Kargil Vijay Diwas: कारगिल शहीद दिवस का दिन जो बयां करता है विक्रम बत्रा और सौरभ कालिया जैसे भारतीय शहीदों की साहस की गाथा
Kargil Vijay Diwas: आज कारगिल दिवस को 23 वर्ष पूर्ण हो गए हैं और पूरा देश उन शूरवीरों को याद कर रहा जिन्होंने राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि समझा।
Kargil Vijay Diwas:प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई कारगिल शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उन महान सपूतों को समर्पित है जिन्होंने भारत माता की सेवा के लिए स्वयं के प्राण न्योछावर कर दिए थे। शहीद दिवस को “कारगिल संघर्ष” के नाम से भी जाना जाता है। आज कारगिल दिवस को 23 वर्ष पूर्ण हो गए हैं और पूरा देश उन शूरवीरों को याद कर रहा जिन्होंने राष्ट्रधर्म को सर्वोपरि समझा। सूत्रों के अनुसार आज रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने नेशनल वार मेमोरियल पहुंच कर कारगिल के अमर योद्धाओं(शहीदों) को श्रद्धांजलि प्रदान की। साथ ही साथ दिल्ली के कारगिल अपार्टमेंट में पूजा हवन के माध्यम से अमर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई जिसमें वे सभी लोग मौजूद रहे जो अमर शहीदों के घर से ताल्लुक रखते हैं, जिसमें कोई उन महान सपूतों की मां थी तो कोई उनकी पत्नी, कोई बहन थी तो कोई बेटी।
यदि आज पूरा देश सुरक्षित है तो इसके पीछे की वजह है भारत माता के वीर सपूतों का योगदान। वो वीर सपूत जो कई मीलों दूर से स्वयं के नेत्रों में प्रकाश की वह लौ लेकर चले थे जिससे वह राष्ट्र के गौरव को बढ़ा सके। अंततः उन वीर सपूतों ने अपनी कर्मठता के साथ ऐसा कर भी दिखाया और इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में सदैव के लिए विद्यमान हो चुका है। दरअसल यह घटना 3 मई 1999 की है जब पाकिस्तानी घुसपैठियों ने कारगिल नियंत्रण रेखा को पार करके भारत के नियंत्रण क्षेत्र में कब्जा करने के मकसद से कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर अपने कदम को आगे बढ़ाया था। दोनों देशों के मध्य तनाव की स्थिति बनी हुई थी।
भारतीय सैनिकों ने स्वयं के कर्तव्यों को ध्यान में रखते हुए पूरी साहस के साथ कारगिल की चोटियों पर यह युद्ध लड़ते रहे। यह युद्ध पूरे 60 दिनों तक चलता रहा और भारतीय सैनिकों ने हार नहीं मानी बल्कि 26 1999 को आखिरी अंजाम देते हुए अपने पराक्रम से पाकिस्तानी घुसपैठियों को पराजित किया।हालांकि राष्ट्रधर्म की सेवा करते हुए इस युद्ध में 528 जवान शहीद हो गए और 1363 जवान घायल हुए। साथ ही साथ इस युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा और कैप्टन सौरभ कालिया का तथा उन सभी सपूतों का जो राष्ट्र सेवा के लिए बलिदान हो गए का विशेष योगदान रहा।
कारगिल और विक्रम बत्रा
कैप्टन विक्रम बत्रा के योगदान को भुलाया नही जा सकता। कैप्टन विक्रम बत्रा पालमपुर के निवासी थे। सूत्रों के अनुसार विक्रम बत्रा ने जुलाई 1996 में सेना अकादमी में प्रवेश ले लिया था। उनका कोड नेम शेरशाह था। साथ ही साथ उनका उद्घोष (रेडियो के जरिए) –“यह दिल मांगे मोर” था।
युद्ध के दौरान कैप्टन बत्रा ने अपने साथियों की जान बचाई और स्वयं को जोखिम में रखकर 18 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर तिरंगा फहरा कर भारतीय शूरवीर ऑपरेशन विजय का इतिहास रचा। अंतिम क्षण में लहू लुहान कैप्टन विक्रम बत्रा ने साहस के साथ दुश्मनों को मिट्टी में मिला दिया! और देश को गौरवान्वित किया। बता दें कि मरणोपरांत कैप्टन विक्रम बत्रा को भारत के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार–परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
कैप्टन सौरभ कालिया की दास्ता
कैप्टन सौरभ कालिया पालमपुर के निवासी थे। कैप्टन कालिया ने राष्ट्र सेवा को अपना धर्म माना। सूत्रों के अनुसार कैप्टन कालिया 15 दिनों तक पाकिस्तानियों की गिरफ्त में थे। पाकिस्तानियों ने उन्हें बंदी बना लिया था और अनेक यातनाएं दीं। जिसके चलते अपनी पहली तनख्वाह लेने से पहले ही सौरभ शहीद हो गए।