बंगाल के भद्र लोक का लोकतंत्र

बंगाल में राजनीतिक हिंसा का पुराना इतिहास रहा है। 1972 में कांग्रेसी सिद्धार्थशंकर रे की जीत को वामपंथियों ने धांधली के रूप में देखा। मुख्यमंत्री सिद्धार्थशंकर रे ने भी राजनितिक विरोधियों को सबक सिखाने में सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल से कोई परहेज नहीं किया। और आज की परिस्थितियां भी हर पल उन्हीं घटनाकर्मो को दोहराती हुई प्रतीत हो रहीं हैं।

May 4, 2021 - 21:21
January 5, 2022 - 12:58
 0
बंगाल के भद्र लोक का लोकतंत्र
बंगाल

हाल ही में बंगाल में घटित होने वाली घटनाओं के ऊपर कुछ अति सक्रिय पत्रकार, बुद्धिजीवी, तथाकथित खान मार्केट गैंग, लिबरल यह कहकर घटना को सामान्य बताने का प्रयास कर रहे हैं की बंगाल में यह नई बात नहीं है। यहां तक अपने आप को दलित चिंतक कहने वाले भी बंगाल में दलितों,आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार पर बात करने से कतरा रहे हैं । 

बंगाल में राजनीतिक हिंसा का पुराना इतिहास रहा है। 1972 में कांग्रेसी सिद्धार्थशंकर रे की जीत को वामपंथियों ने धांधली के रूप में देखा। मुख्यमंत्री सिद्धार्थशंकर रे ने भी राजनितिक विरोधियों को सबक सिखाने में सरकारी मशीनरी के इस्तेमाल से कोई परहेज नहीं किया। स्थिति यह हो गई कि उस वक्त भाजपा के तमाम दिग्गज नेताओं को बंगाल से भागना पड़ा था। आपातकाल के दौरान भी रे ने अपने विरोधियों पर भरपूर बल प्रयोग किया। नतीजा यह हुआ कि पहले ही नक्सल आन्दोलन के दौरान हथियार उठाने वाले भाकपा कैडर पुनः जागृत हो उठे। 1977 में आपातकाल के बाद इंदिरा विरोध की आंधी में सिद्धार्थशंकर रे टिक नहीं पाए। भारी बहुमत के साथ वाम मोर्चा सरकार में आई। सरकार तो बदल गई लेकिन सरकार के कामकाज में कोई परिवर्तन नहीं आया। राजनितिक विरोधियों पर दमनचक्र यू हीं चलता रहा। तब से लेकर आज तक बंगाल में राजनितिक हिंसा बदस्तूर जारी है।

1997 में तत्कालीन वाम मोर्चे की सरकार ने विधानसभा में स्वीकार किया था कि 1970 से 1997 तक राज्य में राजनितिक हिंसाओं में कुल 28000 हत्याएं हुईं। स्थिति आज भी कमोबेश वैसी ही है। बल्कि कुछ मामलों में तो स्थिति और ज्यादा ख़राब हुई है। एनसीआरबी के मुताबिक 2018 में बंगाल देशभर में राजनितिक हत्याओं में अव्वल रहा। 2019 और 2020 के आंकड़े तत्कालीन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने देने से इंकार कर दिए । 

दिल्ली में जो वामपंथी अपने आप को लोकतंत्र का रक्षक और लिबरल साबित करने में लगे रहते हैं। उनके 34 साल के शासन में 28000 राजनीतिक हत्याएं एक बहुत बड़ा आंकड़ा है । इन्ही सारी घटनाओं से राष्ट्रीय मीडिया में बंगाल की एक अलहदा छवि बनी है । दुर्गा पूजा, रसगुल्ला, सन्देश और मछली से इतर बंगाल की एक पहचान ऐसे राज्य के रूप में बनी है, जो राजनितिक हिंसा के लिए कुख्यात है। पिछले 2 मई को बंगाल चुनाव के रिजल्ट आने के बाद टीएमसी के कार्यकर्ताओं द्वारा लगातार हिंसा का दौर जारी है ।

सवाल यह है,क्या यह कहकर हाथ झाड़ लेना जायज है कि बंगाल में तो बहुत पहले से हिंसा होती आ रही है इसमें नया क्या है?

