Charu majumdar: नक्सलवाद के जनक चारु की आज है 50वीं पुण्यतिथि, जाने कैसे हुई उनकी मौत?

Charu Majumdar: चारु मजूमदार, जिन्हें सीएम के नाम से जाना जाता है, भारत के एक कम्युनिस्ट नेता और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के संस्थापक थे।

July 27, 2022 - 19:40
July 27, 2022 - 21:58
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Charu majumdar: नक्सलवाद के जनक चारु की आज है 50वीं पुण्यतिथि, जाने कैसे हुई उनकी मौत?
Charu Majumdar

Charu Majumdar: 27 जुलाई 1972 को भारतीय नक्सलवाद के जनक, चारू मजूमदार की मृत्यु, पश्चिम बंगाल के लाल बाजार पुलिस चौकी में मौत हो गई थी, यह भारत या दुनिया में एक राजनीतिक कैदी या नेता के मानवाधिकारों के सबसे खराब दुरुपयोग में से एक है, लेकिन वे अपने जीते जी ही कॉमरेड के लिए एक रिवायत बन गए थे।

कौन हैं चारू मजूमदार?

चारु मजूमदार, जिन्हें सीएम के नाम से जाना जाता है, भारत के एक कम्युनिस्ट नेता और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के संस्थापक थे। 1918 में सिलीगुड़ी में एक प्रगतिशील जमींदार परिवार में जन्मे, वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कम्युनिस्ट बन गए, और बाद में उग्रवादी नक्सलवाद का गठन किया। इस अवधि के दौरान, उन्होंने 1967 के नक्सलबाड़ी विद्रोह के ऐतिहासिक लेख लिखे और उनके लेखन, विशेष रूप से ऐतिहासिक आठ दस्तावेज़ उस विचारधारा का हिस्सा बन गए हैं जो आंदोलन का मार्गदर्शन करती है।

कहा जाता है कि खुद जमींदार परिवार में जन्म लेने के बावजूद, चारू मजूमदार को जमींदार शब्द से चिढ़ थी, उन्हें इस शब्द का वास्तविक स्वरूप क्रूर लगता था।

वो मोड़, जिसने बदल दी चारू की जिंदगी

चारू मजूमदार ने सबसे पहले कांग्रेस की सदस्यता ली थी, और उसके बाद बीड़ी मजदूरों को संगठित करके उन्होंने, तब प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्यता 1938 में ले ली। जिसके बाद 1948 में वे तीन वर्षो के लिए जेल में भी रहे। खुद को किसानों एवं मजदूरों का हमदर्द बताने वाले चारू तब अधिक रौशनी में आए जब उन्होंने बंगाल में चल रही तेभगा प्रथा के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और इसी बुलंद आवाज ने उनकी जिंदगी बदल दी।

क्या थी तेभगा प्रथा?

तेभगा बंगाल की वो प्रथा थी जिसमे किसानों द्वारा उगाई हुई फसल का आधा हिस्सा जमींदार कर के रूप में वसूलते थे और अपना हक बताते थे। किसानों का मानना था कि एक तिहाई से अधिक फसल देना ठीक नहीं है और दो तिहाई पर उनका अधिकार होना चाहिए क्योंकि फसल पर श्रम एवं बाकी के खर्चे किसान अपनी जेब से देते हैं। इसी आंदोलन को तेभगा आंदोलन कहते हैं और यहीं से चारू किसानों में प्रसिद्ध हो गए। आंदोलन के बाद चारू ने सभी गांवों को जमींदारी और तेभगा से मुक्त कराने की ठान ली।

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नक्सलवाद का जन्म

नक्सलबाड़ी गांव को जमींदारी से मुक्त कराने के लिए उन्हें हथियारों का सहारा लेना पड़ा। इसी वजह से इसका नाम नक्सल आंदोलन पड़ा जो 1968 में शुरू हुआ और इसके बारे में चारू ने जो कुछ भी लिखा, उसे नक्सलवादी पत्थर की लकीर की तरह मानते हैं, जिसने नक्सलवादी आंदोलन को देश भर में फैलाने का काम किया।

दरअसल चारू चीन की तरह ही भारत में एक सफल क्रांति करने में विश्वास रखते थे, वे अपने साथियों के साथ माओ से भी मिलने चीन गए थे। 1969 में चारू द्वारा ऑल इंडिया कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑफ़ कम्युनिस्ट रेवोल्यूशनरीज का गठन किया गया, जिसमें वो महासचिव बने। 1971 में युद्ध के बाद से उनके लिए जबरदस्त खोज अभियान शुरू किया गया, जिसके बाद सूत्रों से पता चला कि वे कोलकाता में छिपे हुए हैं, मगर कोई भी उनकी खबर पुलिस को नही देता था।

हिरासत और लॉकअप में मौत

पुलिस द्वारा चारू के एक करीबी को पकड़ लिया गया और उसे इतना प्रताड़ित किया कि अंत में उसने चारू की खबर पुलिस को बता दी। कोलकाता के लाल बाजार में चारू को हिरासत में लिया गया और दस दिन तक किसी को मिलने तक नहीं दिया गया। उस समय लाल बाजार का लॉकअप ‘नक्सल टॉर्चर’ के लिए कुख्यात हो गया। माना जाता है कि चारू को लॉकअप में भयानक टॉर्चर किया गया, न वकील को मिलने दिया गया और न कोर्ट में पेश किया गया। 27 जुलाई को उसी लॉकअप में चारू की मृत्यु हो गई, जिसके बाद उनके परिजनों को उनका शरीर तक नही सौंपा गया और अंत में पुलिस द्वारा ही जला दिया गया।

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