National Pink Day: आज मनाया जा रहा है पिंक डे, जानिए क्या है पिंक डे का इतिहास ?

National Pink Day: नेशनल पिंक डे ( जो कि पिंक शर्ट डे के नाम से भी जाना जाता है ) की शुरुआत 2007 मे कनाडा के नोवा स्कोटिआ से हुई।

June 24, 2022 - 01:03
June 24, 2022 - 01:04
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National Pink Day: आज मनाया जा रहा है पिंक डे, जानिए क्या है पिंक डे का इतिहास ?
National Pink Day

National Pink Day: किसी को तंग करना, डराना या परेशान करना आज के समाज की बड़ी समस्या है। इससे उबरने के लिए या इसे समाज से ख़त्म करने के लिए, प्रत्येक वर्ष के 23 जून को अमेरिका नेशनल पिंक डे के रूप में मनाता है। पिंक यानि गुलाबी इसलिए क्योंकि इस रंग में छिपे सौहार्दता, आत्मीयता, प्रेम और भावनात्मकता को प्रदर्शन करने वाली एक ऊर्जा है। इस रंग को लोगों ने सिर्फ स्त्री या शिशु उन्मुखी के नज़रिये से ही देखने के चलते इसकी विशेषता को नज़रअंदाज करते आएं हैं। इसकी विशेषता में कई लक्षण निहित हैं, जो कि स्वयं में किसी के ह्रदय को सुकून से भर देता है और लोगों में वर्षो से चले आ रहे अवधारणा को बदलता है। 

पिंक डे का इतिहास 

नेशनल पिंक डे ( जो कि पिंक शर्ट डे के नाम से भी जाना जाता है ) की शुरुआत 2007 मे कनाडा के नोवा स्कोटिआ से हुई। इसे मनाने के  पीछे एक कहानी का जिक्र होता है, सेंट्रल किंग्स रूरल हाई स्कूल के दो छात्रों ने जब अपने सहपाठी छात्र को स्कूल के पहले दिन पिंक ड्रेस पहन के आने पर दूसरे अन्य छात्रों से परेशान होते देखा तब उन्होंने फैसला किया कि वो इसका विरोध करेंगे। इसके लिए उन्होंने स्टोर से ढेर सारे पिंक ड्रेस लिए और सभी को इसे अगले दिन पहन के आने को कहा। इस तरह से इस रंग के प्रति जागरूकता के साथ साथ लोगों मे इसके गलत धारणे को मिटाने का काम भी किया। 

तथ्य 

गुलाबी रंग के अलग-अलग शेड्स का मानव के दिमाग पर अलग-अलग असर होता है। उदाहरण के लिए, हल्के पिंक को शांत और आरामदायक माना जाता है, जबकि ब्राइट पिंक का प्रयोग पेस्ट्री व्यंजनों के स्वाद को बेहतर बनाने और अधिक स्वादिष्ट बनाने के लिए किया जाता है।

चीन बहुत दिनों तक पिंक (गुलाबी) रंग  से वाकिफ नहीं था। वहां के लोग इस रंग से अनजान और अनभिज्ञ थे। जब चीन ने अपने संबंध पश्चिमी देशों से स्थापित किये तब जाकर वहां के लोग इस रंग को जान पाए और इससे जुड़ पाए। आज भी चीन में गुलाबी रंग के अर्थ को एक विदेशी रंग का प्रतीक समझा जाता है। 

द्वितीय विश्व युद्ध के समय नाज़ियों ने समलैंगिकों के समुदाय को गुलाबी त्रिकोण पहनने  पर भी मजबूर किया था, जिसके चलते इस रंग के प्रति लोगों मे एक गलत धारणा की उपज हुई और यह रंग एक कलंक के रूप मे समाज में घूमता रहा। इस रंग के छीटें शेक्सपियर की रचनाओं से लेकर लाखों कैंसर से पीड़ित जनसमूहों को सुकून पहुंचने वालों तक में देखने को मिलते हैं। इस रंग की ताकत प्रेम के आकर्षण बिंदुओं के इर्द गिर्द देखने को मिलेगी और आज समाज इसके हरेक पहलु पर विचार और इसके मायने को स्थापित करने के लिए अथक प्रयास भी कर रहा है।

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