Maha Shivratri 2022: आज है महाशिवरात्रि का महापर्व, जानें महाशिवरात्रि मनाने की रोचक कथाएं और बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम

Maha Shivratri: हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, आज (महाशिवरात्रि) के दिन भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने शिवलिंग के पहली बार दर्शन और इसकी पूजा की थी। तभी से संसार में महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ की उपासना की प्रथा चली आ रही है।

March 1, 2022 - 18:17
March 1, 2022 - 20:32
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Maha Shivratri 2022: आज है महाशिवरात्रि का महापर्व, जानें महाशिवरात्रि मनाने की रोचक कथाएं और बारह ज्योतिर्लिंगों का नाम
महाशिवरात्रि का महापर्व- फोटो : Pixabey

आमतौर पर शिवरात्रि तो साल के हर महीने में आती है लेकिन मुख्य रूप से महाशिवरात्रि सालभर में केवल एक बार आती है। ज्योतिषियों के मुताबिक, फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि का खास त्योहार मनाया जाता है। इस बार साल 2022 में यह पर्व 1 मार्च मंगलवार को है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक, आज (महाशिवरात्रि) के दिन भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा ने शिवलिंग के पहली बार दर्शन और इसकी पूजा की थी। तभी से संसार में महाशिवरात्रि पर भोलेनाथ की उपासना की प्रथा चली आ रही है। इसके अलावा ऐसी भी मान्यताएं हैं कि इस दिन महादेव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। आध्यात्मिक रूप से महाशिवरात्रि पर्व को प्रकृति और पुरुष के मिलन की रात के रूप में बताया जाता है। इस दिन शिवभक्त व्रत रखकर अपने भोलेनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और मंदिरों में जलाभिषेक का कार्यक्रम दिन भर चलता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती है और इसके पीछे की कथाएं क्या हैं?

महादेव और माता पार्वती का हुआ था मिलन

महाशिवरात्रि को रात भर शिवभक्त अपने आराध्य महादेव का जागरण करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन ही शिव जी की शादी का उत्सव मनाते हैं और इसी दिन महादेव ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश भी किया था। ज्योतिषियों के अनुसार, माता पार्वती और भोलेनाथ का विवाह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुई थी। इसके अलावा शिवरात्रि के 15 दिन बाद होली का त्योहार मनाने के पीछे एक कारण यह भी है। एक मान्यता यह भी है कि महाशिवरात्रि का व्रत रखने से विवाह में आने वाली समस्या दूर होती है और विवाह जल्द होता है।

समुद्र मंथन से निकले विष पान  से की थी संसार की रक्षा

ऐसी मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय सबसे पहले विष (जहर) निकला था, जिससे समस्त संसार नष्ट हो जाता लेकिन भगवान शिव ने विष का पान करके इस सृष्टि को संकट से बचाया था। समुद्र से निकले विषैले विष को पीने के बाद महादेव का गला नीला हो गया था, जिस कारण उनका एक नाम नीलकंठ पढ़ा था। इन वजह से भी महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है।

पहली बार प्रकट हुआ था महादेव का शिवलिंग स्वरूप

पौराणिक कथाओं के मुताबिक, महाशिवरात्रि के दिन ही महोदव अपने शिवलिंग रूप में प्रकट हुए थे। लिंग पुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु में कौन बड़ा है इस बात को लेकर विवाद हो गया था। स्थिति इतनी बढ़ गई थी कि दोनों ही भगवान अपने-अपने दिव्य अस्त्रों और शस्त्रों से युद्ध करने लगे थे। युद्ध शुरू होते ही ब्रह्माण्ड में चारों तरफ हाहाकार मच गया। इसके बाद देवताओं, ऋषि मुनियों के अनुरोध करने पर महादेव इस विवाद को खत्म करने के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में प्रकट हुए थे। कहा जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग का न कोई आदि था और न ही कोई अंत था।

दोनों भगवान इस ज्योतिर्लिंग को देखकर यह नहीं समझ पाए कि यह क्या है। इस चीज की जांच करने के लिए भगवान विष्णु सूकर का रूप धारण करके नीचे की ओर जाते हैं, जबकि ब्रह्मा जी हंस का रूप धारण कर ऊपर की ओर यह जानने के लिए उड़ते हैं कि इस ज्योतिर्लिंग का आरंभ कहां से हुआ है और इसका अंत कहां है। जब दोनों लोगों को सफलता नहीं मिलती तब दोनों ने ज्योतिर्लिंग को प्रणाम कर अपनी गलतियां के लिए क्षमा मांगी। इसी दौरान उस ज्योतिर्लिंग में से ऊं (ओउ्म) की ध्वनि सुनाई देती है। दोनों ही भगवान आश्चर्यचकित हो गए। इसके बाद उन्होंने देखा कि ज्योतिर्लिंग के दाहिने तरफ आकार, बायीं तरफ उकार और बीच में मकार है। अकार सूर्यमंडल की तरह, उकार अग्नि के तरह तथा मकार चंद्रमा की तरह तेज़ में चमक रहा था और उन तीन कार्यों पर शुद्ध स्फटिक (चमकिला पत्थर) की तरह महादेव को देखा। महादेव के दर्शन के पश्चात् सबसे पहले ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु ने उनकी विधिपूर्वक पूजा-अर्चना और शिव स्तुति की थी। इस वजह से महाशिवरात्रि के दिन विशेष तौर पर शिवलिंग की पूजा-पाठ करने का विधान है।

अलग-अलग जगहों पर प्रकट हुए थे 64 शिवलिंग

ज्योतिषियों और धर्म गुरुओं के अनुसार, एक और कथा यह भी मानी जाती है कि महाशिवरात्रि के दिन ही महादेव अपन शिवलिंग के रूप में 64 विभिन्न जगहों पर प्रकट हुए थे। उनमें से हमें केवल 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम पता है, जो निम्न हैं, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, घृष्‍णेश्‍वर ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग और वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग हैं। इन्हीं 12 ज्योतिर्लिंग को द्वादश ज्योतिर्लिंग कहते हैं।

महाशिवरात्रि का महत्व

यदि महाशिवरात्रि के धार्मिक महत्व की बात की जाए तो इसी दिन महादेव ने वैराग्य जीवन छोड़कर गृहस्थ जीवन में प्रवेश किया था। महाशिवरात्रि के दिन भक्त शिव जी की शादी का उत्सव मनाते हैं और रात्रि में जागरण करके माता-पार्वती और महादेव की आराधना करते हैं। ऐसी मान्यता है जो भक्त ऐसा करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं  पूरी होती हैं और उनके विवाह में आने वाली सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं।

महाशिवरात्रि पर्व पर उपवास व जागरण करने के फायदे

भारत में ऋषि महर्षियों ने समस्त आध्यात्मिक अनुष्ठानों (क्रमबद्ध कार्यों) में उपवास या व्रत को महत्त्वपूर्ण माना है। श्रीमद भगवत गीता के मुताबिक, उपवास विषय निवृत्ति का अचूक साधन है। आध्यात्मिक साधना के लिए उपवास करना बेहद आवश्यक होता है। वहीं महाशिवरात्रि में उपवास के साथ रात्रि जागरण का भी एक विशेष महत्व है। उपवास में अपनी इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण करने वाला संयमी व्यक्ति ही रात्रि में जागकर अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील हो सकता है। इन्हीं सब वजहों के कारण महाशिवरात्रि में उपवास के साथ रात्रि में जागकर शिवजी की पूजा की जाती है।