विश्वकर्मा पूजा: जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व

भगवान विश्वकर्मा को शिल्प शास्त्रों का प्रणेता जाता है विश्वकर्मा जो ऋषि रूप में शिल्प निर्माण वास्तु कला आदि ज्ञान का भंडार हैं। विश्वकर्मा जो सभी शिल्पियों के आचार्य हैं, उनके लिए पूजनीय हैं। इसलिए श्रमिक समुदाय के लिए इस दिन का विशेष महत्व है, इस दिन विशेष तौर पर श्रमिक समुदायों द्वारा उनके कारखानों व औद्योगिक स्थानों पर भगवान विश्वकर्मा की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है।

September 16, 2021 - 19:09
December 10, 2021 - 08:44
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विश्वकर्मा पूजा: जानिए शुभ मुहूर्त और महत्व
vishwakarma

भगवान विश्वकर्मा देवताओं के वह अभियंता जिन्होंने देवताओं के लिए अस्त्र-शस्त्र से लेकर उनके लिए विशाल व समृद्ध राजधानियों तक का निर्माण किया। विश्वकर्मा जिन्होंने भगवान शिव के लिए बनाई लंका, इंद्र के लिए स्वर्ग लोक का निर्माण किया, भगवान कृष्ण को प्रदान की सुंदर द्वारिका ऐसी कई वास्तु संपन्न राजधानियों के निर्माता है भगवान विश्वकर्मा। भगवान विश्वकर्मा जो रचयिता हैं शस्त्र विज्ञान के जिन्होंने भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र बनाया, शिव के लिए त्रिशूल तो इंद्र के लिए महर्षि दधीचि की हड्डियों से निर्माण किया वज्रास्त्र का।


धर्मशास्त्रों के अनुसार:

कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी के धर्म हुए धर्म की वस्तु नामक पत्नी से धर्म के सातवें पुत्र के रूप में वास्तु हुए जिन्हें शिल्प कला में महारत हासिल थी उन्हीं वास्तु के यहां विश्वकर्मा उत्पन्न हुए। जिन्हें आगे चलकर देवताओं का अभियंता या यूं कहें तो देव शिल्पी कहा गया।

विश्वकर्मा द्वारा किए गए निर्माण:

कहा जाता है कि भगवान विश्वकर्मा ने ही देवताओं के रहने के लिए उनके निवास स्थान का निर्माण किया जिनमें सात पुरियां विशेष हैं, इंद्रपुरी,यमपुरी,वरुणपुरी,कुबेरपुरी,पांडवपुरी,सुदामापुरी,शिवमंडल पुरी आदि। भगवान विश्वकर्मा देव शिल्पी के अलावा उनके अस्त्र शस्त्र निर्माता भी थे उन्होंने ही भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र भगवान शिव के लिए त्रिशूल मृत्यु के देवता यमराज के लिए काल दंड देवराज इंद्र के लिए वज्रास्त्र तथा सूर्यपुत्र कर्ण के लिए कवच और कुंडल का निर्माण आदि किया था।

विश्वकर्मा पूजा का महत्व:

भगवान विश्वकर्मा को शिल्प शास्त्रों का प्रणेता जाता है विश्वकर्मा जो ऋषि रूप में शिल्प निर्माण वास्तु कला आदि ज्ञान का भंडार हैं। विश्वकर्मा जो सभी शिल्पियों के आचार्य हैं, उनके लिए पूजनीय हैं। इसलिए श्रमिक समुदाय के लिए इस दिन का विशेष महत्व है, इस दिन विशेष तौर पर श्रमिक समुदायों द्वारा उनके कारखानों व औद्योगिक स्थानों पर भगवान विश्वकर्मा की विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है।

कन्या संक्रांति:

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज ही के दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था। विक्रम संवत के अनुसार जिस दिन सूर्य देव सिंह राशि से कन्या राशि में प्रवेश करते हैं वह कन्या संक्रांति कहलाती है। झारखंड, उड़ीसा, त्रिपुरा, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल तथा बिहार में विश्वकर्मा पूजा ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष 17 सितंबर को मनाई जाती है।

 
विश्वकर्मा पूजा के लिए शुभ मुहूर्त:

ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस वर्ष विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को की जाएगी। तथा पूजा के लिए शुभ मुहूर्त 17 सितंबर शुक्रवार के दिन सुबह 6:07 बजे से 18 सितंबर शनिवार को 3:36 तक रहेगा।


निशीथ काल:

राहु काल में किसी भी तरह की पूजा अर्चना को निषेध बताया गया है। इस समय के लिए पूजा शुभ फलदाई नहीं होती। 17 सितंबर को सुबह 10:30 बजे से लेकर 12:00 बजे तक राहुकाल रहेगा।

विश्वकर्मा पूजा की विधि:

इस दिन विशेष तौर पर सूर्योदय से पहले उठना चाहिए।
नित्य क्रियाओं से निवृत्त हो पूजन सामग्री एकत्र करें।
विश्वकर्मा पूजन पति व पत्नी दोनों एक साथ करें।
पूजा के लिए हाथ में चावल ले भगवान विश्वकर्मा का ध्यान लगायें।
तथा भगवान विश्वकर्मा को सफेद फूल अर्पित करें।
इसके बाद धूप, दीप, पुष्प अर्पित करते हुए हवन कुंड में आहुति दें।
इस दौरान अपनी मशीनों और औजारों का भी पूजन करें।
फिर भगवान विश्वकर्मा को भोग लगाकर प्रसाद सभी में बांट दें।
विश्वकर्मा पूजा के उपरांत किसी भी तरह का काम जिनमें आप के औजारों का उपयोग हो इस दिन भूल से भी ना करें ऐसा करना भी अशुभ माना जाता है।

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