Shri Radha Raman Temple: जानिए कैसे हुई थी भगवान श्री राधा रमण लाल जी के मंदिर की शुरूआत

वृंदावन के राधा रमण मंदिर की कहानी की शुरुवात होती है वर्ष 1515 से। जब स्वयं चैतन्य महाप्रभु वृंदावन पधारे और उन्होंने वृंदावन के विकास की जिम्मेदारी छः गोस्वामियों को सौंपी थीं।

August 13, 2022 - 06:01
Nov 24, 2022 - 08:43
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Shri Radha Raman Temple: जानिए कैसे हुई थी भगवान श्री राधा रमण लाल जी के मंदिर की शुरूआत
Shri Radha Raman Temple Vrindavan

देश- विदेश में भगवान कृष्ण के असंख्य भक्त मौजूद हैं। भगवान का हर भक्त उनकी अलग अलग रूपों में पूजा करते हैं। आज हम आपको भगवान के ऐसे ही रूप के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपने भक्तों के बेहद लाडले हैं। हम बात कर रहे हैं भगवान श्री राधा रमण लाल की।

श्री राधा रमण जी का का मंदिर वृंदावन में स्थित है। आप सभी लोगों ने कभी न कभी वृंदावन का नाम तो सुना ही होगा और अधिकतर लोगों ने वृंदावन का दर्शन भी किया ही होगा। वृंदावन मुख्यताः श्री बांके बिहारी मंदिर और प्रेम मंदिर के लिए पूरे विश्व में विख्यात है। लेकिन इन मंदिरों के अलावा वृंदावन में और भी कईं ऐसे मंदिर हैं जो अपने अंदर अपना एक बेहद गहरा इतिहास सहेजे हुए हैं।

वृंदावन के राधा रमण मंदिर की कहानी की शुरुआत होती है वर्ष 1515 से। जब स्वयं चैतन्य महाप्रभु वृंदावन पधारे और उन्होंने वृंदावन के विकास की जिम्मेदारी छः गोस्वामियों को सौंपी थीं। इन्ही छः गौस्वामियों में से एक दक्षिण भारत के चित्रापल्ली श्री रंगम मंदिर के मुख्य पुजारी के पुत्र श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी थे। श्री चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर भट्ट जी दामोदर कुंड की यात्रा पर गए और वहां से 12 शालिग्राम शीला अपने साथ लेकर वृंदावन आए और यहीं पर उनकी सेवा करने लग गए। वर्ष 1530 में चैतन्य महाप्रभु ने गोपाल भट्ट जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और वर्ष 1533 में अपनी लीला को पूरा करके गोलोक चले गए। समय गुजरता गया भट्ट जी अपने ठाकुर जी की शिला रूप में सेवा करते गए। एक दिन वृंदावन में एक सेठ जी आए और हर मंदिर में भगवान के श्री विग्रह को वस्त्र अर्पित करने लगे। जैसे ही वो श्री भट्ट जी के पास पहुंचे तो उन्होंने ताना कसते हुए कहा कि चंदन लगे यह शालिग्राम ऐसे लगते हैं मानो जैसे कढ़ी की सब्जी में बैंगन पड़े हों। यह बात सुनकर गोपाल भट्ट गोस्वामी को अत्यंत दुख हुआ और वो पूरी रात यह विचार करते रहे की अगर मेरे पास भी ठाकुर जी का श्री विग्रह होता तो में भी रोज उन्हें वस्त्र पहनाता। अगले दिन जब वह उठकर शालिग्राम जी की सेवा के लिए पहुंचे तो उन्होंने पाया की वहां पर शिला तो उपस्थित नहीं हैं लेकिन राधा रमण जी का सुंदर स्वरूप उपस्थित है। बस तभी से हर वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को राधा रमण जी के प्राकट्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

राधा रमण जी के मंदिर की अन्य खासियत की बात करें तो यहां पर एक भट्टी है जो पिछले 477 सालों से निरंतर जलती जा रही है। मंदिर में दीपक से लेकर राजभोग तक हर काम के लिए अग्नि इसी भट्टी से ली जाती है। इसके अलावा राधा रमण जी मंदिर एक और बात जो इसे सबसे अलग बनाती है वो यह है। यह अकेला ऐसा मंदिर है जहां पर जन्माष्टमी दोपहर के 12 बजे मनाई जाती है। यहां के सेवायतों का मानना है कि भगवान को देर रात तक जागना सही नही है। इसीलिए वो दोपहर को 12 बजे ही कृष्ण जन्म का उत्सव मना देते हैं।

राधा रमण जी के मुख्य उत्सवों की बात करें तो प्राकट्य उत्सव, जन्माष्टमी, झूलन उत्सव और होली यहां के प्रमुख उत्सवों में से एक हैं।

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