जब भांग बेचना वैध है तो गांजा बेचना अपराध क्यों है? जानिए इस सवाल का जवाब
देश में गांजा बेचना गैरकानूनी क्यों है जबकि सरकार खुद ही भांग बेचने का लाइसेंस देती है? दरअसल इसके पीछे भी एक लंबी प्रक्रिया है, आइए समझते हैं...
आर्यन खान की हाल ही में देश में गिरफ्तारी के बाद गांजा और ड्रग्स के सेवन का मामला चर्चा का विषय बना हुआ है। हम सभी जानते हैं कि नशा सेहत के लिए हानिकारक होता है। लेकिन फिर भी आपने देखा होगा कि कुछ नशीले पदार्थ सरकार द्वारा ही लाइसेंस देकर बेचे जाते हैं, जबकि कुछ चीजों को काफी पाबंदियों के साथ रखा जाता है। ऐसे में लोगों की दिलचस्पी यह जानने में है कि भांग और गांजा दोनों एक ही परिवार के हैं। लेकिन, फिर भी, सरकार भांग के ठेके खोलती है, लेकिन गांजा बेचना अपराध माना जाता है। यह इतना बड़ा अंतर क्यों है?
भांग और गांजा में क्या अंतर है?
दरअसल, भांग और गांजा एक ही प्रजाति के पौधे से बनते हैं। इस प्रजाति को नर और मादा में बांटा गया है, नर प्रजाति से भांग और मादा प्रजाति से भांग बनाई जाती है। लेकिन भांग और गांजा बनाने का तरीका भी काफी अलग है। दरअसल, भांग को पौधे के फूल से तैयार किया जाता है।कई लोग इसे खाने-पीने के रूप में अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करते हैं। उसी प्रकार गांजा, जिस पौधे से इसे बनाया जाता है, उसे भांग के पत्ते (कैनबिस इंडिका) कहते हैं और इसे बीजों को पीसकर तैयार किया जाता है। ऐसे में आसान भाषा में समझा जाए तो फूलों से भांग और पत्तों से गांजा बनाया जाता है।
कानून क्या कहता है?
दरअसल, एक समय देश में गांजा भी खुलेआम इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन साल 1985 में भारत ने नारकोटिक्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंसेज एक्ट में भांग के पौधे यानी भांग के फल और फूलों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी। इसे अपराध की श्रेणी में रखा गया था, लेकिन इसके
पत्तों को नहीं। हालांकि, इससे पहले 1961 में नारकोटिक्स ड्रग्स पर सम्मेलन में भारत ने इस प्लांट को हार्ड ड्रग्स की श्रेणी में रखने का विरोध किया था। हालांकि कुछ राज्यों में भांग अभी भी अवैध है। उदाहरण के तौर पर अगर आप असम को ही देखें तो वहां पर भांग का इस्तेमाल गैरकानूनी है, वहीं महाराष्ट्र में बिना लाइसेंस के इससे बने किसी भी पदार्थ को उगाना, रखना, इस्तेमाल करना या सेवन करना गैर कानूनी है। वहीं गुजरात ने साल 2017 में भांग को वैध कर दिया था।
चरस कैसे तैयार किया जाता है?
भांग के पौधे से प्राप्त रेजिन से चरस तैयार किया जाता है। यह राल भी इसी पौधे का हिस्सा है, राल पौधों से निकलने वाला एक चिपचिपा पदार्थ है। इसे चरस, हशीश और हैश कहते हैं।
औषधि के रूप में भी किया जाता है प्रयोग:
हिमालय पर्वत के आसपास के राज्यों जैसे उत्तराखंड और हिमाचल में यह पौधा जगह-जगह उगता है। धार्मिक के अलावा, इस पौधे का भारत की चिकित्सा प्रणाली में कई वर्षों से व्यापक रूप से उपयोग किया जाता रहा है। इस पौधे के सभी भागों का उपयोग आयुर्वेद में विभिन्न प्रकार की दवाओं और उपचार के लिए किया जाता है। इसके अलावा इसका एक व्यावसायिक पहलू भी है। आपको बता दें कि इस पौधे का इस्तेमाल टिम्बर और टेक्सटाइल इंडस्ट्री में भी खूब होता है। लेकिन कानून के बाद कुछ लाइसेंसी कंपनियों ने इस प्लांट का प्रोडक्शन अपने हाथ में ले लिया है और वे इसका इस्तेमाल करती हैं।