पराली के धुएं की समस्या अब और नहीं, दिल्ली के भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्रों ने खोजा ईलाज
धान की फसल कटने के बाद बचा बाकी हिस्सा पराली होता है जिसकी जड़ें जमीन में होती हैं। किसान फसल पकने के बाद फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेता है, क्योंकि सिर्फ ऊपरी हिस्सा ही काम का होता है। बाकी अनुपयोगी अवशेषों को अगली फसल बोने से पहले खेत से बाहर करना आवश्यक होता है जिसके लिए सूखी पड़ी पराली को आग लगा दी जाती है।
दिल्ली स्थित बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय (बीबीएयू) के छात्रों ने पराली से थर्माकोल बनाने का एक नया तरीका विकसित किया है। यह थर्माकोल पूरी तरह से इको फ्रेंडली(पर्यावरण के ) होगा। इससे न केवल पराली की समस्या का समाधान होगा बल्कि पराली जलने से होने वाले वायु प्रदूषण से भी छुटकारा मिलेगा। बीबीएयू के तीन छात्रों के इस प्रोजेक्ट को आईआईटी कानपुर के स्टार्टअप, इनक्यूबेशन एंड इनोवेशन सेंटर (एसआईआईसी) फंडिंग करेगा।
क्या है पराली और क्यों है चर्चा में ?
धान की फसल कटने के बाद बचा बाकी हिस्सा पराली होता है जिसकी जड़ें जमीन में होती हैं। किसान फसल पकने के बाद फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेता है, क्योंकि सिर्फ ऊपरी हिस्सा ही काम का होता है। बाकी अनुपयोगी अवशेषों को अगली फसल बोने से पहले खेत से बाहर करना आवश्यक होता है जिसके लिए सूखी पड़ी पराली को आग लगा दी जाती है। धान की फसल ज्यादा होने की वजह से किसान अपना समय बचाने के लिए आजकल मशीनों से धान की कटाई करवाते हैं। मशीनें धान का सिर्फ उपरी हिस्सा काटती हैं और शेष नीचे का हिस्सा पहले से ज्यादा बड़ा बचता है। इसी अवशेष को हरियाणा-पंजाब में पराली कहा जाता है। किसान अगर धान को मजदूरों से या स्वयं काटे तो खेतों में पराली नहीं के बराबर बचती है और बाद में किसान इस पराली को चारे के रूप में जानवरों को खिलाने में इस्तेमाल कर सकते हैं। लेकिन धान की फसल कटने के बाद किसान को खेतों में गेंहू की बुआई करनी होती है, जिस कारण उन्हें जल्दी खेत खाली करने होते हैं। इसी वजह से किसान खेतों में पड़ी पराली को आग लगा देते हैं। जिसके कारण हरियाणा और पंजाब के आसपास क्षेत्रों में प्रदूषण बहुत तेजी से फैल जाता है और इसका सबसे ज्यादा प्रभाव राजधानी दिल्ली में पड़ता है। इससे दिल्ली की एयर क्वालिटी बहुत घट जाती है और लोगों का सांस लेना दूभर हो जाता है।
क्या है पराली जलाने का नुकसान
बड़े पैमाने पर खेतों में पराली जलाने से उसके धुएं में कार्बन मोनो ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड गैस निकलती है जिसके कारण ओजोन परत को नुकसान पहुंच रहा है। इससे अल्ट्रावायलेट किरणें निकलती हैं, जो स्किन के लिए घातक सिद्ध हो सकती हैं। इसके धुएं से आंखों में जलन होती है। सांस लेने में दिक्कत होती है और फेफड़ों की बीमारियां भी हो सकती हैं।
इस संबंध में क्या है कोर्ट का आदेश ?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद किसान पराली जलाने में लगे हुए हैं और विकल्पों की मांग कर रहे हैं। भारतीय किसान यूनियन ने प्रशासन को खुले तौर पर चुनौती देते हुए पराली जलाकर मामले दर्ज करने की बात कही है तो दूसरी तरफ कृषि विभाग पराली जलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है। पराली जलाने वाले किसानों की सूचना देने के लिए प्रत्येक गांव में ड्यूटियां लगाई गई हैं। जिला जींद में अब तक 206 किसानों को नोटिस दिया जा चुका है। अब तक किसानों से 2,57,500 रुपये की वसूली की जा चुकी है तथा जुर्माना न भरने पर 57 किसानों की एफआईआर दर्ज करवाई जा चुकी है।
