राजधानी महाविद्यालय में वुमेन डेवलपमेंट सेल द्वारा मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता के लिए समूह चर्चा का हुआ आयोजन
Rajdhani College: छात्रों ने गैर-संस्थागतिकरण की चुनौतियों को सामने रखते हुए बताया कि गैर संस्थागतिकरण के कारण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में यह संभव है कि गंभीर मानसिक रोगियों पर उस प्रकार से ध्यान नहीं दिया जाएगा, जैसा उन्हें विशेष मानसिक अस्पताल में मिलता है।
‘मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता मास’ को ध्यान में रखते हुए वूमेन डेवलपमेंट सेल, राजधानी महाविद्यालय ने ‘क्या मानसिक स्वास्थ्य सेवा का गैर-संस्थागतिकरण कर देना चाहिए?’ के विषय पर सामूहिक चर्चा का बुधवार को आयोजन किया। जिसमें वूमेन डेवलपमेंट सेल के सभी सदस्यों सहित महाविद्यालय के अन्य छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।
मानसिक स्वास्थ्य पर बात करना क्यों जरूरी?
मानसिक स्वास्थ्य आज की भागदौड़ भरी जिंदगी की सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है और छोटे-बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक को आज अवसाद ने घेर रखा है। इसी के साथ दुर्भाग्य यह भी है कि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में बड़ी संकीर्ण मानसिकता रही है, जिसे चर्चाओं के माध्यम से ही बदला जा सकता है।
गैर-संस्थागतिकरण क्या है और ये क्यों जरूरी है ?
गैर-संस्थागतीकरण से मतलब है कि मानसिक रोगियों को एक अलग अस्पताल में अलग-थलग रखने की बजाय उनके इलाज की व्यवस्था सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ही की जाए, जिससे मानसिक रोगियों का समाज के साथ जुड़ाव बना रहे। चर्चा के दौरान छात्रों ने बताया कि गैर-संस्थागतिकरण से मानसिक रोगियों का समाज के जुड़ाव संभव हो पाएगा और शायद इससे उन्हें जल्दी स्वस्थ होने में मदद मिले। साथ ही साथ समाज में भी मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जो मिथक है वो टूटेगा और चूंकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर मानसिक चिकित्सकों की आवश्यकता पड़ेगी, इससे रोजगार के भी नए अवसर पैदा होंगे।
वहीं इसके फायदे ये भी हो सकते हैं कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर इलाज उपलब्ध होने से सुलभता आएगी और इससे सभी को समुचित इलाज उपलब्ध हो सकेगा। वहीं गंभीर रोगियों के ऊपर भी ज्यादा ध्यान दिया जा सकता है।
गैर-संस्थागतिकरण के नुकसान?
छात्रों ने इसकी चुनौतियों को रखते हुए बताया कि गैर संस्थागतिकरण के कारण सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में यह संभव है कि गंभीर मानसिक रोगियों पर उस प्रकार से ध्यान नहीं दिया जाएगा, जैसा उन्हें विशेष मानसिक अस्पताल में मिलता है। वहीं उनके अनुसार यह भी संभव यह भी है कि ऐसे रोगियों का समाज पर विपरीत प्रभाव पड़े।
अंत में यह चर्चा इस निष्कर्ष पर पहुंची गैर-संस्थागतिकरण आवश्यक है ताकि मानसिक स्वास्थ्य को लेकर समाज में एक चेतना आए और साथ ही साथ सभी को सुलभ इलाज उपलब्ध हो सके।