धारा 498-ए का दुरूपयोग बना हजारों पुरुषों की आत्महत्या का कारण
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2015 में लगभग 1,33,623 लोगों ने आत्महत्या की थी। जिसमें 91,528 यानी 68% पुरुष और बाकी 42,088 महिलाएं थी। उन 91,528 पुरुषों में से 24,043 ऐसे पुरुष थे, जिन्होंने पारिवारिक मामलों से तंग आकर आत्महत्या की थी।
दुनिया भर में केवल महिलाओं व बच्चों के साथ ही नहीं बल्कि पुरुषों के साथ भी बड़ी मात्रा में अत्याचार के मामले सामने आ रहे हैं। अगर भारत की बात करें तो लगभग 65 हजार से भी अधिक शादीशुदा युवक हर साल खुदकुशी कर लेते हैं। जिसका कारण उन पर दहेज,रेप,घरेलू हिंसा जैसे झूठे मुकदमे होते हैं। यह भी विडंबना है कि घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों पर समाज जल्दी विश्वास नहीं करता क्योंकि समाज की मानसिकता में स्त्री कमजोर और असहाय बताई जाती है। जिसके चलते स्त्री की बातों को पुरूष से पहले अहमियत दी जाती है। जिसका फायदा उठाकर कुछ औरतें, पुरुषों के खिलाफ झूठा मुकदमा दर्ज कराकर उनका मानसिक शोषण करती हैं।
समाज नहीं मानता पुरुषों पर होते हैं अत्याचार
बीते साल कोरोना वायरस के कारण देश में लॉकडाउन लग गया था, जिसके चलते सभी लोग अपने घरों में कैद हो गए थे, और घरेलू हिंसा के मामलों में तेजी से बढ़ौतरी हुई है। जिसमें महिलाओं के अलावा पुरुषों को भी घरेलू हिंसा का शिकार पाया गया है। जहां महिलाओं की शिकायतों को सुनने के लिए तमाम महिला आयोग और संस्थायें मौजूद हैं लेकिन पुरुषों में इस बात का मलाल रहता है कि उनकी इन शिकायतों पर समाज यकीन नहीं करेगा और उनका मजाक उड़ाएगा। हालांकि घरेलू हिंसा के शिकार पुरुषों के लिए आज के समय में ‘सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन’ जैसी तमाम संस्थाएं आवाज उठा रही हैं।
महिलाओं से ज्यादा पुरूष करते हैं आत्महत्या
अक्सर लोगों को एक मानसिकता के साथ सोचते हुए देखा जाता है कि पुरुष तो ताकतवर होते हैं, इसलिए शोषण जैसे शब्द उनके लिए नहीं बने हैं और ना ही उनके साथ कोई क्रूरता का व्यवहार कर सकता है। लेकिन एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में साल 2015 में लगभग 1,33,623 लोगों ने आत्महत्या की थी। जिसमें 91,528 यानी 68% पुरुष और बाकी 42,088 महिलाएं थी। उन 91,528 पुरुषों में से 24,043 ऐसे पुरुष थे, जिन्होंने पारिवारिक मामलों से तंग आकर आत्महत्या की थी। जबकि 67,485 पुरुषों ने मानसिक शोषण और फर्जी पुलिस केस से परेशान होकर आत्महत्या के कदम उठाये थे। पुरुषों द्वारा इतनी बड़ी संख्या में आत्महत्याएं करने के बावजूद इन मसलों पर सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है।
पैसों के लालच में महिलाएं कर रही धारा 498-ए का दुरुपयोग
महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के लिए सरकार ने दहेज कानून यानी धारा 498-ए बनाया था। लेकिन समय के साथ इस कानून का दुरुपयोग कुछ महिलाएं, पुरुषों को प्रताड़ित करने में कर रही हैं और पुरुषों को झूठे केसों में फंसाकर पैसे वसूलने का काम करती हैं। हाल ही में गुरुग्राम की 20 वर्षीय आयुषी भाटिया ने पैसों के लालच में 7 लड़कों पर रेप का इल्जाम लगाते हुए सात अलग-अलग पुलिस स्टेशनों पर FIR दर्ज कराई थी। जो पुलिस द्वारा जांच करने पर झूठे पाए गए और आयुषी भाटिया को गिरफ्तार कर लिया गया था।