क्या है जुर्माने का प्रावधान
एनजीटी के आदेशानुसार दो एकड़ में फसलों के अवशेष जलाने पर 2500 रुपये, दो से पांच एकड़ भूमि तक 5 हजार रुपये, 5 एकड़ से अधिक जमीन पर धान के अवशेष जलाने पर 15 हजार रुपये जुर्माना का प्रावधान है। इसकी जिम्मेदारी सरकार ने जिला राजस्व अधिकारी को दी है। एनजीटी के अनुसार, यह जुर्माना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए लिया जा रहा है। ताकि किसान पराली जलाने से परहेज करें।
पराली जलाने का फसल की पैदावार पर पड़ता है खराब असर
खेतो में पराली जलाने से मिट्टी की उपरी सतह जल जाती है, जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। अगली फसल के लिए ज्यादा पानी, खाद, कीटनाशक तथा दवाइयों का इस्तेमाल करना पड़ता है। अगर किसान खेतों में पराली दबा देते हैं तो भूमि की उपजाऊ शक्ति कम नहीं होगी, यही पराली खाद का काम करेगी और जहरीली खाद नहीं डालनी पड़ेगी। ऐसी जमीन में बोई गई अगली फसल को भी कम पानी देना पड़ेगा।
पराली के निपटान पर वैज्ञानिकों का मत
इस मामले में पर्यावरणविद् एवं केएम कालेज में रसायन शास्त्र के प्रोफेसर जयपाल सिंह ने बताया कि पराली को ट्रैक्टर में छोटी मशीन (रपट) द्वारा काटकर खेत में उसी रपट द्वारा बिखेरा जा सकता है। इससे आगामी फसल को प्राकृतिक खाद मिल जाएगी और प्राकृतिक जीवाणु व लाभकारी कीट जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए पराली के अवशेषों में ही पल जाएंगे। पराली को मशीनों से उखाड़कर एक जगह 2-2 फ़ीट का खड्डा खोदकर उसमें जमा कर सकते हैं। उसकी एक फुट की तह बनाकर उस पर पानी में घुले हुए गुड़, चीनी, यूरिया, गाय-भैंस का गोबर इत्यादि का घोल छिड़क दें और थोड़ी मिट्टी डालकर हर 1-2 फुट पर इसे दोहरा दें तो एनारोबिक बैक्टीरिया पराली को गलाने में सहायक हो जाएं, अगर केंचुए भी खड्ड में छोड़ सकें तो और भी अच्छा है। आखिरी तह को मिट्टी के घोल में तर पॉलिथीन से ढक देना चाहिए। इतना ही नहीं पराली का प्रयोग चारा और गत्ता बनाने के अलावा बिजली बनाने के लिए भी हो सकता है। गैसीफायर द्वारा गैस बनाकर ईंधन के रूप में मिथेन गैस मिल सकती है।
पराली के निपटान पर सरकार का मत
राजधानी दिल्ली में स्मॉग की समस्या के लिए सरकार ने हरियाणा एवं पंजाब में धान की फसल की कटाई के बाद जलाई जाने वाली पराली को जिम्मेवार माना गया है। इस पर जमकर सियासत भी हो रही है और किसान इसे मजबूरी बता रहे हैं, उधर सरकार का रुख कड़ा होता जा रहा है।
किसान चाहते हैं मदद करे सरकार
किसानों का कहना है कि हम मजबूरी में खेतो में पराली जला रहे हैं। सरकार बताए कि किसान पराली को कहां लेकर जाएं। दूसरी फसल के लिए खेत को खाली करना बहुत जरूरी है वरना गेंहू की बुआई नहीं कर पाएंगे। और अगर ऐसा हुआ तो उनके परिवारों को भूखे मरने की नौबत आ जाएगी। पराली को जमीन में दबाने वाली विदेशी मशीन भी है मगर ये मशीन आम किसान के लिए लेना बहुत मुश्किल है। हम सरकार से यह कहना चाहते है कि इसका समाधान निकाले और हमारी मदद करे।