क्या यह राजनीतिक हिंसा स्वस्थ लोकतंत्र के लिए उचित है?

बंगाल में विधानसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद से ही मुख्य विपक्षी दल बनकर उभरे भाजपा के दफ्तरों में आग लगाई जा रही है । राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की जा रही है । उनके घरों में तोड़फोड़ की जा रही है साथ ही महिलाओं के साथ छेड़खानी,बलात्कार जैसे अपराधों को भी अंजाम दिया जा रहा है । भाजपा का आरोप है कि ये सभी घटनाएं ममता बनर्जी के इशारे पर की जा रही हैं पुलिस कुछ नहीं कर रही हाथ पर हाथ रखे बैठी है । 

ममता बनर्जी का एक चुनाव रैली का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है जिसमें वह चुनाव के बाद देख लेने की धमकी देती हुई दिख रही है । भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने बड़ा दावा करते हुए कहा की कई पुलिस अधिकारियों ने अनौपचारिक बातचीत में बताया कि हमें ऊपर से आर्डर आया है की 5 मई को शपथ लेने के बाद देखा जाएगा । पुलिस के मुताबिक राज्य के अलग-अलग इलाकों में कम से कम 12 लोगों की मौत हो गई है ।

वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर केंद्र सरकार से बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की जा रही है । 

इस दौरान की विकट अमानवीय और अलोकतांत्रिक घटनाओं के विषैले परिणाम इस प्रकार हैं:

1. वीरभूमि के नानूर में पलायन:-

ऐसी खबरें सामने आ रही है कि वीरभूमि जिला स्थित नानूर में 1000 हिंदू परिवार गांव छोड़कर भागने को मजबूर है इस बात को लेकर भाजपा नेता स्वपन दासगुप्ता ने ट्वीट भी किया । 

2.दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार:-

पूर्वी वर्धमान में आउसग्राम में 3 मई को पूरा आदिवासी गांव आग के हवाले कर दिया गया गौरतलब है कि बंगाल में लगभग 27% दलित आदिवासी आबादी है कई सर्वो के मुताबिक दलित आदिवासियों ने खुलकर भारतीय जनता पार्टी का समर्थन किया । इसी बात की सजा सत्ताधारी दल द्वारा दी जा रही है। 

3. चंदन रॉय की हत्या की जा चुकी है

4. मिंटू बर्मन की हत्या:-

चुनाव नतीजे के बाद भाजपा कार्यकर्ता मिंटू बर्मन के ऊपर टीएमसी के कार्यकर्ताओं ने लाठी-डंडों से हमला किया । सिर पर चोट आने के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

5 राजनीतिक कार्यकर्ताओं का बंगाल से पलायन

असम में मंत्री हेमंत विश्व शर्मा ने ट्वीट कर बताया कि हिंसा से प्रभावित होकर करीब 300 से 400 कार्यकर्ता असम की सीमा में भाग आए हैं। 

6 सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी ट्वीट कर हिंसा की तस्वीरें साझा की ।

7 जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आईसी घोष जो कि बंगाल में चुनाव प्रत्याशी थी,उन्होंने भी हिंसा की तस्वीरें साझा की लेकिन गौरतलब है कि उनके जेएनयू के कुछ साथी ममता बनर्जी का बचाव करते हुए देखे जा रहें हैं । 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज बंगाल हिंसा पर चिंता प्रकट करते हुए बंगाल के राज्यपाल से बात की साथ ही गृह मंत्रालय ने राज्यपाल से राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर रिपोर्ट मांगी है ।