डॉक्टरों की आवाज़ नहीं सुन रही सरकार, हड़ताल करने को मजबूर हैं डॉक्टर

राम मनोहर लोहिया अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज एवं संबंधित अस्पतालों जैसे सुचेता कृपलानी और कलावती सरन में डॉक्टरों ने हाथों में बैनर पोस्टर लेकर नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया।

December 18, 2021 - 21:56
December 29, 2021 - 16:51
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डॉक्टरों की आवाज़ नहीं सुन रही सरकार, हड़ताल करने को मजबूर हैं डॉक्टर
(फोटो: सोशल मीडिया)

दिल्ली के हिंदू राव हॉस्पिटल में एक बार फिर से रेजीडेंट डॉक्टर हड़ताल पर हैं, लगभग 3 महीने से सैलरी और DA ना मिलने के कारण इन डॉक्टरों की  हड़ताल जारी है। पिछले साल भी डॉक्टरों ने इसी मुद्दे पर हड़ताल की थी, और सरकार की तरफ से आगे से ऐसा नहीं होने का आश्वासन दिया गया था। जिसके बाद डॉक्टरों द्वारा हड़ताल खत्म कर दी गई थी। हाल ही में एक बार फिर वैसे ही हालत पैदा हो गए हैं।

बता दें कि डॉक्टरों की यह पहली हड़ताल नहीं है। पिछले कुछ  सालों से डॉक्टरों की स्थिति बहुत बिगड़ी है जिसके कारण उनको आंदोलन करना पड़ रहा है। वेतन और DA लंबे समय से बंद होने के कारण उनका जीवन बद्तर हो गया है। वहीं एक बड़ा सवाल यह भी है कि डॉक्टरों का वेतन बंद पड़ा होने की स्थिति में वे बैंको का लोन कैसे अदा करेंगे और अपना जीवनयापन कैसे करें?

दिल्ली में रेजीडेंट डॉक्टरों की हड़ताल के तीसरे दिन भी स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित रही। जबकि, रविवार को भी मरीज अस्पताल पहुंचे। वरिष्ठ डाक्टरों ने कुछ गंभीर मरीजों का इलाज किया, जबकि बाकी मरीजों को वापस लौटा दिया गया। इससे मरीजों को खासी दिक्कतें हुई। हड़ताल के दौरान राम मनोहर लोहिया अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज एवं संबंधित अस्पतालों जैसे सुचेता कृपलानी और कलावती सरन में डॉक्टरों ने हाथों में बैनर पोस्टर लेकर नारेबाजी करते हुए प्रदर्शन किया। इस दौरान डॉक्टरों ने सरकार से जल्द से जल्द neet-pg की काउंसलिंग शुरू कराने की मांग की है।

आरएमएल के डॉक्टर अनुज ने बताया कि पिछले सोमवार को मैंने 36 घंटे बिना आराम किए काम किया था। अस्पताल में अभी डॉक्टरों के दो बैच हैं, दो बैच के डॉक्टरों को तीन बैच का काम करना पड़ रहा है। जब तक काउंसलिंग शुरू नहीं होगी। तब तक अस्पतालों में रेजिडेंट डॉक्टरों के ऊपर से काम का बोझ कम नहीं होगा। काउंसलिंग शुरू होने से डॉक्टरों की संख्या बढ़ेगी तो अधिक मरीजों को देखना थोड़ा आसान हो जाएगा। बता दें कि अभी हाल फिलहाल में केंद्र सरकार की ओर से आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टरों को 58 तरीके की सर्जरी करने की अनुमति दिए जाने की वज़ह से भी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लगातार अपना विरोध जता रहा है।

कुछ दिन पहले स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में जूनियर डॉक्टरों की हड़ताल रविवार को भी जारी रही। इस दौरान जूनियर डॉक्टरों ने सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक अपना विरोध प्रदर्शन किया। जूनियर डॉक्टरों ने बताया कि उनका ओपीडी, आइपीडी और इलेक्टिव कार्यों का बहिष्कार मांगे पूरी होने तक जारी रहेगा। इमरजेंसी सेवाएं पहले की तरह ही संचालित होेती रहेंगी। दिल्ली में कुछ संस्थानों के जूनियर डॉक्टरों ने इमरजेंसी का विरोध करने का भी निर्णय लिया है। लेकिन एसआरएन में जूनियर डॉक्टर ऐसा नहीं करेंगे।

डॉक्टरों पर होने वाले हमले भी कर रहे हैं ईलाज को प्रभावित

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन(IMA) के एक सर्वेक्षण के अनुसार, डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा की बढ़ती रिपोर्टों के कारण, डॉक्टरों के लिए तनाव का मुख्य स्रोत हिंसा का डर था, उसके बाद मुकदमा चलाने का डर था। सर्वेक्षण का जवाब देने वाले 62% डॉक्टरों ने बताया कि वे हिंसा के डर के कारण अपने रोगियों को देखने में असमर्थ थे, और 57% ने अपने कार्यस्थल पर सुरक्षा कर्मचारियों को काम पर रखने पर भी विचार किया था।

द लोकदूत  द्वारा किए गए सर्वे में लोगों ने माना कि डॉक्टरों के बहुत सारे मुद्दे हैं जो दबे के दबे रह जाते हैं और सरकार उन पर कोई ध्यान नहीं देती। कुछ लोगों ने कहा कि कोरोना के समय पीपीपी किट के लिए भी डॉक्टरों को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी, कुछ को तो यह पीपीपी किट उपलब्ध भी नहीं हो पाया। बावजूद इसके वे अपनी जान पर खेलकर कोरोनावायरस मरीजों का इलाज करते रहे थे। वहीं कुछ लोगों ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि भगवान का दूसरा रूप कहे जाने वाले डॉक्टरों की यह स्थिति देश और समाज के लिए बड़ी चिंता का विषय है। जिसके लिए सरकार को इनके लिए विशेष रुप से ध्यान देने की जरूरत है।

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