इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री से की चुनाव टालने की अपील, किन परिस्थितियों में निरस्त हो सकते हैं चुनाव?
भारतीय संविधान के अनुसार होने वाले चुनाव को किसी विशेष कारणवश टाला या रद्द किया जा सकता है। जिसके तहत पिछले साल कोरोना की लहर के बीच होने वाले पंचायत चुनाव, लोकसभा चुनाव और विधानसभा के उपचुनाव को टाला भी गया था। संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को यह अधिकार मिला हुआ है कि वह अपने हिसाब से चुनाव को करवाने के लिए पूर्णरुप से स्वतंत्र है।
कोरॉना वायरस के कारण हम सबका जीवन कितना प्रभावित हुआ है, यह हम भली भांति जानते हैं। लेकिन अब कोरोना के नए और घातक रूप ओमिक्रॉन वैरिएंट के केस देश के अलग-अलग शहरों में पाए जा रहे हैं। एक्सपर्ट्स व डॉक्टरों का कहना है कि नए साल के बाद ही कोरोना की तीसरी लहर आ सकती है। जिससे बचने के लिए सरकार और आम जनता को सावधान हो जाना चाहिए। इन सब बातों के बावजूद भी राजनीतिक पार्टियां अपने चुनावी रैलियां में भीड़ इकट्ठा कर रही हैं, जिससे कोरोना वायरस तेजी से बढ़ सकता है। 2022 में उत्तर प्रदेश के अलावा पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड में भी चुनाव होने वाले हैं। प्रशासन और मुख्य चुनाव आयुक्त की तरफ से हो रही लापरवाही पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक्शन लेेते हुए, इन पांच राज्यों में होने वाले चुनाव को टालने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है। हाई कोर्ट द्वारा की गई अपील का जवाब देते हुए मुख्य चुनाव आयोग ने कहा है कि वह कुछ दिनों में यूपी समेत सभी राज्यों का दौरा करेंगे और वहां के हालातों की समीक्षा करने के बाद ही कोई फैंसला लिया जाएगा।
संविधान में चुनाव को रद्द करने संबंधित नियम
भारतीय संविधान के अनुसार होने वाले चुनाव को किसी विशेष कारणवश टाला या रद्द किया जा सकता है। जिसके तहत पिछले साल कोरोना की लहर के बीच होने वाले पंचायत चुनाव, लोकसभा चुनाव और विधानसभा के उपचुनाव को टाला भी गया था। संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को यह अधिकार मिला हुआ है कि वह अपने हिसाब से चुनाव को करवाने के लिए पूर्णरुप से स्वतंत्र है। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 52, 57 तथा 153 के अनुसार चुनाव को टाला या रद्द किया जा सकता है।
कारण जिनकी वज़ह से चुनाव को टाला या रद्द किया जा सकता है
चुनाव को रद्द या टालने के लिए उम्मीदवार की मौत, दंगा फसाद, प्राकृतिक आपदा, सुरक्षा संबंधित मामलों, पैसों से मतदाताओं को खरीदने के मामले में, चुनाव में गड़बड़ी होने, और बूथ पर कब्जा होने की स्थिति में इन सब बातों का हवाला देकर मुख्य चुनाव आयुक्त, होने वाले चुनाव को टाल या रद्द कर सकता है। जिस पर कोई राजनीतिक पार्टी दबाव नहीं बना सकती।
1. उम्मीदवार की मृत्यु होने पर
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 52 के अनुसार यदि किसी चुनाव का नामांकन भरने के आखिरी दिन सुबह 11 बजे के बाद किसी भी समय किसी उम्मीदवार की मृत्यु हो जाती है, तो उस सीट पर चुनाव टाला जा सकता है। हालांकि उसके भी कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं:
- उम्मीदवार का पर्चा सही से भरा हो।
- उम्मीदवार ने चुनाव से अपना नाम वापस ना लिया हो।
- उम्मीदवार की मृत्यु की सूचना वोटिंग से पहले मिल जानी चाहिए।
- मरने वाला उम्मीदवार किसी मान्यता प्राप्त पार्टी से हो।
बता दें कि राजस्थान में 2018 के विधानसभा चुनाव के समय 200 सीटों में से 199 सीटों पर चुनाव हुआ था, क्योंकि एक उम्मीदवार की मृत्यु वोटिंग से ठीक पहले हो गई थी। उस सीट पर चुनाव बाद में कराया गया था।
2. सुरक्षा संबंधी मामले
यदि चुनाव आयोग को लगता है कि किसी सीट या बूथ पर पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था नहीं है, तो चुनाव को टाल या रद्द कर किया जा सकता है। ऐसा एक मामला 2017 में घटित हुआ था, जब महबूबा मुफ्ती अनंतनाक की लोकसभा सीट छोड़ कर मुख्यमंत्री बन गई थी। उस समय उपचुनाव के लिए चुनाव आयोग ने सरकार से सैना की 750 कंपनियों को मांगा था, लेकिन उस समय 300 कंपनियां दी गई। जिस वजह से चुनाव आयोग ने अनंतनाग की सुरक्षा व्यवस्था खराब बताकर चुनाव को रद्द कर दिया था।
3. दंगा फसाद या प्राकृतिक आपदा
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1991 की धारा 57 के अनुसार यदि चुनाव वाली जगह पर हिंसा या दंगा हुआ हो या प्राकृतिक आपदा आई हो, तो वहां पर होने वाले चुनाव को टाला जा सकता है। कोरॉना के वर्तमान हालात भी इस आपदा की श्रेणी में ही आते हैं क्योंकि कोरोना वायरस में भीड़ को जमा नहीं होने दिया जा सकता। बता दें कि इस तरह के हालात पर सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में एक आदेश देते हुए कहा था कि प्राकृतिक आपदा या मानव द्वारा किया गया दंगा या हिंसा के हालात सामान्य होने तक चुनाव टाले जा सकते है।
4. पैसों का लालच देकर मतदाताओं की ख़रीद
किसी स्थान पर मतदाताओं को गलत तरीके से लुभाने और पैसों से वोट खरीदने का मामला सामने आने पर भी चुनाव को रोका जा सकता है। जैसे साल 2017 में तमिलनाडु के राधाकृष्णा नगर में भारी मात्रा में कैश मिलने पर विधानसभा सीट पर उपचुनाव को रद्द कर दिया गया था।
5. चुनाव की वोटिंग मशीन में गड़बड़ी
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 98 के अनुसार किसी भी मतदान केंद्र पर वोटिंग मशीनों से या मत पेटियों से छेड़छाड़ और खराब होने का पता चलने पर भी चुनाव को रोका जा सकता है।
6. बूथ पर कब्जा
बूथ कैप्चरिंग अर्थात आपको जिस जगह पर वोट डालना है, वहां पर किसी के द्वारा कब्जा कर लेने पर चुनाव आयोग उस चुनाव को टाल कर नई तारीख की घोषणा कर सकता है। साल 1995 की यह घटना बिहार विधानसभा के चुनाव की है जो बूथ पर कब्जे के लिए बदनाम थी। उस समय मुख्य चुनाव आयोग ने अर्धसैनिक बलों की सुरक्षा में चुनाव कराने का ऐलान किया था, साथ ही चुनाव की तारीख को लगभग 4 बार बढ़ाना पड़ा था।