जन्मदिन विशेष: जनकवि बाबा नागार्जुन की रचनाएं

बाबा नागार्जुन का आज जन्मदिन है इस लेख में बाबा नागार्जुन की कविताओं के माध्यम से बाबा के जनकवि होने के नाते लिखी कविताओं का जिक्र है।

June 30, 2021 - 13:47
December 8, 2021 - 14:08
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जन्मदिन विशेष: जनकवि बाबा नागार्जुन की रचनाएं

हर समाज और राष्ट्र को अपना-अपना कवि प्राय प्रिय होता है जिसे वो अपनी सुविधा असुविधा के साथ याद करते और भूलते जाते हैं। नागार्जुन उसी लंबी श्रृंखला के एक कवि है जिसके लेखन में ,जिनके काव्य में सत्ता के प्रति आक्रोश है , सवाल है और एक असहाय पीड़ित व्यथित व्यक्ति की अभिव्यक्ति है।

आज बाबा नागार्जुन का जन्मदिन है । जन्मदिन जहां एक तरफ़ विभिन्न समूहों द्वारा नागार्जुन को खुद से जोड़कर दिखाने का एक जरिया है वहीं नागार्जुन के काव्य पर दृष्टि डालकर कवि की कविता और आक्रोश को समझने का अवसर भी।

पहली कविता , महात्मा गांधी की हत्या के बाद नागार्जुन ने कविता लिखी जिसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा। गांधी हत्या पर नागार्जुन ने तर्पण और शपथ नाम से दो कविताएं लिखी ।

 बाबा नागार्जुन ने लिखा :

‘जो कहते हैं उसको पागल

वह झोंक रहे हैं धूल हमारी आंखों में

वह नहीं चाहते परम क्षुब्ध जनता घर से बाहर निकले

हो जाएं ध्वस्त

इन संप्रदायवादियों के विकट खोह

वह नहीं चाहते पिता, तुम्हारा श्राद्ध, ओह!

"तीन तीन गोलियां बाप रे

मुंह से कितना खून बहा है

महामौन यह पिता तुम्हारा

रह रह मुझे कुरेद रहा है

इसे न कोई कविता समझे

यह तो पित्री वियोग व्यथा है"

नागार्जुन फिर शपथ कविता में लिखते है: 

"कांटे कहाँ कहाँ रोड़े है

कहाँ गढ़ा है कहाँ रेत है

सभी साफ़ हो गया आज जनता सचेत है

कोटि कोटि कंठों से निःसृत सुन सुन कर आक्रोश

भगवाध्वजधारी दैत्यों के उड़े जा रहे होश"

फिर गांधी हत्या को ना रोक पाने वालो के लिए वो लिखते है:

‘क्या करते थे दिल्ली में बैठे पटेल सरदार?

जिसके घर में कोई घुसकर साधू को दे मार

उस गृहपति को धिक्कार!’

नागार्जुन फिर इसी कविता में अपने संकल्प को दर्शाते हुए लिखते है: 

‘हिटलर के ये पुत्र-पौत्र जब तक निर्मूल न होंगे

हिन्दू-मुस्लिम,सिक्ख-फासिस्टों से न हमारी

मातृभूमि यह जब तक खाली होगी

संप्रदायवादियों के विकट खोह

जब तक खंडहर न बनेंगे

तब तक मैं इनके खिलाफ लिखता जाऊंगा

लौह-लेखनी कभी विराम न लेगी’

और फिर महात्मा गांधी के नाम पर राजनीति और वोट मांगने वालो के लिए लिखते है वो:

"बेच बेच कर गांधी जी का नाम

बटोरो वोट

बैंक बैलेंस बढ़ाओ

राजघाट पर बापू की बेदी के आगे अश्रु बहाओ"

नागार्जुन अपनी दूसरी कविता में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को अंग्रेजी रानी के भारत आगमन पर व्यंग करते हुए लिखते है:

"आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,

यही हुई है राय जवाहरलाल की

रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की

यही हुई है राय जवाहरलाल की

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी!

आओ शाही बैण्ड बजायें,

आओ बन्दनवार सजायें,

खुशियों में डूबे उतरायें,

आओ तुमको सैर करायें

उटकमंड की, शिमला-नैनीताल की

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी!

तुम मुस्कान लुटाती आओ,

तुम वरदान लुटाती जाओ,

आओ जी चाँदी के पथ पर,

आओ जी कंचन के रथ पर,

नज़र बिछी है, एक-एक दिक्पाल की

छ्टा दिखाओ गति की लय की ताल की

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !

