जानिए वर्ल्ड मेंटल हैल्थ डे किस दिन और क्यों मनाया जाता है , जानिए कब हुई थी इसकी शुरूआत
आज जहाँ व्यक्ति वैश्विक स्तर पर पूरे संसार से जुड़ गया है वहीं वह अकेला भी पड़ गया है। इसी कारण से मानसिक रोगों का रोगी भी बन जाता है। इन्हीं मानसिक रोगों के प्रति लोगों को जागरुक करने और उसका सामना करने के लिए प्रेरित करने के लिए संपूर्ण विश्व प्रत्येक वर्ष 10 अक्टूबर को वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे मनाता है।
प्रत्येक वर्ष 10 अक्टूबर को संपूर्ण विश्व में वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे मनाया जाता है। आज-कल के समय में जहाँ शारीरिक स्वास्थ्य जरूरी है वहीं मानसिक स्वास्थ्य भी आवश्यक है। मनुष्य के शरीर का सुदृढ़ होना जितना जरूरी है उतना ही मन का सबल होना भी आवश्यक है। एक मनुष्य स्वस्थ तभी कहलाता है जब वह शरीर के साथ-साथ मन से भी स्वस्थ हो।
मानसिक रोग एक ऐसा रोग है जिसमें व्यक्ति की सोचने-समझने और विचारने की शक्ति प्रभावित होती है। डिप्रेशन, एंजायिटी, चिंता और मानसिक तनाव के अलावा हिस्टीरिया, डिमेंशिया और फोबिया आदि बीमारियाँ हैं। मानसिक रोग एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी बाहरी रूप से स्वस्थ नजर आता है किंतु मानसिक रूप से बीमार होता है। इन बीमारियों का सीधा-सीधा पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है।
मनाए जाने का कारण और शुरुआत:
वर्ल्ड मेंटल हैल्थ डे की शुरूआत 1992 में सर्वप्रथम युनाइटेड नेशन्स और वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ के द्वारा की गई थी। यह बात जानने योग्य है कि वर्ल्ड फेडरेशन फॉर मेंटल हेल्थ 150 से अधिक सदस्य देशों वाला एक संगठन है। 1992 के पश्चात से लेकर आज तक यह दिवस प्रत्येक वर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है।
आज जहाँ लोग कोविड-19 के कारण अपने घरों में ही बंद हैं, इस स्थिति में लोगो में मानसिक रूप से अस्वस्थता का खतरा और भी बढ़ गया है। इस दिवस को मनाए जाने का उद्देश्य लोगों को मानसिक रोग के प्रति जागरुक करना है और साथ ही इससे लड़ने के लिए भी प्रेरित करना है। इसका उद्देश्य है कि व्यक्ति अपने रोगों को पहचान सके और समय रहते ही उसकी पहचान कर चिकित्सक से परामर्श ले सके। साथ ही इसका मकसद रोगी के परिवार, रिश्तेदार, और समाज के लोगों को भी जागरुक करना है कि वे भी रोगी को समझें और उसकी देखभाल करें।
मानसिक रोग, डिप्रेशन है खतरनाक!
आज का व्यक्ति अपनी व्यस्तता में इतना खो गया है कि अकेला पड़ गया है। वह अपने अकेलेपन में ही घुट-घुट कर जीता रहता है जिसके कारण कई बार व्यक्ति अवसाद अर्थात डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। यह एक ऐसी बीमारी है जो व्यक्ति के लिए जहर का काम करती है। यह एक ऐसी बीमारी है जो न केवल व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती है बल्कि उसके सोचने, समझने की क्षमता को भी बुरी तरह से प्रभावित करती है।
WHO के अनुसार विश्वभर में तकरीबन 280 मिलियन लोग इस अवसाद अर्थात डिप्रेशन के शिकार हैं। यदि सही समय पर इसका इलाज न कराया जाए तो यह जानलेवा साबित हो सकता है। यह बात कुछ हैरान करने वाली है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में तकरीबन 75 प्रतिशत लोग इसका किसी भी तरह का इलाज नहीं कराते हैं।
अवसाद/ डिप्रेशन के लक्षण
डिप्रेशन के लक्षण व्यक्ति की उम्र के अनुसार भिन्न-भिन्न नजर आते हैं। डिप्रेशन हर किसी को अलग तरह से प्रभावित करता है।
बच्चों में डिप्रेशन के लक्षण
- बच्चों में चिड़चिड़ापन आ जाता है।
- वे कुछ चिंतित से नजर आते हैं।
- पैरेंट्स द्वारा उन्हें छोड़ देने का डर
- विद्यालय न जाने के लिए बहाने बनाना
वयस्कों में डिप्रेशन के लक्षण
- उदास व निराशा का भाव व्याप्त रहता है।
- स्वयं को हारा हुआ महसूस करते हैं।
- सही से नींद न ले पाना
- तनाव व चिंता में रहना
- परिवार, दोस्त सभी से दूर-दूर रहना
- किसी भी कार्य में मन का न लगना
- मन का बेचैन रहना
किशोरों में डिप्रेशन के लक्षण
- चिड़चिड़ापन
- बैचेनी
- अपनी सेल्फ रिस्पेक्ट में कमी महसूस करना।
- भूख का बढ़ना या कम हो जाना
इन लक्षणों को पहचानने के लिए बारीकी से विश्लेषण आवश्यक है क्योंकि दूर से यह लक्षण सामान्य नजर आते हैं। इन लक्षणों का पता लगने पर परिवार के सदस्यों द्वारा रोगी की देखभाल करना आवश्यक है, साथ ही उसको समझना भी।
इस स्थिति में मरीज का सही होना तब संभव है जब परिवार के सदस्य रोगी को पूर्णतः समझें, उसकी परिस्थितियों को समझें और उसके साथ अच्छे से व्यवहार करें।
मानसिक रोगों का सर्वोत्तम इलाज परिवार का साथ है क्योंकि रोगी जिन चीजों से स्वयं को हीन महसूस करता है, उन कमियों को पूरा करने में परिवार रोगी की मदद कर सकता है।
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