जब एक सरकारी आदेश से खामोश हुई कई मासूम जिंदगियां , जानिए क्या है डाला गोलीकांड और क्यों मनाया जाता हर साल शहीद दिवस
Dalla cement factory: दो जून को शहीद हुए फैक्ट्री के मजदूरों के बलिदान की याद में हर साल 2 जून को श्रद्धांजली सभा और शांति पाठ का आयोजन किया जाता है। 2 जून के काले दिन के प्रत्यक्षदर्शी ओम प्रकाश तिवारी बताते हैं कि ,”जब मजूदरों ने इस आंदोलन के लिया अपना सब कुछ लुटा दिया तब मुलायम की तानाशाह सरकार ने पुलिस बल के हाथों निहत्थे मजदूरों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थी।
बात दो जून सन् 1991 के उस काले दिन की है, जब उत्तर प्रदेश के दूसरे बड़े जिले सोनभद्र के डाला में गोलीकांड हुआ था। जहां एक सरकारी फरमान से कई मासूम जिंदगियों के दीपक हमेशा के लिए बुझ गए। दरअसल यह वाकया उस वक्त का है जब सरकार के ‘डाला सीमेंट फैक्ट्री’ को निजी हाथों में सौंपने के फैंसले का विरोध करते हुए सैकड़ों मजदूर सड़क पर उतर आए लेकिन विरोध को उग्र होता देखकर पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, जिसके कारण कई मासूम जिंदगियां एक पल में खत्म हो गई।
धरना क्यों कर रहे थे मजदूर ?
2 जून 1991 का वह खौफनाक मंजर आज भी सोनभद्र निवासी भूले नहीं भूल पाते, जब सूबे की एकमात्र राज्य सरकार के स्वामित्व वाली सीमेंट फैक्टरी को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने कथित रूप से उद्योगपति डालमिया को बेचने के बाद विरोध कर रहे हजारों श्रमिको पर भरी दुपहरी में गोली चलवा दी थी। कथित तौर पर इस गोलीकांड में कई लोगों की जान चली गईं, हालांकि सरकारी आंकड़े के अनुसार इस दौरान नौ मौतें ही बताई गई हैं।
आखिर क्या है डाला गोलीकांड
नब्बे के दशक में जब सूबे की कमान मुलायम सिंह ने संभाली तो घाटे में चल रही सीमेन्ट फैक्ट्री को निजी हाथों में सौपने का फैसला लिया गया। सीमेंट फैक्ट्री कर्मचारियों ने इसका पुरजोर विरोध किया और कई दिनों तक धरना-प्रदर्शन चला। दो जून 1991 को रविवार का दिन था, जब डाला सीमेन्ट फैक्ट्री के गेट के पूरब में बसे बाजार में आसपास के गांवों के हजारों आदिवासी और ग्रामीण जरूरत का सामान खरीदने के लिये जुटे थे। उसी समय दोपहर के 2.20 बजे धरने पर बैठे सीमेंट फैक्ट्रीकर्मियों व उनके परिजनों पर स्थानीय प्रशासन ने पुलिस की राइफलों का मुंह खोल दिया। गोलियों की आवाज में कुछ पल के लिए सब शांत हो गया, परंतु उसके बाद पूरा बाजार चीख-पुकार की से गूंज उठा।
अचानक हुई इस पुलिसिया कार्यवाही से जहां धरने पर बैठे सीमेंट फैक्ट्री कर्मियो में भगदड़ मच गई वहीं बाजार जा रहे निरीह भी इसकी चपेट में आ गये। प्रत्यक्षदर्शियों की मानें तो उस दिन गोलीकांड में दर्जनों की मौतें हुई थीं, लेकिन सरकारी आंकड़ों में मरने वालों की संख्या नौ दर्ज है। आज भी डाला सीमेंट फैक्ट्री कर्मी और आसपास के निवासी दो जून का दिन ‘शहीद दिवस’ के रूप में मनाते हुए उस दुख की घड़ी को याद करते हुए शान्ति पाठ करते हैं।
2 जून को होता है शांति पाठ
दो जून को शहीद हुए फैक्ट्री के मजदूरों के बलिदान की याद में हर साल 2 जून को श्रद्धांजली सभा और शांति पाठ का आयोजन किया जाता है। 2 जून के काले दिन के प्रत्यक्षदर्शी ओम प्रकाश तिवारी बताते हैं कि ,”जब मजूदरों ने इस आंदोलन के लिया अपना सब कुछ लुटा दिया तब मुलायम की तानाशाह सरकार ने पुलिस बल के हाथों निहत्थे मजदूरों पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई ,हर तरफ लाशों के ढेर बिछ चुके थे ,जिसको जहां जगह मिलती, पुलिस की गोलियों से बचने का प्रयास करते , जब भी मैं उस दिन को याद करता हु मेरी आंखे नम हो जाती है।“
प्रधानमंत्री नेहरू ने रखी थी डाला सीमेंट फैक्ट्री की आधारशिला
देश के प्रथम प्रधानमंत्री प.जवाहरलाल नेहरू ने जब देश के विभिन्न इलाकों में औद्योगिकरण की शुरुआत की तो उस समय यह इलाका मिर्जापुर जिले का हिस्सा था। यहीं उन्होंने सीमेन्ट फैक्टरी की आधारशिला रखी और अपना ऐतिहासिक वक्तव्य दिया। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा था ‘आने वाले दिनों में यह इलाका भारत का स्विट्ज़रलैंड बनेगा।“ प. नेहरू का कहा सच होता दिख रहा था। इसी सीमेन्ट फैक्टरी के सीमेन्ट से देश के सबसे बड़े बांधों में से एक रिहन्द बांध और एक के बाद एक दर्जनों बड़े कारखाने व बिजलीघरों की स्थापना भी हुई।