NEP: तीन राज्यों ने किया राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध, जानिए क्यों हो रहा है विरोध प्रदर्शन ?
केरल की उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदु ने एनईपी पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सिर्फ शिक्षा के व्यवसायीकरण, सांप्रदायिकरण और शिक्षा में उत्कृष्टतावाद को बढ़ावा देने वाली नीति है। उन्होंने आगे कहा कि एनईपी के लागू होने से यूजीसी भी कमजोर हो जाएगी और सिर्फ कठपुतली बनकर रह जाएगी।
अखिल भारतीय छात्र संघ द्वारा आयोजित एक सम्मेलन में भारत के तीन राज्यों के शिक्षा मंत्री ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर हमला बोलते हुए, सभी शिक्षण संस्थानों के छात्रों और शिक्षकों से एक सयुंक्त संघर्ष का आह्वाहन किया है। संघर्ष का उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति, नीट परीक्षा और सीयूइटी परीक्षा को वापस लिए जाने का समर्थन करना है।
कौन से हैं विरोध करने वाले ये तीन राज्य
सम्मेलन में महाराष्ट्र के मंत्री जितेन्द्र अवध, केरल के उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदु, तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री के पोनमुडी, तमिलनाडु के स्कूली शिक्षा मंत्री अनबील महेश पोय्यामोझी और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव डु राजा भी मौजूद रहे और सभी ने एक सुर में राष्ट्रीय शिक्षा नीति सहित, नीट परीक्षा और सीयूइटी परीक्षा को लागू करने की कड़ी निंदा करते हुए इसे भेदभावपूर्ण नीति बताया।
एनईपी की निंदा क्यों?
केरल की उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदु ने एनईपी पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सिर्फ शिक्षा के व्यवसायीकरण, सांप्रदायिकरण और शिक्षा में उत्कृष्टतावाद को बढ़ावा देने वाली नीति है। उन्होंने आगे कहा कि एनईपी के लागू होने से यूजीसी भी कमजोर हो जाएगी और सिर्फ कठपुतली बनकर रह जाएगी। तमिलनाडु के उच्च शिक्षा मंत्री श्री के पोनमुडी ने बताया कि एनईपी से समाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए वर्ग को नुक़सान होगा और उनके स्कूल ड्रॉप आउट होने की संभावना और बढ़ जाएगी। वहीं तमिलनाडु के स्कूली शिक्षा मंत्री श्री अनबील महेश पोय्यामोझी ने कहा कि एनईपी के जरिए केंद्र सरकार शिक्षा पर अपना पूर्ण नियंत्रण करके, राज्यों के अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ कर रही है।
नीट और सीयूइटी परीक्षा क्यों नहीं?
तमिलनाडु सरकार ने पहले भी नीट परीक्षा का विरोध करते हुए इसे राज्य के अधिकार क्षेत्र में घुसपैठ माना था और इससे समाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गो को होने वाले नुक़सान को देखते हुए तमिलनाडु को नीट से छूट देने का एक मसौदा भी तैयार किया था। अब सीयूईटी को लेकर भी समान आशंका व्यक्त की जा रही है, इससे छात्रों को होने वाले नुक़सान से बचाने के लिए इसकी वापसी के लिए प्रदर्शन और संघर्ष करने की बात कही जा रही है। वहीं भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव डी राजा ने कहा कि केंद्र सरकार को ऐसी भेदवाकारी नीतियों की बजाए शिक्षा पर और ज्यादा खर्च करना चाहिए तथा आधारभूत संरचना पर जोर देना चाहिए।
बता दें कि सम्मेलन के अंत में संकल्प पत्र भी जारी किया गया, जिसमें पुनः शिक्षा को राज्य के अधिकार को सुनिश्चित करने, एनईपी की वापसी और उसकी जगह एक वैकल्पिक नीति बनाने पर जोर दिया गया जो लोगों के शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करें, और नीट और सीयूइटी की वापसी पर ध्यान केंद्रित किया गया।