India-China News : भारत-चीन सीमा विवाद में गरमाई राजनीति, क्या होगा चीन के नए सीमा क़ानून का भारत पर असर ?
भारत और चीन के बीच विवाद एलएसी पर 3,488 किमी के क्षेत्र में है। वहीं भूटान के साथ चीन का विवाद 400 किमी की सीमा पर है। चीन के नए कानून का असर भारत-चीन विवाद पर पड़ सकता है। हाल ही की इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक चीन ने अरुणाचल प्रदेश की 15 जगहों के नाम बदलकर चीनी भाषा में रख दिए हैं।
चीन द्वारा भारत की सीमा पर अपने देश का झंडा फहराये जाने की घटना सामने आई है, जिसे लेकर विवाद काफी बढ़ गया है, और इस पर राजनीति भी शुरू हो गई है। हालांकि कुछ दावों के अनुसार यह चीन की प्रोपेगैंडा फैलाने की कोशिश है, झंडा फहराये जाने जैसा कुछ नहीं हुआ है। भारतीय सीमा पर झंडा फहराने वाली खबर का सबसे पहला स्त्रोत चीनी मीडिया ‘सिन्हुआ’ बताया जा रहा है, लेकिन वहीं भारत की मीडिया इस बात का खंडन कर रही है। दरअसल, चीन ने गलवान घाटी पर झंडा फहराए जाने का वीडियो जारी किया था, जिसके बाद से यह विवाद खड़ा हो गया है।
भारत और चीन के बीच विवाद एलएसी पर 3,488 किमी के क्षेत्र में है। वहीं भूटान के साथ चीन का विवाद 400 किमी की सीमा पर है। चीन के नए कानून का असर भारत-चीन विवाद पर पड़ सकता है। हाल ही की इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक चीन ने अरुणाचल प्रदेश की 15 जगहों के नाम बदलकर चीनी भाषा में रख दिए हैं। वहीं, चीन की तरफ़ से कई बार घुसपैठ करने जैसी घटनाएं भी सामने आती रहती हैं। चीन और भारत के बीच क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों पर संप्रभुता के विवाद निरंतर रहे हैं। ये विवाद प्रमुख रूप से दो जगहों , अक्साई चिन और नेफ़ा के क्षेत्र के लिए है।
क्या है चीन का नया कानून?
चीन अपने इस कानून को देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए अहिंसक बता रहा है। इसके तहत चीन के सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाई जाएगी। इन इलाकों में आर्थिक, सामाजिक विकास के साथ सार्वजनिक क्षेत्रों और इंफ्रास्ट्रक्चर भी विकसित किए जाएंगे। सीमावर्ती इलाकों में लोगों के रहने और काम करने के लिए सीमा सुरक्षा और आर्थिक, सामाजिक के बीच समन्वय बनाया जाएगा। यह कानून अगले साल एक जनवरी से लागू हो जाएगा।
सीमा विवाद पर पड़ेगा असर
भारत और चीन के बीच लंबा सीमा विवाद है। दोनों देशों के बीच एलएसी(LAC) पर हुए समझौते को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। ऐसे में अक्सर चीन और भारत के बीच तनातनी का माहौल रहता है। लद्दाख सेक्टर में कई बार दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने आ चुके हैं और सीमा पर हिंसक झड़प भी हो चुकी है। ऐसे में चीन की ओर से पारित किया गया नया कानून भारत और चीन सीमा समझौते पर असर डाल सकता है और नया विवाद पैदा कर सकता है।
भारत-चीन सीमा मामले की पृष्ठभूमि
वर्तमान में भारत और चीन के बीच 'वास्तविक नियंत्रण रेखा' पर तनाव की स्थिति है, जिनमें पैंगोंग त्सो (Pangong Tso), गैलवान घाटी (Galwan Valley), सिक्किम के ‘नाकु ला’ (Naku La) और डेमचोक (Demchok) शामिल हैं। चीन द्वारा सेना को युद्ध की तैयारियों को बढ़ाने और देश की संप्रभुता का पूरी तरह से बचाव करने के आदेश के बाद से दोनों देशों के बीच 'वास्तविक नियंत्रण रेखा' पर तनाव बढ़ गया था। चीन के इस रवैये के पश्चात् भारत ने लद्दाख, उत्तर सिक्किम, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है। अब तक लद्दाख में भारतीय और चीनी सैन्य कमांडरों के बीच कम-से-कम छह दौर की वार्ता असफल हो चुकी हैं।
भारत-चीन के राजनीतिक संबंध
