सजा के बाद भी आपसी समझौता कर सजा से मुक्त हो सकता है दोषी: सुप्रीम कोर्ट
मध्य प्रदेश के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला करते हुए कहा कि गैर संज्ञेय अपराधों में आपसी समझौते के बाद उच्च अदालत मामले को समाप्त कर सकती है। बेशक उसमें दोषी को दंडित ही क्यों न किया गया हो।
मध्य प्रदेश के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला करते हुए कहा कि गैर संज्ञेय अपराधों में आपसी समझौते के बाद उच्च अदालत मामले को समाप्त कर सकती है। बेशक उसमें दोषी को दंडित ही क्यों न किया गया हो।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन की न्याय पीठ ने विशेष टिप्पणी करते हुए कहा कि,गैर संगीन अपराध जो व्यक्तिगत प्रकृति के हों, ऐसे अपराधों में समझौते के बाद सजा को समाप्त किया जा सकता है। उच्च न्यायालय दोषी को आरोप मुक्त करने का काम धारा-482 के अंतर्गत कर सकती है। मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन की पीठ ने यह भी कहा कि जहां समझौता सजा मिलने के बाद हुआ हो ऐसे मामलों को उच्च न्यायालय अपने विवेकाधिकारों से समाप्त कर सकते हैं। परंतु ऐसे मामले में न्यायाधीशों को बड़ी ही सतर्कता के साथ काम करना होगा।
इस मुकदमे के अभियुक्त को धारा -326(गंभीर चोट पहुंचाने) के लिए दंडित किया गया था। उच्च न्यायालय में उसने मुकदमे को समाप्त करने के लिए न्यायालय में अपील की थी, जिसमें अभियुक्त कहा था अब हमारे बीच समझौता हो गया है। जिस पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने उसकी अर्जी खारिज करते हुए कहा था कि उसका अपराध माफी योग्य श्रेणी में नहीं है।
जिसके बाद आरोपी के द्वारा उच्चतम न्यायालय में अपील की गई। जिस पर शीर्ष अदालत ने सुनवाई करते हुए कहा कि चूंकि आरोपी और पीड़ित के बीच समझौता हो गया है इसलिए हम अपील स्वीकार करते हैं और दोषी को दोष मुक्त करते हैं।
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