समान नागरिक संहिता: मुख्यमंत्री धामी ने कहा उत्तराखंड में सभी के लिए समान कानून जरूरी
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42 में संशोधन के द्वारा धर्मनिरपेक्षता शब्द जोड़ा गया था जिसका उद्देश्य था- भारत के सभी नागरिकों के साथ धर्म के आधार पर सभी भेदभाव को समाप्त करना लेकिन वर्तमान में लागू ना हो पाने के कारण भारत में अभी भी एक बड़ा वर्ग धार्मिक कानूनों की वजह से अपने अधिकारों से अछूता है
हाल ही में पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड के सीएम पद की शपथ ली है। गुरुवार 24 मार्च को उन्होंने मंत्रिमंडल की पहली बैठक में अपने राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति के गठन के लिए मंजूरी भी दी है। यह फैसला मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता वाली हुई बैठक में मंत्रिमंडल ने लिया।
बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने विधानसभा स्थित सभागार कक्ष में पत्रकारों से बातचीत के दौरान मंत्रिमंडल के इस निर्णय की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 12 फरवरी को उन्होंने समान नागरिक संहिता लागू करने का संकल्प लिया था।
धामी ने कहा, ‘‘हमारा राज्य हिमालय और गंगा का राज्य है। अध्यात्म और धार्मिक विरासत का केंद्र बिंदु है। हमारी समृद्ध सैन्य विरासत है और वह दो-दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से भी लगा है।’ उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे में जरूरी है कि उत्तराखंड में एक ऐसा कानून होना चाहिए जो सभी के लिए समान हो।’’
समिति में कौन-कौन से सदस्य होंगे शामिल
रिटायर चीफ जस्टिस की अध्यक्षता में इस समिति का ड्राफ्ट तैयार होगा। जिस्मम रिटायर सीनियर आईएएस ,बुद्धिजीवी समाजसेवी ,व प्रबुद्ध वर्ग के लोगों को सदस्य बनाया जाएगा.
समान नागरिक संहिता क्या है
समान नागरिक संहिता से अभिप्राय है, "सभी के लिए एक समान कानून. " चाहे व्यक्ति किसी धर्म या जाति का हो। समान नागरिक संहिता में सभी धर्मों के लिए विवाह, तलाक, विरासत गोद लेने आज कानूनों में समरूपता प्रदान करने का प्रावधान है यह भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 44 में वर्णित नीति निर्देशक तत्वों में से एक है सर्वोच्च न्यायालय कई बार इसको लागू करने की दिशा में केंद्र सरकार से पहल कर चुका है
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42 में संशोधन के द्वारा धर्मनिरपेक्षता शब्द जोड़ा गया था जिसका उद्देश्य था- भारत के सभी नागरिकों के साथ धर्म के आधार पर सभी भेदभाव को समाप्त करना लेकिन वर्तमान में लागू ना हो पाने के कारण भारत में अभी भी एक बड़ा वर्ग धार्मिक कानूनों की वजह से अपने अधिकारों से अछूता है।
समान नागरिक संहिता के संभावित लाभ
विभिन्न धर्मों के अपने अलग-अलग कानूनों से न्यायपालिका पर बोझ पड़ता है . समान नागरिक संहिता लागू होने से इस समस्या से निजात मिलेगी और अदालतों में लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द होंगे। नागरिकों की समानता से देश में एकता व सद्भावना बढ़ेगी। क्योंकि जिस देश में एकता होती है वह देश तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर होता है।
देश में होने वाली जाति व धर्म की राजनीति पर भी इसका अच्छा खासा असर पड़ेगा राजनीतिक दल जो वोट बैंक के लिए ध्रुवीकरण की राजनीति करते हैं वह नहीं कर सकेंगे और इसके द्वारा महिलाओं की स्थिति में भी सुधार होगा.
गोवा है इसका उदाहरण
गोवा में पहले से ही समान नागरिक संहिता कानून लागू है। मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें गोवा राज्य से इसकी प्रेरणा मिलती है. जिसने एक समान नागरिक संहिता लागू करके देश में एक नया उदाहरण पेश किया है। अन्य राज्यों में इसके लिए कोई प्रयास नहीं किए गए.