देश के कैदी चुनाव में हिस्सा ले सकते हैं लेकिन वोट क्यों नहीं दे सकते? मतदान के अधिकारों पर हुई बहस
भारत देश में जेल में रहने वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अधिकार है लेकिन वोट देने का अधिकार नहीं। देश भर में मतदान न मिलने के अधिकार को लेकर प्रश्न उठ रहे हैं।
भारत देश के कैदी यानी जेल में रहने वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अधिकार है लेकिन वोट देने का अधिकार नहीं है। देश भर में मतदान न मिलने के अधिकार को लेकर प्रश्न उठ रहे हैं। कुछ कानून के जानकारों ने इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 (1) (ए) का उल्लंघन बताया है। संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ग) में भारत के प्रत्येक नागरिक को संगम या संघ बनाने का मूल अधिकार प्रदान किया गया है। इसके अनुसार भारत का प्रत्येक नागरिक अपनी पसंद का संगम या संघ बनाने के लिए स्वतंत्र है।
देश में अनिर्णीत कैदियों की संख्या चार लाख से भी ऊपर हैं, जिन्हे मतदान देने का कोई अधिकार नहीं हैं। ऐसे अनिर्णीत कैदी सालों से जेल में कोट की सुनवाई का इंतजार करते हैं। जन प्रतिनिधित्व कानून,1951 की धारा (section) 62 (5) के अनुसार, न्यायिक आदेश से जेल में बंद या पुलिस कस्टडी में होने वाले व्यक्ति को वोट देने का अधिकार नहीं है। व्यक्ति तभी मतदान देने के लिए सक्षम हो सकता है जब उसे पूरी तरह से आरोपमुक्त किया गया हो।
चुनाव विश्लेषक और एडीआर के संस्थापक प्रो. जगदीप छोकर (Prof. Jagdeep Chhokar) ने कहा,धारा (section) 62 (5) संविधान से मिले अधिकार का यह उल्लंघन है। जब चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार को तब तक उसे दंडित नहीं किया जा सकता जब तक वह निर्दोष है। अतः ऐसे कानून अनिर्णीत कैदी पर लागू क्यों नहीं होते हैं? 2019 में दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने हाल ही में चुनाव आयोग से कहा कि मतदान का अधिकार कानूनी अधिकार है और कानून का उल्लंघन करने वाले कैदियों को चुनाव में वोट करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने भी इस बात को मानते हुए कोर्ट ने धारा (section) 62(5) को उचित ठहराया।
चुनाव आयोग ने हाल ही में अप्रवासी भारतीयों और सीनियर सिटीजन के लिए पोस्टल बैलट की व्यवस्था की है ऐसे में यह व्यवस्था कैदियों के लिए न होने की बात पर प्रश्न उठ रहे हैं अत: अब कोर्ट को भी इस बारे में पुनरविचार करते हुए पुरानी व्यवस्था को बदलना चाहिए।