यमुना नदी में बढ़ी अमोनिया की मात्रा , कई क्षेत्रों में बंद रहेगी जलापूर्ति
दिल्ली की यमुना नदी में एक बार फिर से अमोनिया का स्तर बढ़ गया है। दिल्ली जल बोर्ड के अनुसार यमुना नदी के वजीराबाद हिस्से में अमोनिया की मात्रा बढ़ गई है।
यमुना नदी मुख्यतः उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली से बहती हुई यूपी में जाकर गंगा नदी में मिल जाती है। यमुना, गंगा नदी की प्रमुख सहायक नदी है। यमुना के जल में एक बार फिर से अमोनिया की मात्रा में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
कैसे बढ़ी यमुना में अमोनिया की मात्रा ?
दिल्ली जल बोर्ड के अनुसार “हरियाणा के विभिन्न शहरों से यमुना नदी में निरंतर अत्यधिक रासायनिक कचरा बहाया जा रहा है। इस कारण यमुना में अमोनिया का स्तर बढ़ गया है।“ जल में अमोनिया की मात्रा 0.5 से अधिक नहीं होनी चाहिए, परन्तु दिल्ली की यमुना में अधिक पाया गया है।
दिल्ली जल बोर्ड के अनुसार अमोनिया की मात्रा 0.9ppm से अधिक होने पर जल उपचार संयंत्रो को बंद करना पड़ता है। अक्सर देखा जाता है कि दिल्ली की यमुना में अमोनिया बढ़ने का कारण औद्योगिक रसायनिक कचरा होता है।
अमोनिया के बढ़ते स्तर से किन किन इलाकों में पानी की समस्या होगी ?
यमुना नदी में अमोनिया की बढ़ोतरी के कारण दिल्ली के कुछ इलाकों मे जलापूर्ति बाधित रहेगी। जिनमें हिंदू राव, कमला नगर , करोल बाग, इंद्रपुरी, दिल्ली गेट, बुरारी , संगम विहार इत्यादि इलाके शामिल हैं। वहीं इसके आस-पास के क्षेत्रों के लोगों को पानी की समस्या हो सकती है।
जल में अमोनिया की मात्रा बढ़ने के नुकसान ?
अमोनिया, पानी में ऑक्सीजन की मात्रा को बहुत कम कर देती है। जल में अमोनिया की मात्रा 1ppm से अधिक होने पर यह जल जीवों के लिए खतरनाक बन जाता है। अमोनिया, नाइट्रोजन के ऑक्सीकरण रुप को परिवर्तित कर देता है जिस से जल में जैव रासायनिक ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है। वहीं मनुष्यों के लिए 1 पीपीएम (pmm) या उससे ऊपर के अमोनिया स्तर वाले जल से आंतरिक अंगों को काफी नुकसान पहुंच सकता है।
समाधान के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम
जल में जिस प्रकार अमोनिया का स्तर बढ़ रहा है, यह चिंताजनक है। ऐसे में पीने के पानी और सीवेज के पानी के लिए अलग-अलग पाइपलाइन होना आवश्यक है। जल में अमोनिया की मात्रा को उपचारित करने के लिए जल उपचार संयंत्रो में ओजोन आधारित इकाइयां स्थापित की जानी चाहिए।
बता दें कि साल 2020 में जल मंत्रालय ने यमुना नदी को स्वच्छ जल उपलब्ध कराकर इसे स्वच्छ करने हेतु उत्तराखंड,हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली और यूपी के बीच साल 1994 में हुए जल बंटवारा समझौते पर पूर्ण कार्य करने की सिफारिश की थी। वहीं राष्ट्रीय हरित अधिकरण द्वारा गठित यमुना निगरानी समिति के मुताबिक पाइपलाइन बनाने के लिए फास्ट ट्रैक स्वीकृति प्रदान की जानी चाहिए।