Naresh Meena Thapadkand: समरावता SDM थप्पड़कांड में नया मोड़, NCST रिपोर्ट के बाद बढ़ सकती हैं अमित चौधरी की मुश्किलें
Naresh Meena Thapadkand: नवंबर 2024 में टोंक जिले के समरावता क्षेत्र में विधानसभा उपचुनाव के दौरान हुए थप्पड़कांड और हिंसा के मामले में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दोषी माना है।

Naresh Meena Thapadkand: नवंबर 2024 में टोंक जिले के समरावता क्षेत्र में विधानसभा उपचुनाव के दौरान हुए थप्पड़कांड और हिंसा के मामले में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दोषी माना है। आयोग ने तीन महीने की विस्तृत जांच के बाद 2 अप्रैल 2025 को राज्य सरकार को 23 पृष्ठों की रिपोर्ट सौंपी है।

रिपोर्ट में मालपुरा के एसडीएम और एरिया मजिस्ट्रेट अमित चौधरी को थप्पड़कांड का जिम्मेदार ठहराया गया है, जबकि बाद में भड़के उपद्रव के लिए पुलिस अधिकारियों को दोषी माना गया है। आयोग ने राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, और जनजातीय क्षेत्र विकास विभाग के सचिव को पत्र भेजकर 30 दिनों के भीतर दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई करने की सिफारिश की है। साथ ही, राज्य सरकार से इस पर विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी गई है। उल्लेखनीय है कि इस प्रकरण के मुख्य पात्र नरेश मीणा अभी भी जेल में बंद हैं।
छह सदस्यीय समिति ने की थी जांच
घटना की जांच के लिए NCST ने छह सदस्यीय समिति गठित की थी, जिसका नेतृत्व निरूपम चामका ने किया। समिति में सूरत सिंह, एच. आर. मीना, गौरव कुमार, राहुल यादव, राहुल, और विष्णु दत्त सैनी शामिल थे। जांच दल ने समरावता और आस-पास के इलाकों का दौरा कर घटनास्थल का निरीक्षण किया और स्थानीय लोगों से बातचीत कर जानकारी जुटाई। इसके अलावा टोंक जिला परिषद सभागार में पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से भी बयान लिए गए।
आयोग की अहम सिफारिशें
रिपोर्ट में आयोग ने स्पष्ट किया गया है कि:
- निर्दलीय प्रत्याशी नरेश मीणा द्वारा एसडीएम को थप्पड़ मारना गलत और अनुचित था, लेकिन यह संभावित प्रतिशोध की कार्रवाई भी प्रतीत होती है।
- केवल नरेश मीणा को गिरफ्तार करने के लिए पूरे गांव पर लाठीचार्ज करना अनुचित था।
- ग्रामीणों, विशेषकर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों पर बल प्रयोग करने वाले अधिकारियों को चेतावनी दी जानी चाहिए।
- निर्दोष लोगों पर अत्यधिक बल प्रयोग करने वाले पुलिसकर्मियों के खिलाफ SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के तहत कार्रवाई होनी चाहिए।
- पुलिस अत्याचार के पीड़ितों को मुआवजा और कानूनी सहायता प्रदान की जाए।
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