Climate Change : दक्षिण चीन सागर का बढ़ रहा जलस्तर, Coral Rocks पर पड़ा ये असर

दक्षिण चीन सागर (South China Sea) का समुद्र स्तर साल 1900 के बाद से अब तक करीब 150 मिली मीटर अर्थात 15 सेंटीमीटर बढ़ गया है। इसके अलावा रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि दिसंबर से फरवरी और जून से अगस्त के बीच अरब सागर में समुद्र की सतह के तापमान में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है।

March 30, 2022 - 22:52
March 31, 2022 - 01:50
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Climate Change : दक्षिण चीन सागर का बढ़ रहा जलस्तर, Coral Rocks पर पड़ा ये असर
South China Sea: Climate Change के कारण 1900 के बाद समुद्र का स्तर 15 सेंटीमीटर बढ़ा

साउथ चाइना सी इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोलॉजी के शोधकर्ताओं के अनुसार, दक्षिण चीन सागर (South China Sea) का समुद्र स्तर साल 1900 के बाद से अब तक करीब 150 मिली मीटर अर्थात 15 सेंटीमीटर बढ़ गया है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, चीन की विज्ञान अकादमी (CSS) तथा दूसरे चीनी संस्थानों के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन पूरी तरह से पोराइट्स कोरल (Porites coral) पर केंद्रित है। ये दक्षिण चीन सागर में व्यापक रूप से फैली हुई मूंगे की चट्टान होती है, जो काफी तेज़ी से बढ़ती है। इसके अलावा पोराइट्स कोरल समुद्री जल पर्यावरण में बदलाव के प्रति संवेदनशील प्रतिक्रिया को भी बताता है।

चीनी शोधकर्ताओं ने पोराइट्स कोरल के साथ-साथ समुद्र के जल स्तर, समुद्र की सतह की लवणता, समुद्र की सतह के तापमान और दक्षिण चीन सागर में वर्षा के स्तर आदि मानकों पर विश्लेषण किया और एक साल तक समुद्र के स्तर को भी रिकॉर्ड किया था।

समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्र का स्तर साल 1850 से 1900 तक प्रति वर्ष 0.73 मिली मीटर गिर रहा था और फिर साल 1900 से 2015 तक के बीच प्रति वर्ष 1.31 मिली मीटर समुद्र का जलस्तर बढ़ा। दक्षिण चीन सागर में समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी तेज हुई है और यह सब साल 1993 के बाद से प्रति वर्ष 3.75 मिली मीटर की दर से लगातार बढ़ ही रहा है। 

तमाम एजेंसियों के अध्ययन से पता चला है कि दक्षिण चीन सागर में साल 1850 से 1950 तक हुए समुद्र के स्तर में परिवर्तन के पीछे की वजह सौर गतिविधियों और ग्रीनहाउस गैसों के मिश्रण की प्रतिक्रिया का परिणाम हो सकता है। वहीं साल 1950 के बाद से समुद्र के स्तर में तेजी से बढ़ोतरी का मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसें हो सकती हैं।

चिन्ताजनक है समुद्रों का बढ़ता जल स्तर

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ने साल 2019 की रिपोर्ट में चिंता जाहिर करते हुए कहा कि जिस तरह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, उस हिसाब से साल 2100 तक 80% बर्फ पिघल कर खत्म हो जाएगी। इन ग्लेशियरों से निकला हुआ पानी सीधे समुद्र में जाता है। जिससे समुद्र के जलस्तर में बढ़त देखी जा रही है। 20वीं सदी में दुनिया भर के समुद्रों का जलस्तर करीब 18 सेंमी बढ़ा है। अगर ऐसे ही बर्फ तेजी से खत्म होती रही तो आने वाले 100 सालों में समुद्र का जल स्तर 2 से 3 मीटर तक बढ़ सकता है। जिसके कारण समुद्र के किनारे बसे हुए कई देश और शहर जलमग्न हो जाएंगे। 

समुद्र का पानी बर्फ के मुकाबले गहरे रंग का होता है। जिससे वह ज्यादा गर्मी सोखता है। अंटार्कटिका पर जितनी ज्यादा बर्फ पिघलेगी, उतना ही अधिक पानी गर्मी को सोखेगा, जिससे विश्व के तमाम ग्लेशियरों के पिघलने की रफ्तार और भी तेज हो जाएगी।

समुद्र के तापमान में हो सकती है 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि

सभी अध्ययनों के निष्कर्ष से पता चला है कि आरसीपी 4.5 परिदृश्य में लहरों की ऊंचाई में होने वाला अनुमानित परिवर्तन दक्षिण चीन सागर के लिए सबसे अधिक है। वहीं यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि आरसीपी 8.5 परिदृश्य के तहत 21वीं सदी के अन्त तक लहरों की ऊंचाई में 23 फीसदी वृद्धि होने की सम्भावना है। इसके अलावा पश्चिमी उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में हवाओं और लहरों में होने वाला अनुमानित परिवर्तन, समुद्र के स्तर के दबाव में आते बदलाव और वहां के तापमान में होते बदलावों के अनुरूप ही है। 

रिसर्च कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि दिसंबर से फरवरी और जून से अगस्त के बीच अरब सागर में समुद्र की सतह के तापमान में 1.5 से 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। इसी तरह ओमान और फारस की खाड़ी के क्षेत्रों में आरसीपी 8.5 के तहत सदी के अंत तक तापमान में करीब 2 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक की वृद्धि हो सकती है।