- भारत ने 1 अप्रैल, 1950 को चीन के साथ अपने राजनयिक संबंध स्थापित किए थे और इसी के साथ भारत पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला गैर-समाजवादी देश बन गया था।
- वर्ष 1962 में भारत और चीन के मध्य सीमा संघर्ष की शुरुआत दोनों देशों के संबंधों के लिये एक गहरा झटका था।
- वर्ष 1993 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की यात्रा ने दोनों देशों के मध्य संबंधों को सुधारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- वर्तमान संदर्भ में बात करें तो दोनों देशों के प्रतिनिधियों के मध्य समय-समय पर द्विपक्षीय वार्त्ताओं के साथ-साथ अनौपचारिक सम्मेलनों का आयोजन भी किया जा रहा है, जो यह दर्शाता है कि दोनों देश अपने दूरगामी हितों को लेकर सजग हैं।
विवादित जमीन की खासियत
तिब्बत की ऊबड़-खाबड़ भूमि की मुख्य नदी यरलुंग त्संगपो (ब्रह्मपुत्र) है, जो मानसरोवर झील से निकल कर पूर्व दिशा की ओर प्रवाहित होती है और फिर दक्षिण की ओर मुड़कर भारत एवं बांग्लादेश में होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिर जाती है। इसकी घाटी के उत्तर में खारे पानी की छोटी-छोटी अनेक झीलें हैं, जिनमें नम त्सो (उर्फ़ तेन्ग्री नोर) मुख्य है। यह अल्प वर्षा एवं स्वल्प कृषि योग्य है। त्संगपो की घाटी में वहाँ के प्रमुख नगर ल्हासा, ग्यान्त्से एवं शिगात्से आदि स्थित हैं। बाहरी तिब्बत का अधिकांश भाग शुष्क जलवायु के कारण केवल पशुचारण के योग्य है और यही यहाँ के निवासियों का मुख्य व्यवसाय हो गया है। कठोर शीत सहन करनेवाले पशुओं में याक(Yak: a wooly animal) मुख्य है, जो दूध देने के साथ बोझा ढोने का भी कार्य करता है। इसके अलावा यहां भेड़, बकरियाँ भी पाली जाती हैं। इस विशाल भूखंड में नमक के अतिरिक्त स्वर्ण एवं रेडियमधर्मी खनिजों के संचित भंडार प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं।
ऊबड़-खाबड़ पठार में रेलमार्ग बनाना अत्यंत कठिन और खर्चीला है। अत: पर्वतीय रास्ते एवं कुछ राजमार्ग (सड़कें) ही यहां आवागमन के मुख्य साधन हैं। हालांकि चिंगहई-तिब्बत रेलमार्ग तैयार हो चुका है। सड़के त्संगपो नदी की घाटी में स्थित नगरों को आपस में मिलाती हैं। पीकिंग-ल्हासा राजमार्ग एवं ल्हासा काठमांडू राजमार्ग का निर्माण कार्य पूर्ण होने की अवस्था में है। इनके पूर्ण हो जोने पर इसका सीधा संबंध पड़ोसी देशों से हो जायेगा। यहाँ के निवासी नमक, चमड़े तथा ऊन आदि के बदले में चीन से चाय एवं भारत से वस्त्र तथा खाद्य सामग्री प्राप्त करते थे। तिब्बत एवं शिंजियांग को मिलानेवाले तिब्बत-शिंजियांग राजमार्ग का निर्माण जो लद्दाख़ के अक्साई चिन इलाक़े से होकर जाती है, पूर्ण हो चुका है। इसके अलावा यहां ल्हासा - पीकिंग वायुसेवा भी प्रारंभ हो गई है।
इतिहास में देखें तो चीन हमेशा से अप्रत्यक्ष रूप से आधिपत्य जमाने के लिए जाना जाता रहा है, वह दो क़दम आगे बढ़ाकर एक क़दम पीछे लेने की नीति पर काम करता है। उसका अपने पड़ोसी देशों के साथ हमेशा से यही रवैया रहा है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण दक्षिण चीन सागर है, जहां चीन ने धीमे-धीमे अपनी जगह बनाई है। लेकिन अगर भारत और चीन संबंधों की बात करें तो चीन के लिए भारत अकेला ऐसा पड़ोसी देश है, जो एक बड़ा देश है और जिसकी सेना सक्षम है।
चीन ने ये देखा है कि यहां ज़ोर-ज़बर्दस्ती से आधिपत्य जमाना संभव नहीं है, ऐसे में उनकी रणनीति यह है कि सीमावर्ती इलाकों में बड़े साज़ो-सामान के साथ भारी संख्या में सैनिकों की तैनाती बनाए रखे, जो एक-दूसरे को एक तरह से थकाने की कोशिश है।
अब तक चीन के साथ हो चुकीं हैं 13 दौर की वार्ताएं
