अंबेडकर का समाज बनाम आज का समाज

अंबेडकर जो कल भी थे और आज भी है

April 16, 2021 - 06:32
December 8, 2021 - 08:15
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अंबेडकर  का समाज  बनाम आज का समाज
Ambedkar

एक पीड़ित था या कहिए एक एक पीड़ित है,जिसका शोषण हुआ और जिसे सामाजिक समानता, समता और न्याय से वंचित रखा गया। वो ही पीड़ित मौका मिलने पर एक ऐसे संविधान का निर्माण करता है जो हर प्रकार की असमानता ,गैर बराबरी और शोषण को खत्म करने का प्रयत्न करता है। वो पीड़ित  एक वक्त में निर्वाचन प्रणाली और चुनाव में कम असरकारक था और आज वो हर राजनीतिक दल के द्वारा रिक्लेम किया जा रहा है। जिनका वो प्रखर विरोधी था,वो आज उसे अपना बता रहे है और जिनके हित के लिए उसने काम करना चाहा कमोबेश वो आज भी उसी स्थिति में है जहां शोषण, गरीबी , जातियों के बीच की  हिंसा से पीड़ित है वो सब जिनके लिए वो  लड़ा था और अदृश्य रूप से आज भी लड़ रहा है।

वह पीड़ित लड़का पढ़ना चाहता था संस्कृत और उसे पढ़ना पड़ा कोई और विषय क्योंकि ब्राह्मण समाज का संस्कृत प्रभुत्व जो शोषण और वर्ण व्यवस्था के आधार पर स्थापित था वो चोटिल होता इसलिए एक दलित लड़के को संस्कृत नही पढ़ने दिया गया । कक्षा के बाहर खड़े या बैठ उसे पढ़ना होता था क्योंकि उसकी छाया और स्पर्श से शोषक ब्राह्मण और अन्य जाति अपने आपको अपवित्र मानने लगती थी ।

   

अंबेडकर के वक्त में और आज के वक्त में संवैधानिक रूप से दलित ज्यादा सशक्त हुए है उधारण स्वरूप दलितों को संवैधानिक अधिकार मिलना और भारतीय राज्य की नजर में समान नागरिक होना। लेकिन क्या सामाजिक परिवेश में दलित सशक्त हुए है ? क्या छुआछूत की जो स्थिति आजादी पूर्व थी क्या उसे भारतीय समाज में सुलझा लिया गया है ? क्या दलितों को समाज में समान रूप से स्वीकार किया जा रहा है क्या उन्हें इक्वल सिटीजन के रूप में डिग्निटी के साथ राज्य और समाज में रहने दिया जा रहा है ? ये एक ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर हम सबको पता है लेकिन फिर भी मैं कुछ उदहारण के माध्यम से समझाने की कोशिश करता हूं क्योंकि मैं आंकड़ों कितने भी देने की कोशिश करू,आंकड़े कम हैं ,स्पष्ट नहीं है या जिस संस्था का आंकड़ा है उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता है ये सब कहकर आंकड़ों को खारिज करने का खेल पुराना है।

पहली स्थिति : इंटर मैरिज 

क्या आज हम हमारे समाज में इंटर मैरिज देखते हैं और क्या उस मात्रा में देखते है जितनी लोग करना चाहते है? ऑनर किलिंग का खेल पुराना है और उसके पक्ष की दलीलें भी उतनी पुरानी है उतनी घिनौनी है जितनी ये जाति व्यवस्था स्वयं में है। याद कीजिए अंतिम विवाह जिसमे आप शरीक हुए थे वो क्या एक जाति के अंदर ही था या अंतर जाति विवाह था और क्या हमारा समाज अंतर जाति विवाह को स्वीकार करता है ? ये हम सब जानते है लेकिन सोने का प्रयास कर रहे है और ये नाटक शोषण का आधार बनता जा रहा है।

दूसरी स्थिति: इंटर डाइनिंग

क्या हम आज हमारे शहरो और ग्रामीण भारत में देखते है की इंटर डाइनिंग हो रही है विभिन्न जाति साथ बैठकर खाना खा रहे हैं और क्या ये समाज का हर वर्ग कर रहा है या सिर्फ चुनावी राजनीति का हिस्सा मात्र रह गया है अंतर जाति भोज करना? ये सोचने और समझने का प्रश्न है ।