वहीं कुछ दिनों पहले मेरठ की एक महिला ने सरकारी अस्पताल से फर्जी मैडिकल सर्टिफिकेट बनवाकर अपने पति के खिलाफ थाने में मुकदमा दर्ज करवाया था। जिसके बाद पुलिस ने महिला की बातों में आकर उसके पति को गिरफ्तार कर लिया था। बाद में इस मामले की जांच में सामने आया कि महिला के किसी गैरमर्द से नाजायज संबंध थे और उसका पति उसे मना करता था। अपने पति को रास्ते से हटाने के लिए महिला ने यह योजना बनाई थी।
सुप्रीम कोर्ट में वकील दिलीप कुमार दुबे का कहना है कि, “अमेरिका के जिस कानून से प्रेरित होकर भारत में यह कानून बनाया गया, वह अमेरिकी कानून जेंडर निरपेक्ष है और उसमें पुरुषों की प्रताड़ना के मामले भी देखे जाते हैं। लेकिन हमारे यहां भारत में इन कानून को एकतरफा देखा जाता है। जबकि दहेज प्रताड़ना से संबंधित ज्यादातर मामले खुद अदालत की सुनवाई में गलत पाए गए हैं।“ लेकिन कानून का एकतरफा रवैया और समाज में बदनामी के डर की वजह से पुरुष घरेलू अत्याचारों के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते। जिनमें से कई पुरुष तो सुसाइड करने को मजबूर हो जाते हैं।
घरेलू हिंसा और दुष्कर्म के मामले में आधे से ज्यादा केस फर्जी मिलें
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के आधार पर पत्रकार जागृति शुक्ला बताती हैं कि कुछ लड़कियों और महिलाओं ने 22 ऐसे केस दर्ज करवाए थे। जिनमें उन्होंने बताया कि उनका अपहरण किया गया और अपराधियों ने उनके साथ दुष्कर्म किया था। लेकिन जांच में ऐसे 22 मामले फर्जी पाए गए, जिसमें ना तो उनका अपहरण हुआ और ना ही दुष्कर्म हुआ था। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 में धारा 498-ए के मामलों में 1,97,762 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इन मामलों की जांच होने पर केवल 15% आरोपी दोषी पाए गए। वहीं बलात्कार से संबंधित धारा 376 के अन्तर्गत महिला द्वारा बलात्कार का आरोप लगाने से ही आरोपी की गिरफ्तारी हो जाती है। अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 के बीच दिल्ली में बलात्कार के लगभग 2,753 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 1,464 मामले झूठे साबित हुए हैं।
राष्ट्रीय पुरूष आयोग बनाने की मांग
साल 2018 में उत्तर प्रदेश के घोसी और हरदोई के लोकसभा सदस्य हरिनारायण राजभर और अंशुल वर्मा ने मांग उठाई कि राष्ट्रीय महिला आयोग की तरह राष्ट्रीय पुरुष आयोग भी बने और उन्होंने प्रधानमंत्री को इस विषय पर पत्र लिखा था। इन्हीं में से एक सांसद का दावा है कि देश भर में ऐसे कई पुरुष जेलों में कैद हैं, जो पत्नी और ससुराल वालों से प्रताड़ित हैं। वहीं दोनों सांसदों का कहना है कि उन्होंने संसद में भी इस मुद्दे को उठाया था। महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए कानून और राष्ट्रीय महिला आयोग उपलब्ध हैं लेकिन पुरुषों की समस्याओं पर अब तक किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया है।
झूठा मुकदमा दर्ज कराने पर होने वाली सजा
यदि आप पर किसी ने झूठा कानूनी मुकदमा दर्ज कराकर आपको सामाजिक व मानसिक चोट पहुंचाने के अलावा जेल भिजवाने का काम किया है तो आपके बेगुनाह साबित होने पर उस व्यक्ति के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 182 या धारा 211 के तहत थाने में मुकदमा दर्ज करा सकते हैं। झूठा मुकदमा दर्ज कराने वाले व्यक्ति को अधिकतम सात साल की जेल व जुर्माने की सजा का प्रावधान है। इन सब के अलावा आपके ऊपर झूठी FIR करने वाले व्यक्ति के खिलाफ आप मानहानि का केस कर सकते हैं।