29 मार्च का इतिहास: आज के दिन मंगल पांडे ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बगावत का किया था ऐलान
29 मार्च:आज ही के दिन साल 1857 में मंगल पांडे ने भारत की आजादी की जंग पहली गोली चलाकर छेड़ी थी। 1857 की क्रांति की आधिकारिक शुरुआत वैसे तो 10 मई को होनी थी लेकिन उन्होंने इससे पहले ही 29 मार्च को पहली गोली चलाकर इसे शुरू कर दिया था।
29 मार्च यानी आज का दिन भारतीय इतिहास का एक बड़ा दिन माना जाता है। आज ही के दिन साल 1857 में मंगल पांडे ने भारत की आजादी की जंग पहली गोली चलाकर छेड़ी थी। 1857 की क्रांति की आधिकारिक शुरुआत वैसे तो 10 मई को होनी थी लेकिन उन्होंने इससे पहले ही 29 मार्च को पहली गोली चलाकर इसे शुरू कर दिया था। बता दें कि इस विद्रोह के नायक मंगल पांडे के नाम से अंग्रेज खौफ खाते थे, जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी फांसी की घोषित तिथि से 10 दिन पहले ही उन्हें चुपके से फंदे पर लटका दिया गया था। मंगल पांडे को फांसी की सजा 18 अप्रैल 1857 को घोषित की गई थी लेकिन 8 अप्रैल 1857 को ही पश्चिम बंगाल की बैरकपुर की जेल में उन्हें फांसी दे दी गई।
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई सन 1827 को फैजाबाद जिले के सुरूरपुर नामक स्थान पर हुआ था। उन्हें फौज से अत्यधिक प्रेम था और शुरू से ही वह फौज में जाना चाहते थे। इसलिए वह साल 1849 में 18 वर्ष की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की 34 वी बंगाल नेटिव इन्फेंट्री में सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए। उसी समय 1850 के दौरान सिपाहियों के लिए एक नई तकनीक की एनफील्ड राइफल आई थी। इन नई इनफील्ड रायफलों के कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिली होती थी। इन कारतूसों का प्रयोग करने से पहले मुंह से काटना पड़ता था। ऐसे में यह बात हिंदू और मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली थी।
मंगल पांडे को यह बात रास नहीं आई और उन्होंने इस बात का विरोध किया। जिसके चलते उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़ दी। 29 मार्च 1857 को मंगल पांडे ने विद्रोह करते हुए कारतूस का इस्तेमाल करने से मना कर दिया। जिसके कारण उन्हें सेना से निकाल दिया गया और पांडे ने विद्रोह करते हुए कई और सिपाहियों को साथ ले लिया तथा अंग्रेज अफसर हेयरसेय पर हमला बोलकर उसकी हत्या कर दी। अंग्रेज़ी अफ़सर की हत्या के साथ ही उन्होने स्वयं को भी गोली मार ली। परंतु वह बच गए और उन्होंने मारो फिरंगी को का नारा दिया।
बाद में उन्हें अंग्रेजी सरकार के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया तथा उनका कोर्ट ऑफ मार्शल हुआ। मुकदमे के दौरान उन्होंने अंग्रेज अफसरों के खिलाफ विद्रोह की बात को स्वीकार कर लिया और उन्हें 8 अप्रैल सन 1857 को फांसी दे दी गई।