Sawan Kanwar Yatra: जानिए क्यों मनाई जाती है शिवरात्रि और कितने प्रकार की होती है शिव जी की कावड़
Kanwar Yatra: सावन के पूरे महीने में हर सोमवार को भगवान शिव एवं मंगलवार को माता पार्वती का व्रत रखा जाता है जिन्हें, सावन सोमवार व्रत और मंगला गौरी व्रत के नाम से जाना जाता है।
Shivratri: वैसे तो हर महीने ही शिवरात्रि आती है लेकिन सावन मास की शिवरात्रि का भक्तों के लिए एक विशेष महत्त्व है,इस दिन भगवान शिव के भगत अपने आराध्य देव का पंचामृत एवं गंगा जल से अभिषेक करते हैं तथा उनसे अपनी मन की मुरादें भी मांगते हैं। सावन के पूरे महीने में हर सोमवार को भगवान शिव एवं मंगलवार को माता पार्वती का व्रत रखा जाता है जिन्हें, सावन सोमवार व्रत और मंगला गौरी व्रत के नाम से जाना जाता है। इस साल सावन की शिवरात्रि 26 जुलाई मंगलवार के दिन मनाई गई, शिवरात्रि और मंगला गौरी व्रत दोनो एक ही दिन पड़ने के कारण इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है।
क्यों मनाई जाती है शिवरात्रि?
पौराणिक कथाओं की मानें तो समुद्र मंथन के समय अमृत कलश के निकलने से पहले हलाहल विष से भरा हुआ कलश निकला था उस विष का ताप इतना भीषण था कि समस्त देव दानव उसको सूघते ही बेहोश हो गए थे। भगवान शिव ने बेहोश हुए देव दानवों को अपनी शक्ति से चेतना प्रदान की। इसके बाद जब यह सवाल आया कि इस विष को कौन ग्रहण करेगा? तो भगवान शिव ने उसे ग्रहण किया क्योंकि उनके हृदय में भगवान विष्णु का वास था और उन्हें पीड़ा न हो इसीलिए भगवान शंकर ने विष को निगला नही बल्कि उसे अपने कंठ में ही धारण कर लिया। जिसके कारण उनका कंठ नीला पढ़ गया और उनका नाम नीलकंठ पड़ा। विष को धारण करने के बाद शिव जी को गर्मी का एहसास होने लगा जिसको शांत करने के लिए वहां उपस्थित सभी देवताओं ने उन पर पवित्र नदियों का जलाभिषेक करना शुरू कर दिया। जिसके बाद से आज तक हर सावन में भगवान के भक्त अपने आराध्य का पंचामृत और गंगाजल से अभिषेक करते हैं।
क्यों की जाती है कावड़ यात्रा?
सावन के महीने में भगवे कपड़े पहने और मुंह पे बम बम भोले का नारा लगाते हुए आपने कईं कावड़ियों को देखा होगा लेकिन क्या अपने कभी यह जानना चाहा है की आखिर यह कावड़ है क्या और क्यों की जाती है कावड़ यात्रा? आइए हम बताते हैं।
सबसे पहले अर्थ की बात करें तो कावड़ का अर्थ होता है कंधा इसीलिए इसको कंधे पर रखके लाया जाता है माना जाता है की कावड़ यात्रा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह भी माना जाता है की सबसे पहला कावड़िया रावण था, भगवान शिव को विष के ताप से बचाने के लिए रावण ने कावड़ में जल भर कर यूपी के बागपत में स्थित पुरामहादेव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक किया था बस तभी से यह परंपरा चलती आ रही है। कावड़िए अपने पास बहने वाली गंगा नदी से कावड़ उठाकर किसी भी ज्योतिर्लिंग पे जल अभिषेक करते हैं यदि पास में ज्योतिर्लिंग न हो अपने घर के आस पास के ही किसी प्रसिद्ध शिवलिंग पर अभिषेक कर दिया जाता है।
कावड़ यात्रा (Kanwar Yatra) के प्रकार
Types of kanwar: मुख्य रूप से कावड़ के 4 प्रकार हैं-
1. सामान्य कावड़: इस कावड़ को कहीं भी रोककर कावड़िया आराम कर सकता है,दिन में कईं बार खा-पी सकता है। ज्यादा नियम कायदे न होने के कारण नए कावड़ियो में इसका चलन ज्यादा दिखाई पड़ता है।
2. डाक कावड़: यह नॉन स्टॉप कावड़ यात्रा होती है और इस कावड़ को रोका नहीं जाता। एक बार कावड़ में जल भरने के बाद शिवलिंग का अभिषेक होने बाद ही इस कावड़ को विश्राम दिया जाता है।
3. खड़ी कावड़: इस तरह की कावड़ को हमेशा किसी न किसी कावड़िए के कंधे पे रखा जाता है। आमतौर पर दो से तीन कावड़िए मिलकर इस कावड़ को उठाते हैं। कुछ जगहों पर इसे खलेसरी या दूसरे नामों से भी जाना जाता है।
4. बैठी कावड़: इस कावड़ को एक ही व्यक्ति लेकर चलता है साथ ही साथ समय समय पर आराम की जरूरत पढ़ने पर इसे किसी पेड़ के तने के सहारे या कावड़ स्टैंड पे टांग दिया जाता है।
क्षेत्रीय भाषा में इसे झूला कावड़ भी कहा जाता है।
समय के साथ साथ कावड़ में भी कई तरह का विस्तार आया है। आज कल रथ वाली और dj वाली कावड़ भी काफी चलन में रहती हैं। जिसमे कावड़ियों का एक पूरा समूह कावड़ को खींचता और नाचता गाता हुआ जाता है।
शिवरात्रि महूर्त
आइए अब जान लेते हैं कि क्या रहने वाला है इस वर्ष शिवरात्रि पर्व का शुभ महुर्त।
शुभ महुर्त 26 जुलाई मंगलवार साएं 06:46 मिनट से लेकर 27 जुलाई 2022, बुधवार को रात्रि 09:11 मिनट तक रहने वाला है।