ये लेख आंकड़ों पर आधारित न होकर यथार्थ के निरक्षण की बात करता है और आपको और मुझे समाज में जो हो रहा है उसे देखने और उस आधार पर अंबेडकर के वक्त का भारत और अंबेडकर के बाद के भारत को देखने की बात करता है।

विषय और भी है जैसे मल उठाने के लिए सिर्फ दलितों का प्रयोग होना या दलित दूल्हे को घोड़े में न बैठने देना या दलितों को उनके जातिगत पेशे को करने के लिए हमेशा शोषित करना और स्थिति के निरक्षण की हर संभव कोशिश को रोक देना। 

लेकिन जो ये लड़का आजादी पूर्व आज से 70- 80सालो पहले लिखता है क्या उस स्थिति में कोई खास बदलाव आया है, आज जब दलितों के पास संवैधानिक संरक्षण है क्या उनका शोषण रुका है ? 
इस स्थिति को बेहतरी से जानने के लिए नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के 2019 के रिपोर्ट्स के आंकड़े देखिए और समझिए कैसे दलितों के जीवन में कोई मूलभूत सुधार नहीं आया है । Sc एंड st के खिलाफ 7.3 प्रतिशत और 26.5
प्रतिशत की दर मे 2019 में एट्रोसिटीज बढ़ी है और कही इस समाज के मुख्य धारा में दलितों का कोई प्रश्न आज है जिसका जवाब समाज देने को तैयार है। कही कोई जिक्र है इन हिंसा और शोषण का?

जो समाज ब्लैक लाइव मैटर्स के ट्रेंड चला रहा था क्या वो कभी दलित लाइव मैटर्स और डाउन विथ वर्ण व्यवस्था चला सकता है ? क्या मलाला और ग्रेटा को जानने वाले लोग सुरेखा भोतमंगे को नहीं जानते है और न जानना चाहते है क्या कहानी है सुरेखा की ? 

सुरेखा की कहानी अरुंधती रॉय की पुस्तक में कुछ इस तरह से लिखी गई है

"सुरेखा भोतमाँगे चालीस वर्ष की थी और उन्होंने भी बहुत से ‘अपराध’ किए थे—वे एक महिला थी?—एक अछूत, दलित महिला—और इसके बावजूद वे फटेहाल दरिद्र भी नही थी । वे अपने पति से अधिक शिक्षित थी, और इसलिए अपने परिवार की मुखिया बन गई थी। डॉक्टर अंबेडकर उनके हीरो थे। उनके तरह ही, सुरेखा के परिवार ने भी हिंदू धर्म को त्यागकर बौद्ध धर्म को अपना लिया था । सुरेखा के बच्चे शिक्षित थे। उनके दोनो बेटे सुधीर और रोशन कॉलेज गए थे। "

और फिर क्या हुआ सुरेखा के साथ ? बलात्कार हुआ ,किसने किया उन ऊंची जातियों ने जो दलित को अपवित्र मानते है फिर दलित महिलाओं के साथ बलात्कार क्यों होते है? हाथरस याद कीजिए , भूल जाए चलिए नही कहेंगे हाथरस पर कुछ , सिद्धिकी कप्पन याद रहे और याद रहे कैसे सत्ता ने हाथरस का सच छुपाया है , लेकिन किस लिए छुपाया गया सच , ऊंची व्यवस्था का प्रभुत्व बचाने और बनाए रखने के लिए और शोषण करने के लिए। 

और एनसीआरबी के आंकड़े क्या कहते है , हर दिन 4 दलित महिलाओं का बलात्कार होता है और क्या होता है? बलात्कार होता है , शोषण होता है और दलितों का बलात्कार क्यों करेंगे ब्राह्मण और ऊंची जाति के लोग ,वो तो अपवित्र है ऐसे घटिया तर्क दिए जाते है।

लेकिन ये एनसीआरबी के आंकड़े भी कम है , क्या सबके पास न्याय पाने के लिया संसाधन है ? क्या हर महिला अपने बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज़ करने की हिम्मत कर पाती है? और क्या न्याय मिला है? वो लड़का आज जहां से भी देखता होगा क्या संविधान को फाड़ने की अपनी बात पर कायम रहेगा? 

: अभिषेक त्रिपाठी  

Abhishek Tripathi तभी लिखूंगा जब वो मौन से बेहतर होगा।