बॉम्बे हाईकोर्ट के 'स्किन टू स्किन' फैसले पर SC ने किया आदेश सुरक्षित
बॉम्बे हाईकोर्ट के 'स्किन टू स्किन' फैसले पर सभी पक्षों की दलीलें सुन SC ने अपना आदेश सुरक्षित किया। बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बताया अपमानजनक।
कुछ महीने पहले बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले ने खूब सुर्खियां बटोरी थी। दरअसल, बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा था कि "एक नाबालिग के स्तन को 'त्वचा से त्वचा' के संपर्क के बिना छूना पॉक्सो के तहत यौन हमला नहीं कहा जा सकता है।"
अपने इस निर्णय के कारण अदालत को काफी किरकिरी झेलने पड़ी थी साथ ही इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं भी दर्ज की गई थी। परंतु अब सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित कर दिया है। तीन न्यायधीशों की पीठ ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अपना मत रखते हुए कहा कि "बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को निचली अदालतों के लिए मिसाल माना जायेगा तो परिणाम विनाशकारी होंगे। यह एक असाधारण स्तिथि को जन्म दे सकता है"।
बता दें, कार्यवाही के दौरान सुप्रीम कोर्ट को जानकारी मिली थी कि बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले में शामिल दोनों मामलों के दोषियों की अदालत में पेशी नहीं हुई है, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी को उनकी पैरवी करनी पड़ी। आरोपी के अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि "पॉक्सो अधिनियम 7 के तहत दोषसिद्धि के लिए स्पर्श की आवश्यकता होती है।" इस पर अदालत ने सवाल करते हुए अधिवक्ता से 'स्पर्श' का अर्थ स्पष्ट करने को कहा, साथ ही एटॉर्नी जनरल के.के वेणुगोपाल ने भी प्रश्न करते हुए पूछा कि "यदि ऐसा है तो अगर कोई व्यक्ति सर्जिकल दस्ताने पहनकर महिला को स्पर्श करने का प्रयास करता है तो इस फैसले के अनुसार उसे यौन उत्पीडन नहीं माना जायेगा"। यही नहीं उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के इस निर्णय को एक अपमानजनक मिसाल भी बताया।
आपकी जानकारी के लिए बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने 27 जनवरी को बॉम्बे हाईकोर्ट के इस फैसले के अंतर्गत दोषियों को बरी करने पर रोक लगा दी थी। वहीं अब न्यायमूर्ति गनेदिवाला की एकल बेंच ने इस आदेश का संशोधन करते हुए 39 वर्षीय व्यक्ति को एक 12 साल की मासूम से छेड़छाड़ के लिए दोषी ठहराया है।