सैनिक तुम्हें सलामी देंगे

लोग-बाग बलि-बलि जायेंगे

दॄग-दॄग में खुशियां छ्लकेंगी

ओसों में दूबें झलकेंगी

प्रणति मिलेगी नये राष्ट्र के भाल की

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी!

बेबस-बेसुध, सूखे-रुखडे़,

हम ठहरे तिनकों के टुकडे़,

टहनी हो तुम भारी-भरकम डाल की

खोज खबर तो लो अपने भक्तों के खास महाल की!

लो कपूर की लपट

आरती लो सोने की थाल की

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी!

भूखी भारत-माता के सूखे हाथों को चूम लो

प्रेसिडेन्ट की लंच-डिनर में स्वाद बदल लो, झूम लो

पद्म-भूषणों, भारत-रत्नों से उनके उद्गार लो

पार्लमेण्ट के प्रतिनिधियों से आदर लो, सत्कार लो

मिनिस्टरों से शेकहैण्ड लो, जनता से जयकार लो

दायें-बायें खडे हज़ारी आफ़िसरों से प्यार लो

धनकुबेर उत्सुक दिखेंगे, उनको ज़रा दुलार लो

होंठों को कम्पित कर लो, रह-रह के कनखी मार लो

बिजली की यह दीपमालिका फिर-फिर इसे निहार लो

यह तो नयी-नयी दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो

एक बात कह दूँ मलका, थोडी-सी लाज उधार लो

बापू को मत छेडो, अपने पुरखों से उपहार लो

जय ब्रिटेन की जय हो इस कलिकाल की!

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी!

रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की

यही हुई है राय जवाहरलाल की

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी!"

और फिर जब एक सत्ता से चिपकने के लिए इंदिरा गांधी भारत में आपातकाल लगती है तब नागार्जुन लिखते है:

"इन्दु जी क्या हुआ आपको

क्या हुआ आपको?

क्या हुआ आपको?

सत्ता की मस्ती में

भूल गई बाप को?

इन्दु जी, इन्दु जी, क्या हुआ आपको?

बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!

क्या हुआ आपको?

क्या हुआ आपको?

आपकी चाल-ढाल देख- देख लोग हैं दंग

हकूमती नशे का वाह-वाह कैसा चढ़ा रंग

सच-सच बताओ भी

क्या हुआ आपको

यों भला भूल गईं बाप को!

छात्रों के लहू का चस्का लगा आपको

काले चिकने माल का मस्का लगा आपको

किसी ने टोका तो ठस्का लगा आपको

अन्ट-शन्ट बक रही जनून में

शासन का नशा घुला खून में

फूल से भी हल्का

समझ लिया आपने हत्या के पाप को

इन्दु जी, क्या हुआ आपको

बेटे को तार दिया, बोर दिया बाप को!

बचपन में गांधी के पास रहीं

तरुणाई में टैगोर के पास रहीं

अब क्यों उलट दिया ‘संगत’ की छाप को?

क्या हुआ आपको, क्या हुआ आपको

बेटे को याद रखा, भूल गई बाप को

इन्दु जी, इन्दु जी, इन्दु जी, इन्दु जी…

रानी महारानी आप

नवाबों की नानी आप

नफाखोर सेठों की अपनी सगी माई आप

काले बाजार की कीचड़ आप, काई आप

सुन रहीं गिन रहीं

गिन रहीं सुन रहीं

सुन रहीं सुन रहीं

गिन रहीं गिन रहीं

हिटलर के घोड़े की एक-एक टाप को

एक-एक टाप को, एक-एक टाप को

सुन रहीं गिन रहीं

एक-एक टाप को

हिटलर के घोड़े की, हिटलर के घोड़े की

एक-एक टाप को…

छात्रों के खून का नशा चढ़ा आपको

यही हुआ आपको

यही हुआ आपको"

और आज के वक्त के कवि कहां है , आज के वक्त की कविता कहां है और आज के शासन को अपने काव्य से चुनौती देने वाले कवि कहां है या फिर कहां है आज का वो कवि जो नागार्जुन की तरह कह सके

"जनता पूछ रही क्या बतलाऊं,

जनकवि हूं साफ कहूंगा क्यों हकलाऊं’

Abhishek Tripathi तभी लिखूंगा जब वो मौन से बेहतर होगा।