दोनों देशों के कोर कमांडर्स के बीच अब तक 13 दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं। इनमें शुरुआत में चीन की ओर से सकारात्मक रुख नज़र आया था क्योंकि अगस्त 2020 में भारतीय सेना ने दक्षिण पैंगोंग झील में प्रीएंपटिव एडवांस किया था। इससे चीन के माल्दो स्थित अग्रिम मुख्यालय को ख़तरा था क्योंकि वह सीधे निशाने पर आ जाता था। ऐसे में चीन को ज़रूरत थी कि वह सकारात्मक माहौल बनाए और वहां से दक्षिण और उत्तर पैंगोंग झील के दोनों तरफ़ से सेनाओं को पीछे हटाए।
अब चीन की कोशिश यह है कि वह लंबे समय तक सीमा पर भारी सैन्य साज़ो-सामान और भारी संख्या में सैनिकों की तैनाती कर सके। इसका संकेत चीन में पारित किए गए हालिया क़ानून में दिखाईं देता है, जिसमें उन्होंने सीमावर्ती गाँवों में हर तरह की सुविधाएं मुहैया कराने का प्रावधान रखा है। चीन इन सीमावर्ती गाँवों को आदर्श गाँव बनाने की बात कहते हुए इनमें रेल और सड़कों से लेकर यातायात के सभी साधन उपलब्ध कराने के साथ-साथ दूसरी सहूलियतें उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहा है।
ये सब इस उद्देश्य से किया जा रहा है कि इन अग्रिम इलाकों में चीनी सेना पीएलए और पुलिस पीएपी तैनात है और इन्हें इन इलाकों में देर तक बने रहने के लिए सहायता और सहूलियतें मिल सकें, क्योंकि इन दोनों बलों में आम चीनी नागरिक शामिल होते हैं जिन्हें इन इलाकों की ज़्यादा जानकारी नहीं होती है। इतनी ठंड और ऊंचाई पर उन्हें बनाए रखना थोड़ा मुश्किल होता है। ऐसे में भविष्य में इन गाँवों से जोड़ने का और इन इलाकों से भर्ती किए जाने की योजना है ताकि इस इलाके में तैनाती बरकरार रखी जा सके।
वहीं चीन नहीं चाहता है कि गलवान जैसी घटना एक बार फिर हो क्योंकि पूरी दुनिया का नज़रिया चीन के प्रति पहले से ही संदेहास्पद है। भारत के विरोध में अब किसी तरह की जानमाल का नुक़सान होने की स्थिति में अनुमान लगाया जा रहा है, कि दुनिया भारत के साथ जुड़ेगी क्योंकि पहले से दुनिया भारत के साथ खड़ी हुई है। ऐसे में चीन एक-दूसरे को थकाने की रणनीति पर काम कर रहा है।
ऐसे में यही कहा जा सकता है कि फ़िलहाल दोनों देशों के बीच संबंधों में किसी तरह के सुधार होने के संकेत नज़र नहीं आ रहे हैं क्योंकि चीन, भारत और अमेरिकी रिश्तों में आती प्रगाढ़ता को लेकर काफ़ी आशंकित रहता है। हालांकि भारत, रूस और अमेरिका के साथ रिश्ते बनाकर बहुपक्षीय रिश्तों की दिशा में बढ़ने की कोशिश करता है। लेकिन चीन समझता है कि भारत का रुझान किस तरफ़ है।
वहीं चीन की ओर से बढ़ाए जा रहे दबाव को भी देखा जा रहा है। जिससे संबंधित कुछ घटनाएं हाल ही में हुई हैं, जब अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों को चीन द्वारा चीनी नाम दिया गया और भारतीय सांसद को पत्र लिखा गया, जिसमें यह आपत्ति जताई गयी कि वे तिब्बत के एक कार्यक्रम में क्यों शामिल हुए।
ऐसे में चीन लगातार दबाव बढ़ा रहा है। जब वांग यी(चीन के विदेश मंत्री) और एस जयशंकर(भारत के विदेश मंत्री) की मुलाक़ात भी हुई थी तो उसमें भी बार-बार यही दोहराया गया कि सीमा विवाद को एक तरफ़ रखा जाए और आपसी रिश्तों को सामान्य बनाया जाए। इसे लेकर दोनों पक्षों के बीच एक मत नहीं है और अब इतना स्पष्ट हो गया है कि जब तक दोनों ओर से सबसे उच्च स्तर पर गतिरोध ख़त्म करने को लेकर पहल नहीं होगी तब तक ऐसा होना मुश्किल है।
बता दें कि कि रूस ने तीनों देशों के बीच बातचीत कराने के लिए पहल की है। लेकिन इस बीच भारत ने अमेरिका की ओर सीधा-सीधा झुकाव दिखा दिया है, जिसे लेकर चीन के मन में काफ़ी आशंकाएं घर कर रही हैं। यह कारण भी एक मुख्य वजह के रूप में देखा जा सकता है, जिसकी वज़ह से चीन लगातार भारत पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है।