भोपाल में भी दिखी यूरोपियन गिद्ध ग्रिफांन की प्रजाति, भारत में प्रवासी पक्षियों का बढ़ा आवागमन
भोज वेटलैंड विंटर बोर्ड 2021 के मुताबिक नेशनल पार्क के अलावा कई क्षेत्रों में पक्षियों की गणना की जा रही है। जो अब तक की तीसरी गणना है।
यूरोपियन गिध्द ‘ग्रिफान’ की प्रजाति राजस्थान के बाद अब भोपाल में भी देखी गई है। राजस्थान के बाद भोपाल दुसरी ऐसी जगह है, जहां के वातावरण ने विदेशी मेहमानों को आकर्षित किया है। भारत में अक्सर सर्दियों के समय हिमालयन ग्रिफान दिखाई देते हैं किंतु इस बार यूरेशियन ग्रिफान ने भी भारत में दस्तक दी है। इन्हें राजस्थान और भोपाल में देखा गया है। इस प्रजाति के चार गिद्ध पार्क के परिसर के अंदर पाए गए हैं, जिनकी पहचान पक्षी विशेषज्ञों द्वारा की गई है। उनका कहना है कि ये पक्षी पहली बार यहाँ देखे गए हैं , इन्हे यहाँ देखा जाना आश्चर्य का विषय है। वन विहार राष्ट्रीय उद्यान समेत अन्य चार हिस्सों में रविवार को भोपाल बर्ड्स (पक्षियों के संरक्षण का काम करने वाली संस्था) के नेतृत्व में विदेशी पक्षियों की गणना भी की गई। यह गणना फरवरी तक अलग-अलग तारीखों में की जाएगी। इस गणना में महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ प्रदेश के छतरपुर, इंदौर, जबलपुर और भोपाल के 100 से अधिक विशेषज्ञों समेत डिप्टी डायरेक्टरेट अशोक कुमार जैन तथा अन्य अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया।
बता दें कि ग्रिफ़ॉन (GRIFFON)” प्रजाती के गिद्धो का नाम ग्रीक भाषा के शब्द “GRYPHOS” से लिया गया है। जिसका अर्थ होता है “हुक जैसी नाक वाला प्राणी” और यह मुख्य रूप से गिद्धों कि हुक के आकार वाली चोंच की वज़ह से लिया गया है। यूरोपियन गिद्ध ग्रिफांन की प्रजाति मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका और यूरोप, पुर्तगाल और स्पेन में पाई जाती हैं। इनके मार्ग की जानकारी कभी स्पष्ट नहीं होती है क्योंकि रेडियो टैगिंग कर इनके प्रवास मार्ग का अध्ययन नहीं किया गया है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि यह भोपाल में किस मार्ग से या कहाँ से आए हैं। किन्तु कई पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि यूरेशियन ग्रिफ़ॉन कज़ाकिस्तान, अफगानिस्तान और बलुचिस्तान से आते हैं अर्थात इनका प्रवास मार्ग मध्य-पूर्व से दक्षिणी एशिया की ओर भी है।
गणना में हुई कुछ और प्रवासी पक्षियों की पहचान
इस गणना के दौरान ग्रीफान के अलावा कुछ अन्य पक्षी भी देखे गए हैं जिनमें; रेड क्रेस्टेड पोचार्ड , नार्दन शोवलर , कामन टील , ब्लैक हेडेड वंटिंग , रेड हेडेड वंटिंग , ब्रह्मिनी शेल्डक , ब्लू थ्रोट , लैसर वाइट थ्रोट , ग्रीन सैंडपाझर , पेंटेड स्टोर्क , ब्राउन हेडेड गल्ल , ब्लैक हेडेड गल्ल , पर्पल हेरान , लार्ज कोमॅरेंट , साइवेरियन स्टोन चैट , विल डक , लैसर व्हिसलिंग डक , ब्लैक कामन चिफचैफ , यूरेशियन कूट , स्पाट हेडेड आइविस , ग्लासी आइविस , रेड स्टार्ट , ब्लैक विटर्न , स्टेपी ईगल आदि प्रमुख हैं।
पारिस्थितिक तंत्र के लिए फायदेमंद है ग्रीफान
भोज वेटलैंड विंटर बोर्ड 2021 के मुताबिक नेशनल पार्क के अलावा कई क्षेत्रों में इस तरह पक्षियों की गणना की जा रही है। जो अब तक की तीसरी गणना है। बता दें कि गिद्ध पारिस्थितिक तंत्र के लिए काफ़ी फायदेमंद हैं। जिसके पीछे की वज़ह यह है कि गिद्ध मृत जानवरों को खाकर हमारे पर्यावरण को साफ़-सुथरा रखते हैं तथा साथ ही पारिस्थितिक तंत्र में भोज्य श्रृंखला को भी बनाये रखने में सहायता करते हैं।
IUCN की लिस्ट में गिद्धों की स्थिति
पहले भारत में गिद्धों की संख्या अच्छी थी, किंतु इनके बढ़ते शिकार और प्रदूषण के कारण इनकी संख्या में बेहद कमी दिखाई दी गई है। आजकल भारत में पाए जाने वाले हिमालयन ग्रिफिन की संख्या बहुत ही ज्यादा कम हो चुकी है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की रेड लिस्ट में हिमालयन ग्रिफिन गिद्ध को “संकटापन्न” (Near Threatened या NT) के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। किंतु युरेशियन ग्रिफान पर कोई असर कोई खास असर नहीं देखा गया है।
भारत मे गिद्धो के संरक्षण के लिए किए गए प्रयास
हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने देश में गिद्धों के संरक्षण के लिये एक ‘गिद्ध कार्ययोजना 2020-25’ (Vulture Action Plan 2020-25) शुरू की है। यह प्रयास डिक्लोफेनाक के न्यूनतम उपयोग को सुनिश्चित करेगा तथा गिद्धों हेतु मवेशियों के शवों के प्रमुख भोजन की विषाक्तता को रोकेगा। ‘गिद्ध सुरक्षित क्षेत्र कार्यक्रम’ को देश के उन आठ अलग-अलग स्थानों पर लागू किया जा रहा है जहाँ गिद्धों की आबादी विद्यमान है। इनमें से दो स्थान उत्तर प्रदेश में हैं। उत्तर भारत में पिंजौर (हरियाणा), मध्य भारत में भोपाल, पूर्वोत्तर में गुवाहाटी और दक्षिण भारत में हैदराबाद जैसे विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये चार बचाव केंद्र प्रस्तावित किए गए हैं। वहीं भारत में गिद्धों की मौत के कारणों पर अध्ययन करने के लिए वर्ष 2001 में हरियाणा के पिंजौर में एक गिद्ध देखभाल केंद्र (Vulture Care Centre-VCC) स्थापित किया गया। जिसके कुछ समय बाद वर्ष 2004 में गिद्ध देखभाल केंद्र को उन्नत (Upgrade) करते हुए भारत के पहले ‘गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र’ (VCBC) की स्थापना की गई थी।
फ़िलहाल भारत में गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्रों की संख्या नौ हो गई है, जिनमें से तीन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (Bombay Natural History Society-BNHS) द्वारा चलाए जा रहे हैं।