जानिए क्यों मनाया जाता है गुरु प्रकाश पर्व, क्यों देना पड़ा था गोबिंद सिंह को अपने परिवार का बलिदान

‘प्रकाश पर्व‘ का सिख धर्म में खास महत्व है। इस दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है, और अरदास, भजन, कीर्तन किए जाते हैं। बता दें कि सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी नें खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने ही “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तेह” अर्थात “सब कुछ ईश्वर का ही है और अंत विजय ईश्वर की होगी” की सीख दी थी।

January 7, 2022 - 15:44
January 10, 2022 - 18:33
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जानिए क्यों मनाया जाता है गुरु प्रकाश पर्व, क्यों देना पड़ा था गोबिंद सिंह को अपने परिवार का बलिदान
गुरु प्रकाश पर्व जयंती- फोटो: gettyimages

सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी की जयंती 9 जनवरी 2022 को बड़ी धूमधाम से मनाई जा रही है। यह उनकी 356वीं जयंती हैं। उनका जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना (पाटलिपुत्र ) में हुआ था। हिंदी पंचांग के अनुसार पौष मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को उनका जन्म हुआ था। इस उत्सव को ‘ प्रकाश पर्व ‘ कहा जाता हैं। ‘ प्रकाश पर्व ‘ का सिख धर्म में खास महत्व है। इस दिन गुरुद्वारों को सजाया जाता है, और अरदास, भजन, कीर्तन किए जाते हैं। बता दें कि सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी नें खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने ही “वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तेह” अर्थात “सब कुछ ईश्वर का ही है और अंत विजय ईश्वर की होगी” की सीख दी थी।

गुरु गोबिंद सिंह का बचपन

गुरु गोबिंद सिंह के पिता गुरु तेग बहादुर सिंह थे। गोबिंद सिंह का बचपन का नाम गोबिंद राय था। उनके पिता सिखों के नौवें गुरु थें, जिन्होंने औरंगज़ेब के शासनकाल कें दौरान इस्लाम धर्म न स्वीकार करने पर अपने प्राणों का बलिदान दे दिया था।

 गुरु गोबिंद सिंह जी नें जब गद्दी संभाली, तब वें केवल नौ वर्ष कें थे। वे बचपन से ही बहुत साहसी और स्वाभिमानी थे। घोड़ो की सवारी करना, हथियार पकड़ना, मित्रों की दो टोलियों को एकत्रित करके युद्ध करना उन्हें काफी पसंद था। वह बुद्धि सें भी काफ़ी तेज़ थे। उन्होंने बहुत ही सरलता से हिंदी, संस्कृत व फारसी का ज्ञान सीख लिया था।

 कैसे हुई खालसा पंथ की स्थापना

साल 1699 में वैशाखी कें दिन गुरु गोबिंद सिंह जी  नें आनंदपुर साहिब में दरबार सजाया। सबके सामनें सभा में उन्होंने पाँच सिरों की बलि की मांग की। जिसके बाद धीरे-धीरे पाँच लोग अपनी जान की बलि देने कें लिए आगे आए। जिसके बाद गुरु जी द्वारा एक–एक को तम्बू में लें जा कर खड़ा कर दिया गया। तब उन्होंने, उन लोगों को ‘पंच प्यारे’ कहा और अमृत का रस दिया और खुद भी उनसे अमृत का सेवन लिया। इस प्रकार उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की। खालसा पंथ का अर्थ हैं– शुद्ध। खालसा पंथ कें अनुसार हर सिख को कड़ा, कृपाण, कच्छा, केश और कंघा धारण करना होगा।

धर्म की रक्षा के लिए परिवार का बलिदान

गुरु गोबिंद सिंह ने दूसरा धर्म स्वीकार नहीं करने की वज़ह से उनके दोनों बेटों को दीवार में ज़िंदा चुनवा दिया गया। उन्होंने धर्म की रक्षा कें लिये पूरे परिवार का बलिदान दे दिया। जिसके बाद सें वे सिखों कें दसवे और आखिरी गुरु हो गए।

गुरु गोबिंद सिंह जी के अनमोल वचन

  1. भगवान् ने हम सभी को जन्म दिया है, ताकि हम इस संसार में अच्छे कार्य  करें और समाज में फैली बुराई को दूर करें।
  2. इंसान से प्रेम करना ही,ईश्वर की सच्ची आस्था और भक्ति है।
  3. मुझको सदा उसका सेवक ही मानो और इसमें किसी भी प्रकार का संदेह मत रखो।

       4. हे प्रभु मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करें कि मैं कभी अच्छे कर्मों               को करने में  तनिक भी संकोच ना करूँ।

       5. भगवान के नाम के अलावा आपका कोई भी सच्चा मित्र नहीं है,

           ईश्वर के सभी अनुयायी  इसी का चिंतन करते हैं और इसी को                 देखते हैं।

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