ARJAN DEV JI: सिखों के पहले शहीद 'शहीदान दे सरताज' थे उनके पांचवे गुरु, गुरु अर्जन देव जी
ARJAN DEV JI: साल 1581 में, 18 साल की उम्र में ही गुरु अर्जन देव ने पांचवें गुरु के रूप में सिख समुदाय की कमान संभाल ली। पांचवें गुरु के रूप में कमान संभालने के बाद, गुरु अर्जन देव ने सिख धर्म को आगे बढ़ाने और इसके प्रसार में लग गए। उन्होंने पंजाब के प्रमुख शहरों जैसे तरनतारन साहिब और करतारपुर की स्थापना भी की थी।
सिख समुदाय के 5वें सिख गुरु अर्जन देव का 416वां शहीदी दिवस इस साल मनाया जा रहा है। गुरु अर्जन देव चौथे गुरु, गुरु राम दास जी और बीबी भानीजी के पुत्र थे, और उनका जन्म 2 मई, 1563 को गोइंदवाल पंजाब में हुआ था। 30 मई, 1606 को मुगल अधिकारियों ने उनकी हत्या कर दी थी। गुरु अर्जन देव जी सिख पंथ के पहले शहीद थे, जिन्हें 'शहीदान दे सरताज' की उपाधि दी गई थी, और उनकी मृत्यु ने ही सिखों के बीच अपने जमीन और ज़मीर की रक्षा के लिए शहीद हो जाने की प्रवृत्ति को जन्म दिया था।
सिख धर्म में उनका योगदान
साल 1581 में, 18 साल की उम्र में ही गुरु अर्जन देव ने पांचवें गुरु के रूप में सिख समुदाय की कमान संभाल ली। पांचवें गुरु के रूप में कमान संभालने के बाद, गुरु अर्जन देव ने सिख धर्म को आगे बढ़ाने और इसके प्रसार में लग गए। उन्होंने पंजाब के प्रमुख शहरों जैसे तरनतारन साहिब और करतारपुर की स्थापना भी की थी। साल 1588 में, उन्होंने हरमंदिर साहिब गुरुद्वारा की नींव रखी, जिसे अमृतसर की स्वर्ण मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर हर जाति, हर पंथ, और हर धर्म के लोगों का स्वागत करने और उन्हें भोजन और आश्रय प्रदान करने के उद्देश से बनाया गया था। ऐसा माना जाता है कि जब सिख समुदाय के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी तो इससे चिंतित होकर, मुगल सम्राट जहांगीर ने उन्हें फांसी देने का आदेश दिया। उनकी मृत्यु के बाद, उनके पुत्र गुरु हरगोबिंद सिंह जी सिखों के छठे गुरु बने।
गुरू अर्जन देव का सिख आंदोलन झूठ और पाखंड, असमानता और अन्याय, अत्याचार और शोषण को खत्म करके समाज को बदलने के उद्देश्य से चलाई जा रही एक क्रांति के समान रही। उन्होंने समानता और प्रेम, करुणा और उदारता, सत्य और न्याय के मूल्यों के आधार पर एक सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने की जीवनपर्यंत पुरजोर कोशिश की।