लॉ कमीशन ने केंद्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा- देशद्रोह कानून ज़रूरी

कानून मंत्री ने रिपोर्ट का स्वागत किया है. वहीं देशद्रोह कानून को लेकर लॉ कमीशन की रिपोर्ट को वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने बेहद दुखद और विश्वासघाती बताया है.

June 3, 2023 - 15:40
July 12, 2023 - 12:39
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लॉ कमीशन ने केंद्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा- देशद्रोह कानून ज़रूरी

भारत के विधि आयोग(लॉ कमीशन) ने देशद्रोह कानून पर अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है.अब केंद्र सरकार को सौंपी रिपोर्ट में लॉ कमीशन ने कहा है कि भारत की जमीनी हकीकत को देखते हुए धारा 124A को ख़त्म नहीं किया जाना चाहिए. इसके साथ ही कमीशन ने कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए कुछ उपाय अपनाए जाने की सिफारिश की है.  इस रिपोर्ट में कहा गया कि IPC की धारा 124A जैसे प्रावधान की ग़ैरमौजूदगी में, सरकार के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने वाले किसी भी व्यक्ति पर निश्चित रूप से विशेष लॉ और आतंकवाद विरोधी लॉ के तहत मुकदमा चलाया जाएगा. जिसमें अभियुक्तों से निपटने के लिए कहीं अधिक कड़े प्रावधान हैं. इसमें यह भी सुझाव दिया गया है की न्यूनतम 3 साल की सजा को बढ़ा कर 7 साल किया जाए. साथ हीं 124A में दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास की सज़ा मिले. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इसमें कुछ ज़रूरी संशोधन की ज़रूरत है ताकि प्रावधान के उपयोग के संबंध में अधिक पारदर्शिता और स्पष्टता लाई जा सके और धारा 124A के ग़लत इस्तेमाल संबंधी विचार पर ध्यान देते हुए रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई कि केंद्र द्वारा हो रहे दुरुपयोगों पर रोक लगाते हुए आदर्श और उचित दिशानिर्देश जारी करने की ज़रूरत है. 
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे अपने कवरिंग लेटर में 22वें लॉ कमीशन के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस रितु राज अवस्थी ने कुछ सुझाव भी दिए हैं. इन सुझावों में कहा गया कि IPC की धारा 124A जैसे प्रावधान की गैरमौजूदगी में, सरकार के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने वाले किसी भी व्यक्ति पर निश्चित रूप से विशेष लॉ और आतंकवाद विरोधी लॉ के तहत मुकदमा चलाया जाएगा. जिसमें अभियुक्तों से निपटने के लिए कहीं अधिक कड़े प्रावधान हैं. इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि न्यूनतम 3 साल की सजा को बढ़ा कर 7 साल किया जाए. साथ हीं 124A में दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास की सज़ा मिले. 

कानून मंत्री का क्या कहना है?
देशद्रोह कानून पर विधि आयोग की रिपोर्ट को लेकर कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की प्रतिक्रिया भी सामने आई. उन्होंने 2 जून को ट्वीट कर कहा कि राजद्रोह पर विधि आयोग की रिपोर्ट व्यापक विचार के बाद आई है. रिपोर्ट में की गई सिफारिशें प्रेरक हैं और बाध्यकारी नहीं हैं. अंतत: सभी हितधारकों से विचार-विमर्श के बाद ही अंतिम फैसला लिया जाएगा. अब जबकि हमें रिपोर्ट मिल गई है, हम अन्य सभी हितधारकों के साथ भी विचार-विमर्श करेंगे ताकि हम जनहित में एक तर्कपूर्ण निर्णय ले सकें.

सुप्रीम कोर्ट में लंबित है मामला...
धारा 124A को 10 से ज्यादा याचिकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. इन याचिकाओं में इस कानून को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के ख़िलाफ़ बताया गया है. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि छोटे-छोटे मामलों में भी इस कानून के तहत मुकदमा दर्ज किया जा रहा है. देश भर की राज्य सरकारें अपने राजनीतिक विरोधियों के दमन के लिए इस कानून का इस्तेमाल कर रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट का आदेश...
पिछले साल 11 मई को सुप्रीम कोर्ट में तत्कालीन सीजेआई एन वी रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को सुनते हुए आईपीसी की धारा 124A को अंतरिम तौर पर निष्प्रभावी बना दिया था. कोर्ट ने कहा था कि इस कानून के तहत नए मुकदमे दर्ज न हों और जो मुकदमे पहले से लंबित हैं, उनमें भी अदालती कार्यवाही रोक दी जाए. कोर्ट ने केंद्र सरकार को कानून की समीक्षा करने की अनुमति दी थी. साथ ही कहा था कि जब तक सरकार कानून की समीक्षा नहीं कर लेती, तब तक यह अंतरिम व्यवस्था लागू रहेगी.

कानून में क्या...
आईपीसी 124ए के अनुसार, कोई व्यक्ति अगर कानून द्वारा स्थापित सरकार के ख़िलाफ़ शब्दों को बोलकर, लिखकर, इशारे से, दिखने योग्य संकेत या किसी अन्य तरह से असंतोष भड़काता है या ऐसी कोशिश करता है या सरकार के ख़िलाफ़ लोगों में घृणा, अवज्ञा या उत्तेजना पैदा करता या ऐसा करने की कोशिश करता है, तो इसे देशद्रोह मान कर हुए उसे तीन वर्ष कारावास से लेकर उम्रकैद तक और जुर्माने की सजा दी जा सकती है. 

मानसून सत्र में बिल लाया जा सकता है...
एक मई को केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि संसद के मानसून सत्र में बिल लाया जा सकता है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट अगस्त के दूसरे हफ़्ते में सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि क्या राजद्रोह पर 1962 के पांच जजों के फ़ैसले की समीक्षा के लिए सात जजों के संविधान पीठ भेजा जाए या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि इस मामले में उसका क्या रुख है?

Harish Sahu छत्तीसगढ़ का निवासी हूँ. फ़िलहाल जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा हूँ. लिखने की कोशिश में लगा हुआ हूँ.