महामारी के मद्देनजर, वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा के समर्थन में भारत

September 6, 2021 - 13:33
December 9, 2021 - 10:50
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महामारी के मद्देनजर, वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा के समर्थन में भारत
प्रतिकात्मक चित्र @Amar Ujala

कोरोना काल  एक ऐसा  अनिश्चितकाल जो अपने साथ लाया रुदन और पीड़ा। इस काल में भारत में 200000 से अधिक बच्चे अनाथ हुए, कितनी ही मांगों का सिंदूर उजड़ गया ,कितनी ही मांओं ने अपने बच्चों को खो दिया, सबसे अधिक निर्ममता तो तब हुई जब परिवार जनों को अपने स्वजनों के दाह संस्कार की भी अनुमति नहीं मिली।
इस निर्ममता से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने कमर कस ली ,वैक्सीनो के परीक्षण शुरू हुए कुछ सफल तो कुछ असफल हुए। पहली सफलता मिली रूस को, 11 अगस्त 2020 में स्पूतनिक वी के रूप में उसने विश्व की पहली कोरोना वैक्सीन बना ली। और दुनिया में वैक्सीन बनाने की होड़ सी लग गई। 
2 जनवरी 2021 में भारत सरकार ने दो भारतीय वैक्सीन कोविशिल्ड और कोवैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की अनुमति दी। इसी के साथ एक बार पुनः विश्व का भरोसा विश्व के सबसे बड़े वैक्सीन  निर्माता की ओर जागने लगा। 16 जनवरी को भारत में विश्व का सबसे बड़ा वैक्सीनेशन अभियान शुरू हुआ,और इसी के साथ शुरू हुआ दुनिया की आकांक्षाओं को पूरा करने,और अपनी "वसुधैव  कुटुम्बकम" की विचारधारा का प्रसार करने की कोशिश जिसको नाम मिला "वैक्सीन मैत्री"। जिसके अंतर्गत हमने उन  राष्ट्रों तक मुफ्त वैक्सीन पहुंचाई जो सक्षम नहीं थे, सक्षम राष्ट्रों को कम दामों में वैक्सीन मुहैया कराई, और ऐसे संस्थानों की भरपूर मदद की जो गरीब राष्ट्रों  राष्ट्र को वैक्सीन मुहैया करा रहे थे। हमने पड़ोसी प्रथम जैसी नीतियों का अनुसरण किया जिसने विश्व के समक्ष हमारी नीतियों को दृढ़तापूर्वक रखा।
यदि भारत में वैक्सीनेशन की बात की जाए तो सरकार द्वारा चरणबद्ध तकनीक का अनुसरण किया गया, वैक्सीन  का पहला हक दिया गया उन कोरोना योद्धाओं को जिन्होंने तकरीबन 1 वर्ष अपने दृढ़ निश्चय  का परिचय देते हुए कोरोना से लड़ने में सबसे अधिक मदद की ,उसके उपरांत 45 से अधिक उम्र के लोगों को और अंततः 18 वर्ष से अधिक युवाओं को। इस तकनीक के अनुसरण के लिए सर्वप्रथम सरकार ने वैक्सीन की उपलब्धता ,उसके वितरण ,उसके संरक्षण, उसके लिए उचित प्रशिक्षण और लाभार्थियों तक पहुंच को सुगम बनाने के लिए को-विन  जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के निर्माण जैसी मूलभूत सुविधाओं को दुरुस्त किया। वैक्सीन अभियान शुरू होते ही अपनी रफ्तार पकड़ चुका था प्रतिदिन लगभग 7 से 8 लाख लोगों तक वैक्सीन पहुँच रही थी। 
परंतु प्रथम चरण के उपरांत वैक्सीन की रफ्तार में कमी आई जिसका प्रमुख कारण लोगों के बीच वैक्सीन को लेकर अराजकता, झूठी खबरों के आधिपत्य और साथ ही साथ भड़काऊवाद  की राजनीति थी, यदि वैक्सीन की कमी की बात की जाए तो उसका कारण वैक्सीन मैत्री नहीं अपितु वैक्सीन की बर्बादी थी।
शायद यही कारण थे जिनकी वजह से देश को दूसरी लहर में इतने बुरे हालात से गुजरना पड़ा, यदि विरोधी दलों ने इस काल में सरकार के साथ मिलकर वैक्सीन के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य किया होता या अपनी संवैधानिक शपथ के कुछ अंश का भी अनुसरण किया होता तो हालात अच्छे होते , इस काल के दौरान भी कई राज्य सरकारों ने वैक्सीनेशन के स्थान पर, अपनी कमियों को सुधारने के स्थान पर केंद्र से लड़ने में समय खर्च कर दिया । दूसरी लहर में विश्व ने  जिस प्रकार भारत का साथ दिया,हर सक्षम मदद की वह अति महत्वपूर्ण था, और उसे वैक्सीन मैत्री का प्रत्युत्तर माना जा सकता है।" वसुधैव कुटुंबकम" की भारतीय अवधारणा को विश्व का समर्थन मिला जो कि नए आयामों की तरफ इशारा करता है।
दूसरे दौर की  गलतियों से सीख लेते हुए भारत सरकार ने वैक्सीनेशन की रफ्तार में वृद्धि की, प्रतिदिन 60 से 70 लाख खुराकें दी जा रही हैं, और अगर यह रफ्तार बरकरार रहती है तो विशेषज्ञ  कहते हैं की साल के अंत तक 18 वर्ष  से अधिक आयु वर्ग के सारे लोग वैक्सीनेटेड हो जाएंगे जो कि एक खुशखबरी है।

अंततः  हर भारतीय का धर्म है यह सुनिश्चित करें कि वह स्वयं वैक्सीन प्राप्त कर चुके हों, और साथ ही साथ अपने आसपास के लोगों के वैक्सीनेशन की भी पुष्टि करें ,और समाज में व्याप्त अराजकता को समाप्त करें, लोगों को वैक्सीनेशन के प्रति जागरूक करने में सरकार की मदद करें और सकारात्मक राजनीति की तरफ जनता का रुख मोड़े ।क्योंकि विश्व भारत को एक नए नजरिए से देखने को तैयार है बस जरूरत है हमें अपने आपको उस योग्य बनाने की।

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