अफगानिस्तान में मीडिया जगत पर छाया संकट, मजदूरी करके पेट पाल रहे पत्रकार
जर्नलिस्ट फाउंडेशन ऑफ अफगानिस्तान की रिपोर्ट के अनुसार अफगानिस्तान में पत्रकार सबसे खराब आर्थिक स्थिति से गुजर रहे हैं। तालिबान की सत्ता के बाद 80 फ़ीसदी मीडिया संस्थानों को बंद कर दिया गया है, जिसके बाद बेरोजगार पत्रकार घर चलाने के लिए मजदूरी करने को मजबूर हैं।
तालिबान अगस्त 2020 में अफगानिस्तान की सत्ता वह सपना अधिग्रहण स्थापित कर चुका है। सरकार बनाने के बाद तालिबान ने सूचना के आदान-प्रदान के सारे माध्यमों को भी बाधित करना शुरु कर दिया था। तब से अफगानिस्तान में पत्रकारिता जगत से जुड़े लोगों को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हैं।
रिपोर्टर विदाउट बॉडर्स ने क्या कहा है?
( बता दें रिपोर्टर्स विदाउट बॉडर्स एक अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी और गैर-सरकारी संगठन है, जिसका उद्देश्य सूचना की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करना है। )
रिपोर्टर विदाउट बॉडर्स के अनुसार अफगानिस्तान में मीडिया, संकट की स्थिति में है। रिर्पोट के मुताबिक जब से तालिबान ने अफगानिस्तान पर अपना अधिग्रहण स्थापित किया है, उस समय से 40 फ़ीसदी मीडिया संस्थान बंद हो चुके हैं। इतनी बड़ी संख्या में संस्थानों के बंद हो जाने के बाद लगभग 6400 पत्रकार बेरोजगार हो गए हैं और मजदूरी के सहारे जीवन गुजारने को मजबूर हैं।
अफगानिस्तान में मीडिया के हालात पर रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अफगानिस्तान और ईरान के डेस्क हेड रेजी मोहिनी का कहना है कि ‘बिना आजाद मीडिया के तालिबान कुशासन में अफीम के धंधे व भ्रष्टाचार की खबरों को बाहर लाना मुश्किल हो गया है।
अफगानिस्तान में मीडिया संस्थानों के बंद होने की मुख्य वजह क्या हैं ?
तालिबान शुरू से ही औरतों के बोलने व आजादी के खिलाफ रहा है तथा रिपोर्टर्स विदाउट बॉडर्स की रिपोर्ट के अनुसार 80 फ़ीसदी महिलाओं को मीडिया संस्थानों से निकाल दिया गया है। बता दें कि हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि अफगानिस्तान के 36 प्रांतों में से 15 प्रांतों में एक भी महिला पत्रकार नहीं बची है। अफगानिस्तान में मीडिया संस्थानों के बंद होने की मुख्य वजह यह भी है कि तालिबान की सरकार अपनी आलोचना करने वाले मीडिया संस्थानों को नहीं चलने दे रही है।
अफगानिस्तान में मीडिया संस्थानों के बंद होने पर तालिबान सरकार का पक्ष
तालिबान सरकार में विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकी ने तालिबान मीडिया का गला घोटने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ‘हमने मीडिया पर कोई पाबंदी नहीं लगाई है, आज भी मीडिया आजाद और जिंदा है। जो मीडिया संस्थान बंद हो रहे हैं, उनको तालिबान नहीं बंद करवा रहा बल्कि फंडिंग की कमी की वजह से बंद हो रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय दबाव में तालिबान मीडिया की आजादी को रोकने की बात को नकार रहा है लेकिन हकीकत यही है कि तालिबान के आने के बाद अफगानिस्तान में मीडिया और पत्रकारों पर हमला लगातार जारी हैं।
उत्तर कोरिया में भी ऐसे ही हैं पत्रकारों के हालात
उत्तर कोरिया में मीडिया सबसे सख्त सरकारी नियंत्रण में है। उत्तर कोरिया में मुख्य स्थानीय मीडिया आउटलेट कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी है। यहां उच्च स्तर की सुरक्षा और गोपनीयता है , बता दें कि यहां बाहरी दुनिया के साथ आंतरिक संचार भी सीमित है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने उत्तर कोरिया को दुनिया के सबसे बंद देश के रूप में बताया है, वहीं उत्तर कोरिया को प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में अंतिम स्थान दिया गया है।
यहां के तानाशाह किंग जोन ने विदेशी पत्रकारों और विदेशी मूल के निवासियों पर भी कड़े प्रतिबंध लगाए हैं। यहां सरकार द्वारा स्थानीय लोगों के साथ बातचीत की निगरानी की जाती है और फोटोग्राफी को नियंत्रित किया जाता है। जिसके कारण पत्रकारों को जांच करने और कठिन तथ्यों को स्थापित करने में मुश्किल होती है। बता दें कि कई पत्रकारों ने कभी उत्तर कोरिया का दौरा नहीं किया है। पत्रकारों की इस स्थिति के पीछे की मुख्य वज़ह कोरिया में पत्रकारों के लिए अभिव्यक्ति की आजादी का नहीं होना है।