैस फेफड़ों के अल्वेलोइ को बंद करने की कोशिश करती है। ऐसी स्थिति में छाती में दर्द और खांसी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। विटामिन C और विटामिन E का कम सेवन करने वाले व्यक्तियों को ओजोन से अधिक खतरा होता है।
ओजोन गैस का पर्यावरण पर प्रभाव
ओजोन गैस के बढ़ते स्तर से वन्य जीव, वन, जंगल के क्षेत्रों और वनस्पतियों को काफी दुष्प्रभाव पड़ता है। BHU में हुए शोध में सामने आया है कि भारत में फसलों को अधिक नुकसान का कारण ज़मीनी स्तर का ओजोन है।
ओजोन से होने वाली बीमारियां खतरनाक क्यों ?
ओजोन से सबसे ज्यादा खतरा बच्चों को होता है क्योंकि बच्चों के फेफड़े विकसित होने का यह ठीक समय होता है और जब ओजोन गैस का स्तर ज्यादा होता है तो इनके बाहर सक्रिय होने की संभावना अधिक होती है। जिसके कारण बच्चों के लिए खतरा बढ़ जाता है। लंबे समय से ओजोन के संपर्क में आने से भी अस्थमा की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है।
कैसे पहुंच रहा है ओजोन को नुकसान ?
साल 1885 में वैज्ञानिकों ने यह पाया कि अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओजोन परत में एक छेद हो गया है। जो दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। एसी (Ac) और फ्रिज में प्रयोग होने वाली गैसों के कारण ओजोन की परत को काफी क्षति पहुंचती है।
विश्व स्तर पर ओजोन के लिए उठाए गए कदम
संयुक्त राष्ट्र संघ (UN) की आम सभा ने 16 सितंबर को ओज़ोन परत संरक्षण दिवस के रुप में स्वीकार किया है। वहीं 16 सितंबर 1987 को विभिन्न देशों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए, जिसे मोंट्रियल प्रोटोकॉल कहा जाता है। इस प्रोटोकॉल का क्रियान्वयन 1 जनवरी 1989 से हुआ था।
इस मोंट्रियल प्रोटोकॉल के अंतर्गत ऐसा माना गया है कि साल 2050 तक ओजोन परत को नुकसान देने वाली सभी तत्वों के उत्पादन पर नियंत्रण कर लिया जाएगा। बता दें कि इस मोंट्रियल प्रोटोकॉल में भारत भी शामिल है।